हिन्दू विरोधी एजेंडा चलाने वाले 1800 NGOs पर चला अमित शाह का चाबुक, लाइसेंस रद्द

एनजीओ

न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार ने 1,807 एनजीओ और शैक्षणिक संस्थानों को विदेशी फंडिंग में कानूनों का उल्लंघन करते हुए पाया है। राजस्थान विश्वविद्यालय, इलाहाबाद कृषि संस्थान, यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन, गुजरात और स्वामी विवेकानंद एजुकेशनल सोसाइटी कर्नाटक, उन संस्थाओं और एनजीओ में शामिल हैं, जिनका विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि विदेशों से अवैध रूप से आने वाले पैसों पर लगाम लगाई जा सके।

क्यों किया लाइसेंस रद्द

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “एफसीआरए पंजीकरण को रद्द करने के साथ, सभी गैर-सरकारी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों की विदेशी फंडिंग रोक दी गई है।” अधिकारियों ने बताया कि बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद 6 साल तक वार्षिक इनकम टैक्स और विदेशी धन के संबंध में खर्च का ब्योरा जमा न करने की वजह से इन संगठनों का एफसीआरए पंजीकरण रद्द किया गया है।

क्या हैं FCRA के नियम कानून?

एफसीआरए के नियमों के अनुसार संगठनों को वित्त वर्ष के पूरा होने के 9 महीने के अंदर हर साल आय और व्यय के ब्योरे, रसीदों और बैंक से लेन-देन का ब्यौरा इत्यादि की स्कैन कॉपी के साथ एक ऑनलाइन वार्षिक रिपोर्ट जमा करनी होती है। यहां तक ​​कि ऐसे एनजीओ जो किसी निश्चित वित्तीय वर्ष के दौरान कोई विदेशी धन प्राप्त नहीं करते हैं, उन्हें भी ‘NIL’ रिटर्न फाइल करने की आवश्यकता होती है।

गौरतलब है कि भारत में एनजीओ एक बड़ा सेक्टर है और यहाँ 33 लाख रजिस्टर्ड एनजीओ मौजूद हैं। इन सभी एनजीओ की फंडिंग पारदर्शी नहीं है और कुछ विदेशी एनजीओ की शाखाएं तो अपनी फंडिंग को अपना एजेंडा फैलाने के लिए प्रयोग करती हैं जो अक्सर राष्ट्रीय हित और विकास के लिए हानिकारक होते हैं।

सत्ता में जब से मोदी सरकार आई है, भारत विरोधी एनजीओ पर लगाम लगाने के लिए कई कड़े कदम उठा चुकी है। सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों को विदेशों से मिलने वाले पैसे को ‘चंदा’ न मानकर ‘निवेश’ के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया था। यानि विदेशी फंड पर FCRA के नियमों के साथ-साथ कंपनीज़ एक्ट और इनकम टैक्स के ज़्यादा कड़े नियम लागू होंगे और एनजीओ को विदेशों से मिलने वाले पैसे का सारा डिटेल संबन्धित एजेंसियों को देना पड़ेगा। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने FCRA कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।

सरकार FCRA अधिनियम का इस्तेमाल उन संगठनों के खिलाफ कर रही है जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारत विरोधी गतिविधियों में करती हैं। इनमें ग्रीनपीस इंडिया जैसे एनजीओ का नाम शामिल है, जिस पर फेमा कानून के उल्लंघन करने का आरोप भी लगा है। ऐसी ही एक और एनजीओ है ‘कम्पैशन इंटरनेशनल’, जिसे FCRA अधिनियम के तहत दंडित किया गया है। इन सभी एनजीओ का उन गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था जो देश विरोधी हैं।

एनजीओ से जुड़े ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनका कनेक्शन विदेश में स्थित चर्चों के साथ पाया गया है, जो जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए जानी जाती हैं। झारखंड जैसे राज्य इसके प्रमुख उदाहरण हैं। एक ​​रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 88 ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एनजीओ में शीर्ष 11 को 7.5-39 करोड़ रुपये का विदेशी फंड मिला था। एक रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया था। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं।

अब मोदी सरकार ने ऐसे एनजीओ और शैक्षणिक संस्थानों पर FCRA के तहत कानूनी कार्रवाई करके बता दिया है कि धर्म और शिक्षा के नाम पर अब देश में किसी भी प्रकार का अवैध धंधाखोरी नहीं चलेगा।

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