5 दिन पहले द वायर ने कहा RCEP छोड़ दो, अब सरकार ने RCEP छोड़ी, तो कहते हैं क्यों छोड़ी?

RCEP पर द वायर ने मारा रॉयल यू टर्न

द वायर

देश का लेफ्ट लिबरल मीडिया हिपोक्रिसी की जीती जागती प्रतिमूर्ति है। कैमरे के सामने ये लोग नैतिकता की दुहाई देते नहीं थकते। नारी सशक्तिकरण से लेकर भ्रष्टाचार तक ये लंबे चौड़े भाषण देते फिरते हैं। पर इन आदर्शों को वास्तविक जीवन में आत्मसात करने से यही लोग हिचकिचाते हैं।

इसी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है वामपंथी पोर्टल ‘द वायर’, जो आए दिन अपने ही स्थापित आदर्शों की धज्जियां उड़ाता फिरता है। अभी हाल ही में द वायर ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा की पीएम मोदी को RCEP से नाता नहीं तोड़ना चाहिए था, और कैसे यह भारत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

द वायर, जो अपनी वामपंथी विचारधारा के लिए चर्चित हैं, अचानक से इतना उदारवादी और पूंजीवादी कैसे हो गया? ठहरिए, यहाँ कोई हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है, अपितु द वायर की हिपोक्रिसी एक बार फिर उजागर हुई है। एक वामपंथी पोर्टल होने के नाते द वायर ने पीएम मोदी के आरसीईपी संबंधी बातचीत को लेकर ये तर्क दिया कि कैसे आरसीईपी के साथ समझौता करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। परंतु जैसे ही पीएम मोदी ने राष्ट्रहित में इस समझौते के साथ भारत का नाता तोड़ा, द वायर ने अपने सुर बदलने में देर नहीं लगाई। अब ये ऐसा करे भी क्यों इस मीडिया पोर्टल के लिए देश हित ज्यादा मायने रखता है या मोदी सरकार की आलोचना ये किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है।

दरअसल, 1 नवंबर को द वायर ने लेख प्रकाशित किया कि कैसे RCEP पर हस्ताक्षर करना भारत के लिए हानिकारक सिद्ध होगा, और लेख का शीर्षक था ‘’only a killing instinct could compel india to sign the RCEP” (केवल एक सनक ही भारत को RCEP पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर सकती है।)

लेकिन जब भारत ने कुछ शर्तें अस्वीकार होने पर RCEP में शामिल होने से मना कर दिया, तो इसी पोर्टल ने लिखा, “भारत को आखिर क्यों RCEP न जुड़ने को जीत के तौर पर नहीं देखना चाहिए।” इस आर्टिकल में लिखा था कि “इस फैसले से घरेलू मांग या खपत को भी बढ़ावा नहीं मिलेगा। यह संभव हो सकता है यदि हमारे उपभोक्ताओं को आरसीईपी देशों से बेहतर गुणवत्ता वाले कम लागत वाले उत्पादों तक पहुंच प्राप्त हो। दुर्भाग्यवश, उन्हें कम गुणवत्ता वाले लेकिन उच्च कीमत वाले घरेलू उत्पादों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।”

इस साइट के संस्थापकों में से एक एमके वेणु ने एक लेख लिखा, ‘RCEP से बाहर रहने के लिए महात्मा गांधी का आवाहन करना एक लेजी एक्ट है’। इस लेख में वे कहते हैं की “सच कहें तो भारत के एक महान आर्थिक शक्ति होने के दावे जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती है। इससे भारत दुविधाजनक स्थिति में फंस जाता है जब वो आरसीईपी में शामिल होने की पेशकश जैसी स्थितियों का सामना करता है, जो सैद्धांतिक रूप से सभी को लाभान्वित करते हैं।

बीते कुछ वर्षों में द वायर ने कुछ ऐसे लोगों को अपने संगठन में जगह दी है जो मुख्यधारा की मीडिया में टिक नहीं पाए या फिर कांग्रेस के प्रवक्ता रहे हैं। कभी यूपीए के सरकार में अनाधिकारिक रूप से काँग्रेस के प्रवक्ता रहे पेशेवर पत्रकार एमके वेणु इस संगठन का हिस्सा हैं। जब नीरा राडिया के टेप्स 2011 में राष्ट्रीय मीडिया में वायरल हुए, तो एमके वेणु का नाम भी उछला था। इस टेप के अनुसार ये यूपीए सरकार में मंत्रियों का चुनाव करने वाले कथित पत्रकारों के गैंग में शामिल थे। विवाद में रहने के बावजूद एमके वेणु को राज्य सभा टीवी में एक शो ‘स्टेट ऑफ दी इकॉनोमी’ होस्ट करने का अवसर प्रदान किया गया था।

राज्यसभा टीवी में नियुक्ति उपराष्ट्रपति की निगरानी में होती है, जो लगभग हर सरकार का एक अभिन्न अंग होता है। परंतु यूपीए के कार्यकाल में जब अर्थव्यवस्था संकट में थी, तो ‘स्टेट ऑफ दी इकोनॉमी’ के माध्यम से सरकार ये प्रदर्शित करना चाहती थी कि सब ठीक है और कहीं कोई समस्या नहीं। इसके लिए यूपीए सरकार ने एमके वेणु को लाखों रुपये भी दिये। वहीं, करण थापर लुटियंस गैंग के एक जाने-माने सदस्य हैं, जो द वायर के लिए बड़ी-बड़ी हस्तियों के साथ साक्षात्कार प्रकाशित करते हैं। उनके परिवार के नेहरू-गांधी परिवार से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। करण थापर का झुकाव गाँधी परिवार की ओर रहा है और वो मोदी विरोध के लिए जाने जाते हैं।

परंतु द वायर में एमके वेणु या करण थापर अकेले ऐसे पत्रकार नहीं है, सह संस्थापक एवं नक्सल समर्थक सिद्धार्थ वरदराजन हों, या फिर आरफा खानुम शेरवानी हो, या फिर रोहिणी सिंह, द वायर के अधिकांश पत्रकार भाजपा विरोधी होने के साथ काँग्रेस पार्टी या नेहरू गांधी परिवार एवं अन्य सेक्युलर पार्टियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं।

वैसे ये पहली बार नहीं है जब द वायर ने खुद ही अपनी हिपोक्रेसी को एक्स्पोज़ किया हो। चाहे ‘जय श्री राम’ पर इसका प्रोपगैंडा हो, या फिर राफेल पर इनका झूठ हो, द वायर ने कई बार ऐसे तर्क रखें हैं, जो स्वयं उसके ही दावों की धज्जियां उड़ाते हैं। अब केवल 5 दिनों में RCEP पर द वायर के रॉयल U टर्न से ये स्पष्ट है कि द वायर हिपोक्रेसी में नंबर 1 है।

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