बाला: केवल गंजेपन से पीड़ित पुरुषों के लिए नहीं, बल्कि ये फिल्म सभी के लिए है

बाला

PC: Filmy Rockers

जीवन में खोना और पाना एक आम बात है। जाने अंजाने हम कई चीज़ें खोते हैं, परंतु जब एक व्यक्ति अपने बाल खोने लगता है, तो वो भावना ही अलग होती है।

आज फिल्म ‘बाला’ की हम समीक्षा करेंगे। इस फिल्म का निर्देशन किया है अमर कौशिक ने। इसमें मुख्य कलाकार हैं आयुष्मान खुराना, यामी गौतम और भूमि पेडनेकर। सपोर्टिंग कास्ट के तौर पर साथ दिया है सौरभ शुक्ला, अभिषेक बनर्जी, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, धीरेंद्र कुमार गौतम इत्यादि जैसे कलाकारों ने। यह फिल्म Gone Kesh (गॉन केश) और ‘उजड़ा चमन’ के बाद गंजेपन पर बॉलीवुड की तीसरी फिल्म है।

कहानी 

तो कहानी कानपुर के नेहरू नगर में रहने वाले बाल मुकुंद शुक्ला उर्फ बाला की है। कभी अपने क्लास के सबसे लोकप्रिय बालक रहा बाला अब 15 वर्ष बाद हर क्षेत्र में स्ट्रगल कर रहा है, जिसका मुख्य कारण है premature balding यानि गंजापन।

कोई भी नुस्खा उसके बचे हुए बालों को बचा नहीं पा रहा है, बाल उगाना तो बहुत दूर की बात हुई। बचपन की गर्लफ्रेंड छोड़ देती है, शादी के लिए आने वाली लड़कियां उसकी वास्तविकता से परिचित हो भाग जाती हैं और एक अनाकर्षक व्यक्तित्व के कारण उसे जॉब में डिमोट कर दिया जाता है।

हताश हो कर बाला विग का रास्ता अपनाता है और जल्द ही वो लखनऊ में रहने वाली सुपरमॉडल परी मिश्रा की ओर आकर्षित होता है, जो एड करने के अलावा टिकटॉक पर वीडियो भी पोस्ट करती है। अब अपनी समस्या से बाला कैसे निपटता है, और क्या बाला परी को अपनी सच्चाई बताता है, ये पूरी फिल्म इसी बारे में है।

इस फिल्म को अगर संक्षेप में कहे, तो इसके लिए एक ही शब्द है : अदभुत। ये फिल्म अपने व्यक्तित्व से प्रेम करने को प्रेरित करती है, चाहे कैसी भी स्थिति हो। बैकग्राउंड म्यूजिक काफी रोचक है, कानपुर और लखनऊ का चित्रण एकदम सटीक है और यहाँ का लहजा फिल्म में एकदम स्वाभाविक लगता है।

इस फिल्म के बारे में एक और बढ़िया बात यह भी है कि ये अपने संदेश दर्शकों पर थोपने का प्रयास नहीं करता। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बनी फिल्में या तो विषय से एकदम विमुख होती हैं या फिर उपदेश देती प्रतीत होती हैं। परंतु बाला ऐसी फिल्म नहीं है। अगर वो बनने की स्थिति में भी हो, तो निर्देशक अमर कौशिक की परिपक्वता उसे तुरंत उस स्थिति से बाहर निकाल लेती है।

अभिनय

इसके अलावा अगर अभिनय की बात करें, तो बाला के पूरे एक्टिंग डिपार्टमेंट को एक स्टैंडिंग ओवेशन तो बनता है। आयुष्मान ने एक बार फिर बाला के तौर पर हम सभी का दिल जीता है। यूं तो लगभग हर दूसरे फिल्म में आयुष्मान को छोटे शहर के लड़के के तौर पर दिखाया जाता है, पर उनके अभिनय में कुछ तो बात है जिसके कारण उनका हर रोल पिछले फिल्म से अलग लगता है।

वहीं, एक फेम हंगरी टिकटॉक आर्टिस्ट के तौर पर यामी ने अपने रोल को बहुत ही शानदार तरह से यह निभाया है। एक वैधानिक चेतावनी यहाँ टिकटॉक यूज़र्स के लिए भी है – कृपया करके यह फिल्म न देखें, क्योंकि अपने अभिनय से यामी ने इस एप के यूज़र्स का खोखला स्वभाव बहुत अच्छी तरह से उजागर किया है। भूमि पेडनेकर ने भी लतिका त्रिवेदी के तौर पर अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है।

यहाँ सपोर्टिंग कास्ट की जितनी प्रशंसा करे, उतनी कम है। बाला के पिता के तौर पर सौरभ शुक्ल हों, या फिर बच्चन भैया के तौर पर जावेद जाफरी हो, या फिर बाला के छोटे भाई के तौर धीरेन्द्र कुमार गौतम हो, या फिर लतिका की मौसी के तौर पर सीमा पाहवा ही क्यों न हो, सब ने अपनी भूमिका में चार चाँद लगाए हैं। निरेन भट्ट के लेखन के कारण बाला किसी भी जगह उबाऊ नहीं लगती।

खामियां

इस मूवी में यदि वास्तव में कोई कमी थी, तो वो था भूमि का मेक अप और उनका एक्टिविस्ट मोड। मेकअप ज़रूरत से ज़्यादा नकली लग रहा था और कई जगह उनका एक्टिविस्म आवश्यकता से ज़्यादा थोपा हुआ प्रतीत हो रहा था।

परंतु इन त्रुटियों को अगर अनदेखा करें तो बड़े दिनों के बाद बॉलीवुड ने बाला के रूप में एक बढ़िया फिल्म पेश की है। यह फिल्म जीवन को लेकर जो सन्देश देती है वो सराहनीय है और इसे हाल में आपको अपने पूरे परिवार के साथ अवश्य देखना चाहिए। इस फिल्म को हम देंगे 5 में से 4 स्टार।

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