जेएनयू विवाद में मोटा भाई की एंट्री, मुफ्तखोरी का ढोल पीटने वालों की अब खैर नहीं

अमित शाह

PC: India TV

जेएनयू के फीस प्रकरण पर बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए गृह मंत्रालय ने मामला अब अपने हाथ में ले लिया है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से बातचीत की है, और उनसे जेएनयू पर पूरी रिपोर्ट मांगी है। अमित शाह ने जेएनयू में शांति बहाल करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों पर भी चर्चा की। इसके बाद अमित शाह ने जेएनयू विवाद का समाधान खोजने और विरोध प्रदर्शन खत्म करने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल को निर्देश दिया है।

बता दें कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासन ने हाल ही में कुछ हफ्ते पहले हॉस्टल एवं कैम्पस की अन्य सुविधाओं के लिए लगाए जाने वाले शुल्क में बढ़ोत्तरी की थी। उदाहरण के लिए 5000 रुपये की वन टाइम मेस सिक्योरिटी फीस 12000 रुपये हो गयी, जबकि सिंगल बेड हॉस्टल रूम 20 रुपये प्रतिमाह की बजाए 600 रुपये प्रतिमाह होगा। इसके अलावा प्रशासन ने प्रतिमाह 1700 रुपये का सर्विस चार्ज भी लागू किया है। प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि “2740 से 30100 प्रतिवर्ष की 999 प्रतिशत बढ़ोत्तरी को तुरंत वापस लिया जाये”।

फीस बढ़ाने को लेकर जेएनयू के वामपंथी अतिवादी अपना आपा खो बैठे  हैंऔर अपना प्रभुत्व सिद्ध करने के लिए उन्होंने पूरे कैम्पस में हुड़दंग मचा रखा है। दीक्षांत समारोह में बाधा पहुंचाने से लेकर स्वामी विवेकानन्द की मूर्ति को नुकसान पहुंचाने और महिला पत्रकारों एवं महिला सुरक्षाकर्मियों के साथ अभद्रता करने तक पिछले दो हफ्तों में वामपंथी अतिवादियों ने जेएनयू को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

वरिष्ठ सूत्रों की माने तो शाह ने स्पष्ट कहा है कि विश्वविद्यालयों में छात्रों के इस तरह के आंदोलन ठीक नहीं है। इससे पहले भी कई मसलों पर जेएनयू समेत कई विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलन पर उतर आए थे। शाह और निशंक की यह मुलाकात अहम मानी जा रही है क्योंकि जेएनयू छात्रों ने दिल्ली पुलिस पर निरंकुश होने का आरोप लगाया है। दिल्ली पुलिस सीधे तौर पर गृह मंत्रालय के तहत काम करती है।

सूत्रों के मुताबिक शाह ने यह भी कहा कि बढ़ी हुई हॉस्टल की फीस और अन्य शुल्क का फैसला वापस लिया जा सकता है। निशंक ने शाह को बताया फीस बढ़ोतरी आंशिक रूप से वापस करने का फैसला पहले ही लिया जा चुका है। छात्र नेताओं और संगठनों से बातचीत के लिए तीन सदस्यों की कमेटी भी गठित की गई है।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। प्रशासन आंशिक रूप से फीस के निर्णय को रोल बैक करने के लिए तैयार भी हो गया, परंतु जेएनयू के वामपंथी अतिवादी नहीं माने और उन्होंने संसद कूच करने का ऐलान कर दिया। संसद चलो अभियान के दौरान इनकी दिल्ली पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई, जिसमें जवाब में दिल्ली पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।

बता दें कि जेएनयू में गैरकानूनी गतिविधियां आम बात हो गयी हैं। राष्ट्रविरोधी नारों से लेकर बैन हो चुके ड्रग्स की  तस्करी तक, वाईस चांसलर और उनकी पत्नी को बंधक बनाने से लेकर महिला पत्रकारों के साथ बदतमीजी जैसी घटनाओं के कारण अक्सर ही जेएनयू चर्चा में रहा है। ‘लाल सलाम, वी शल फाइट, वी शैल विन, ब्राह्मणवाद हो बर्बाद, भारत तेरे टुकडे होगे इंशाल्लाह, कश्मीर की आज़ादी से भारत की बर्बादी  तक, जग रहगी जंग रहगी’ जैसे नारे जेएनयू परिसर में कई बार सुने गये हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर यहां के वामपंथी छात्र इस तरह की घटनाओं में लिप्त पाए जाते हैं और यदि इनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो ये विरोध प्रदर्शन पर उतर आते हैं।  इस तरह की घटनाओं के कारण वास्तव में जो छात्र इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने  के लिए एडमिशन लेते हैं उनपर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अब जेएनयू के छात्रों के विरोध प्रदर्शन की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अमित शाह ने इस मामले को अपने हाथ में लिया है। हम निस्संकोच कह सकते हैं कि ये जेएनयू में हिंसा कर रहे उपद्रवियों के लिए शुभ संकेत तो बिलकुल नहीं है, क्योंकि जब भी मोटा भाई ने कमान संभाली है, तो विरोधियों को मुंह की ही खानी पड़ी है। गौर हो कि जब अमित शाह केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं थे, तब भी वे अपने स्पष्ट व्यक्तित्व और अपने त्वरित निर्णयों के लिए जाने जाते थे। अब गृह मंत्री बनने के बाद भी उनका व्यक्तित्व वही है वो देशहित के लिए किसी भी कदम को उठाने से परहेज नहीं करते।

अभी हाल ही में अमित शाह ने कश्मीर की समस्या को लगभग हल करने के बाद अपनी दृष्टि वामपंथी उग्रवाद की ओर मोड़ी है। अब तो शाह ने सीआरपीएफ को अगले छह महीने में नक्सलियों के खिलाफ प्रभावी एवं निर्णायक अभियान चलाने का निर्देश भी दे दिया है। अमित शाह ने कहा कि अब वामपंथी चरमपंथियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी। वामपंथी चरमपंथियों के अलावा अर्बन नक्सल और उनके मददगारों के खिलाफ भी एक्शन लेने की जरूरत है।

अमित शाह ने आगे यह भी बताया था कि कैसे पूर्ववर्ती सरकारों ने वैचारिक आंदोलन के नाम पर वामपंथी उग्रवाद को जमकर बढ़ावा दिया, लेकिन उनकी सरकार किसी भी सूरत में इस वामपंथी उग्रवाद को बर्दाश्त नहीं करेगी। शाह के अनुसार, ‘सिर्फ गोली चलाने वाले लोग ही आतंकी नहीं होते, बल्कि उग्रवादी साहित्य और विचारों के माध्यम से अपनी प्रदूषोत सोच फैलाने वाले लोग भी इस श्रेणी में आते हैं। इसलिए सरकार ऐसे लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई चाहती है’।

यदि अमित शाह ने कमान संभाल ली है, तो फिर जेएनयू में हिंसा और विरोध करने वालों की खैर नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि अमित शाह जल्द से जल्द जेएनयू की समस्या को शांत करेंगे ताकि जेएनयू अपने सामान्य दिनचर्या में लौट सके।

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