फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा फैलाकर इजराइल के हमले पर छाती पीट रही है एमनेस्टी इंटरनेशनल

एमनेस्टी इंटरनेशनल

अपने आप को मानवाधिकार संगठन कहने वाली एजेंडावादी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल का एक बार फिर भंडा-फोड़ हुआ है। हिंदुओं के खिलाफ समय-समय पर एजेंडा चलाने वाली यूके की यह संस्था यहूदियों के खिलाफ दुष्प्रचार करने में भी पीछे नहीं रही है, और ऐसा ही उसने गाज़ा-इज़राइल विवाद के मामले में किया है। इस संस्था ने बिना कोई जांच पड़ताल के इज़राइल पर कई आरोप लगा दिये, और साथ ही फिलिस्तीन को एक पीड़ित देश घोषित कर दिया।

दरअसल, एमनेस्टी ने इज़राइल पर यह आरोप लगाया कि उसने फिलिस्तीन की स्वतंत्र मानवाधिकार कमीशन की इमारत को निशाने पर लिया है और उसपर रॉकेट से हमला किया है। इसके साथ ही एमनेस्टी ने इज़राइल पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया। हालांकि, एमनेस्टी के एजेंडे को थोड़ा समय ही हुआ था कि इस एजेंडावादी संस्था की पोल खुलने में ज़्यादा देर नहीं लगी।

बता दें कि 12 नवंबर को मौका पाकर इजराइल ने गाज़ा के सबसे बड़े जिहादी आतंकवादी बाहा-अबु-अल अता पर धावा बोला था और उसे खत्म कर डाला था। वह इज़राइल पर कई आतंकवादी हमलों का जिम्मेदार था और भविष्य में भी वह कई हमलों की योजना बना रहा था। हालांकि, जैसे ही बाहा-अबु-अल अता के खत्म होने की खबर सामने आई, तुरंत गाज़ा के आतंकवादियों ने इज़राइल पर रॉकेट से हमला करना शुरू कर दिया, और इज़राइल के मासूम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। इसके जवाब में जब इज़राइल ने गाज़ा पर हमला बोला, तो 20 से ज़्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे।

गाज़ा के आतंकवादियों को पूरी तरह नकारते हुए एमनेस्टी ने तुरंत अपने ट्विटर हैंडल पर एजेंडा चलाना शुरू कर दिया। एमनेस्टी ने अपने ट्वीट में लिखा ‘इज़राइली सेना को अभी तुरंत आम नागरिकों पर हमला करने से परहेज करना चाहिए। ऐसा करना अंतर्राष्ट्रीय युद्ध नियमों और मानवाधिकारों का उल्लंघन है’।

इसके बाद एमनेस्टी एक और ट्वीट करता है- ‘हम फिलिस्तीन की स्वतंत्र मानवाधिकार कमीशन की इमारत पर इज़राइली हमले की सख्त निंदा करते हैं। रिहायसी इमारतों को निशाना बनाना अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। फिलिस्तीन के स्वतंत्र मानवाधिकार कमीशन के साथ हमारी सांत्वना’।

हालांकि, एमनेस्टी के इस झूठ का अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी फॉक्स न्यूज़ के विदेशी मामलों के संवाददाता ने जल्द ही पर्दाफाश कर दिया। उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि फिलिस्तीन की स्वतंत्र मानवाधिकार कमीशन की इमारत पर जिस रॉकेट से हमला हुआ है, वह इज़राइल ने नहीं बल्कि गाज़ा के आतंकवादियों की ओर से चलाया गया था जो निशाना भटककर उस इमारत से जा टकराया। साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि जब यह हुआ, वे उस वक्त उसी गली में थे।

बिना किसी जांच पड़ताल के एमनेस्टी द्वारा यह एजेंडा चलाया जाना इस बात का सबूत है कि जब तक ऐसी संस्थाओं के निजी हितों पर कोई खतरा नहीं आता है, इन्हें दुनिया में किसी भी कोने में हो रहे किसी भी अपराध से कोई समस्या नहीं होती है। एमनेस्टी का यही एजेंडा भारत के खिलाफ भी देखने को मिलता है।

अपने इसी भारत विरोध के चलते एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने ‘कश्मीर में मानव अधिकारों’ को लेकर ‘ब्रोकन फैमिलीज़’ के नाम से एक इवेंट ऑर्गनाइज़ किया था और अपने इस इवेंट में भारत और सेना के खिलाफ नारे लगवाए थे, जिसे लेकर बेंगलुरु पुलिस ने एमनेस्टी के खिलाफ देशद्रोह, समाज में नफरत फैलाने का केस दर्ज किया था। इस संस्था पर भारत में मौजूद टुकड़े-टुकड़े गैंग को भी फंड करने के आरोप लगते रहे हैं, यानि एक प्रकार से ये टुकड़े-टुकड़े गैंग और एमनेस्टी का गठबंधन है। ये संस्था लंबे वक़्त से ऐसी गतिविधियों में शामिल रही है, जिससे भारत की छवि धूमिल हो। यह संस्था कश्मीर के आतंकवादियों के मानवाधिकार की बात भी करती रही है। जून 2019 में इसने 6 मिनट 18 सेकेंड का एक वीडियो शेयर किया था और महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पिछले साल हुई हिंसा के 9 आरोपियों को निर्दोष और देशवासियों के लिये हीरो बताया था। इस संस्था के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल विशेष रूप से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में सबसे आगे रहे हैं। वास्तव में पटेल भारत और हिंदू विरोधी एजेंडे का चेहरा हैं। यह वही अकार पटेल हैं जिन्होंने “हिंदू आतंक” के झूठे प्रचारकों में से एक रहे हैं।

ऐसे में एमनेस्टी के भारत और इज़राइल-विरोध को समझा जा सकता है। यही कारण है कि यह संस्था धीरे-धीरे विश्व में अपनी साख खोती जा रही है। दुनियाभर में घृणा और झूठी खबर फैलाने के लिए इस संस्था पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। एमनेस्टी जैसी सस्थाओं को मानवाधिकार के नाम पर इस तरह खुलेआम प्रोपेगैंडा फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

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