ASI की रिपोर्ट ने अयोध्या फैसले में कैसे निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

PC: Aajtak

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को आखिर दशकों पुराने अयोध्या ज़मीन विवाद में अपना फैसला सुना ही दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर रामलला का अधिकार रहेगा और मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ ज़मीन अयोध्या में ही दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला हिंदुओं के पक्ष में गया। हालांकि, हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला archaeological survey of india की उस रिपोर्ट पर आधारित था, जो ASI ने वर्ष 2003 में विवादित स्थल पर खुदाई के बाद जुटाए गए सबूतों के आधार पर तैयार की थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में archaeological survey of india की रिपोर्ट को आधार बनाकर कहा गया कि विवादित स्थल की खुदाई में किसी इस्लामिक ढांचे के होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं और बाबरी मस्जिद को खाली जगह पर नहीं बनाया गया था। साथ ही चीफ जस्टिस ने यह भी साफ किया कि ASI द्वारा खुदाई में इस बात के सबूत मिले हैं कि हिन्दू वर्ष 1856 से पहले इस जगह प्रार्थना किया करते थे।

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के कहने पर दो बार ASI ने विवदित स्थल पर खुदाई की थी। पहली बार खुदाई वर्ष 1976-77 के दौरान की गई थी और दूसरी बार खुदाई वर्ष 2003 में की गयी थी। ASI ने अपनी जांच में कुछ अवशेषों को 13वीं शताब्दी से जुड़ा पाया। इसके अलावा कुछ अवशेष कुषाण, शुंग एवं गुप्ता एंपायर से जुड़े पाये गए थे। ASI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि खुदाई के दौरान उन्हें 15 बाय 15 मीटर का एक चबूतरा भी मिला था, और इस बात के भी सबूत मिले थे कि इस चबूतरे के बीच में कोई महत्वपूर्ण वस्तु रखी गयी होगी।

ASI की रिपोर्ट में एक गोलाकार मंदिर होने की भी बात कही गयी थी और कहा गया था कि वह 7वीं शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी तक के काल से जुड़ा हो सकता है। इसके अलावा 11वीं और 12वीं शताब्दी से जुड़े 50 मीटर लंबे अन्य ढांचे की भी खोज की गयी थी। ASI रिपोर्ट में सबसे अहम बात यह थी कि इसके मुताबिक विवादित मस्जिद 16वीं शताब्दी में मलबे के ऊपर बनाई गयी थी। इसी बात को कोर्ट ने अपने फैसले में भी कहा है। ASI की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख था कि विवादित मस्जिद के गुंबद के ठीक नीचे ASI को 50 स्तम्भ मिले थे। इसके अलावा ASI को बुद्ध और जैन मंदिरों के कुछ अवशेष भी मिले थे।

ASI ने अपनी इस रिपोर्ट को इलाहाबाद हाई कोर्ट को सौंप दिया था, जिसके बाद वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के अनुसार विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर को जाएगा, जिसका प्रतिनिध्त्व ‘हिंदु महासभा’ करेगा। दूसरा एक तिहाई हिस्सा ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ को और बाकी का एक तिहाई निर्मोही अखाड़े को दिए जाने का फैसला किया गया। हालांकि, इस फैसले से ना तो हिन्दू पक्ष संतुष्ट हुआ और ना ही मुस्लिम पक्ष और 9 मई 2011 में हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। एक वह तारीख थी जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा था और आज एक तारीख है जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। यह फैसला हिंदुओं के पक्ष में गया है और इसमें ASI की रिपोर्ट ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है।

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