सुप्रीम कोर्ट का फैसला: अयोध्या में बनेगा भव्य राम मंदिर, मुस्लिम पक्ष को दी जाए दूसरी जगह जमीन

अयोध्या

वर्ष 1853, वह ऐसा पहला वर्ष था जब अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर पहली बार विवाद खड़ा हुआ। वर्ष 1950 में यह मामला पहली बार कोर्ट पहुंचा और तब से यह मामला एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट की चक्कर ही काट रहा था। हालांकि, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में इस वर्ष 6 अगस्त को इस केस में रोजाना सुनवाई हुई, और 16 अक्टूबर को इस केस की सुनवाई पूरी हुई और आज आखिर फैसला आ ही गया। फैसले में इन बातों को शामिल किया गया :
1. खाली ज़मीन पर बाबरी मस्जिद नहीं बनी थी।
2. विवादित स्थल पर खुदाई में जो मिला, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।
3. यह विवादित है ही नहीं है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए या नहीं।
4. आस्था और विश्वास पर कोई विवाद नहीं हो सकता।
5. मुस्लिमों के पास इस ज़मीन का विशेष कब्जा नहीं है।
6. अंग्रेजों के जमाने तक विवादित स्थल पर नमाज़ के सबूत नहीं हैं।
7. ढांचा गिराना कानून व्यवस्था का उल्लंघन था।
8. इस बात के सबूत हैं कि भगवान राम का जन्म विवादित ढांचे के अंदर हुआ था।
9. मुस्लिमों को दूसरी जगह दी जाये।

10. सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही वैकल्पिक जमीन देने का फैसला.

11. राम जन्मभूमि न्यास को सी गयी विवादित जमीन

12. मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश.
यानि कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों का कोई अधिकार नहीं है और मुस्लिमों को कोई और जगह दी जाएगी।
यह फैसला 5 जजों की बेंच ने सुनाया। बेंच में जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे।
बता दें कि हिंदुओं का पहले से ही यह दावा था कि यहां पर पहले मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनवायी गयी। वहीं मुस्लिम समुदाय का दावा एकदम इसके उलट था। माना जाता है मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मस्जिद का निर्माण किया था जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। आपको बता दें, इस मस्जिद का निर्माण मीर बाकी ने अपने बादशाह बाबर के नाम पर किया था।
इस मामले में 6 दिसंबर 1992 की तारीख इतिहास के पन्नों में सबसे महत्वपूर्ण तिथि के तौर पर दर्ज हो गई। बता दें, हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दी थी और एक अस्थाई राम मंदिर बना दिया था। इसके बाद ही पूरे देश में चारों ओर सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इसमें करीब 2000 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
जैसा हमने आपको बताया 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था। जिसके बाद जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में दर्ज किया गया था। इस मामले में हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ की जमीन पर अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले के अनुसार जमीन का एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर को जाएगा, जिसका प्रतिनिध्त्व ‘हिंदु महासभा’ करेगा। दूसरा एक तिहाई हिस्सा ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ को और बाकी का एक तिहाई निर्मोही अखाड़े को दिए जाने का फैसला किया गया। हालांकि, इस फैसले से ना तो हिन्दू पक्ष संतुष्ट हुआ और ना ही मुस्लिम पक्ष और 9 मई 2011 में हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। एक वह तारीख थी जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा था और आज एक तारीख है जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।

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