गाड़ी गलत चलाई तो लाखों का जुर्माना लगना तय, लेकिन पैदल यात्री सड़कों पर ‘मूनवॉक’ करे तो उसका क्या?

मुंबई

हमारे देश के साम्राज्यवादी शासकों ने केवल अपनी जेबें गरम करने हेतु भारत का शोषण किया। जब अंग्रेजों ने भारत में कदम रखा था, तो विश्व जीडीपी में हमारा हिस्सा 20 प्रतिशत से भी ज़्यादा था, और जब उन्होंने हमारा देश छोड़ा, तो हमारा देश दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक हो चुका था।

परंतु अंग्रेजों ने कुछ अच्छे काम भी किए, जिनसे हमें सीख लेनी चाहिए। उदाहरण के लिए देखें तो इस देश में अंग्रेजों द्वारा स्थापित शहरों का अर्बन डिज़ाइन हमारे कई आधुनिक शहरों से बेहतर है। मुंबई इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है। अंग्रेजों के समय में निर्मित दक्षिणी मुंबई में उचित ड्रेनेज सिस्टम है, पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए उचित इनफ्रास्ट्रक्चर है और एक बढ़िया पावर सप्लाई सिस्टम के साथ अन्य कई सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

लेकिन, उत्तर मुंबई, जो स्वतंत्र के पश्चात विकसित हुआ, उचित शहरी इनफ्रास्ट्रक्चर से वंचित रहा है। यहाँ का ड्रेनेज सिस्टम खराब है, कोई पैदल यात्री इनफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, और फुटपाथ पर  अक्सर फेरीवालों का कब्जा रहता है। अधिकांश भारतीय शहरों के साथ समस्या यह है कि पैदल यात्रियों के लिए आवश्यक इनफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं है। आज वैश्विक आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक लोग शहरों में रहते हैं और यही भारत के लिए बहुत जल्द सच भी सिद्ध होगा।

विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, भारतीय सड़कों पर फुटपाथ की सुविधा 30 प्रतिशत से भी कम है। परंतु अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में स्थिति में काफी बदलाव आया था और देश के विभिन्न शहरों और हिस्सों को जोड़ने के लिए राजमार्ग यानि हाइवे के निर्माण कार्य शुरू हो गये थे। परन्तु  इंट्रा सिटी कनेक्टिविटी जस की तस बनी रही। जिसने भी मुंबई का दौरा किया या बॉलीवुड की फिल्में देखीं हैं, उसे पता है कि एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करने में मुंबईकरों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई भारतीय सड़कें तो चलने योग्य भी नहीं हैं।

ऐसे में यह आवश्यक होता है कि इंट्रा-सिटी कनेक्टिविटी के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा हो और पैदल चाल या पैदल यात्री इनफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित करना हो। यदि सड़क का उपयोग वाहन के माध्यम से यात्रा करने के साथ-साथ पैदल चलने के लिए किया जा रहा है, तो यह यातायात की समस्या पैदा करेगा जो पैदल चलने वाले यात्रियों यात्रियों के लिए काफी असुरक्षित है, और यह हमारे कई शहरों में देखा जा सकता है।

हर वर्ष पैदल चलने वाले कई यात्री बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण मारे जाते हैं या घायल हो जाते हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार, अधिकांश लोग सड़कों पर चलने में असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि हर दिन हम सुनते हैं कि कोई न कोई हादसे का शिकार हो जाता है। इसके पीछे का प्रमुख कारण फुटपाथ, अंडरपास, ओवरपास और पक्के सड़कों का अभाव है। अधिकांश सड़कों पर फुटपाथों की कमी है और ​​अगर फुटपाथ है भी, तो उनका उपयोग या तो फेरीवालों द्वारा या वाहन मालिकों द्वारा पार्किंग के लिए किया जाता है। पैदल चलने वालों के लिए कोई जगह फिर बचती नहीं है।

अधिकांश शहरों में, आपको उन्हीं सड़कों पर चलना होगा जिनपर वाहन चलते हैं, और उसे बिना अंडरपास या ओवरपास के सड़क पार करना होगा। इसलिए, हमारे शहरों को सुरक्षित बनाने के लिए, पैदल यात्री इनफ्रास्ट्रक्चर (फुटपाथ, शेड और साइनेज) का निर्माण किया जाना चाहिए। इससे वाहनों की गति में भी सुधार होगा क्योंकि चालकों को सड़क पार करने वाले व्यक्ति के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी। दूसरा, इससे पैदल चलने वाले यात्रियों को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। जब एक उचित पैदल यात्री के लिए इनफ्रास्ट्रक्चर होगा,तो मोटर वाहन अधिनियम की तरह ही एक पैदल यात्री के लिए भी अधिनियम लागू किया जा सकता है। और, अगर गलती हुई तो पैदल चलने वालों को दंडित किया जा सकता है।

वर्तमान में, भारतीय यातायात प्रणाली ‘सामाजिक न्याय के सिद्धांत’ पर काम करती है, न कि ‘विधि’ के अनुसार’। यदि कोई वाहन रास्ते पर चल रहे व्यक्ति से टकराता है, तो चालक को दोषी माना जाता है। इसी तरह, अगर बड़े वाहन अपने छोटे समकक्ष को टक्कर मारता है, तो बड़े वाहन का चालक ही दोषी माना जाता है, चाहे गलती किसी की भी हो।

न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे सावधानी बरतना वाहन चालक की जिम्मेदारी है, न कि पैदल चलने वाले यात्री की। निर्णय के अनुसार,“सभी व्यक्तियों को सड़क पर चलने का अधिकार है और वाहन चलाने वाले व्यक्ति उचित सावधानी के साथ वाहन चलाए। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि जो लोग सड़क पर पैदल चल रहे हैं वो अपने जोखिम पर सडक पर चल रहे हैं।

2009 में, संजीव सान्याल ने इकोनॉमिक टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने तर्क दिया, “पैदल चलने वालों के लिए जगह बनाना सामाजिक संपर्क और समावेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तरीका है, क्योंकि अमीर और गरीब दोनों पैदल चल सकते हैं। दूसरे शब्दों में, चलने की क्षमता केवल पैदल-पथ और ओवरपास के बारे में नहीं है, बल्कि शहरी घनत्व, सार्वजनिक परिवहन, सार्वजनिक स्थान, सामाजिक सामंजस्य और शहरी चर्चा के बारे में है। इनमें से प्रत्येक बात शहर के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन चलने की क्षमता एक प्रतिमान है जो सभी को घेर लेती है” –

जब पैदल यात्रियों के लिए बुनियादी सुविधा उपलब्ध होगी, तो कानून व्यवस्था सुचारु होगी  और न्याय सामाजिक आधार पर नहीं, वास्तविकता के आधार पर दिया जाएगा। संजीव सान्याल वित्त मंत्रालय के लिये प्रमुख आर्थिक सलाहकार भी रह चुके हैं और वे वॉकेबल शहरों के पुरोधा भी हैं। उनके अनुसार मुंबई एवं न्यूयॉर्क वॉकेबिलिटी के पैमाने पर काफी इंक्लूसिव भी है। उनके अनुसार, “आप अमीर हो या गरीब, आपको मुंबई के सब वे का उपयोग करना ही पड़ेगा, क्योंकि वह किसी भी जगह तक पहुँचने का सबसे सुगम माध्यम है”।

इसलिए, पैदल यात्री के लिए उचित सुविधाओं वाले शहर सुरक्षित माने जाते हैं और यातायात दक्षता के मामले में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा, ये शहर सामाजिक रूप से समावेशी हैं और विभिन्न वर्ग, जाति और लिंग के लोगों के बीच बातचीत के लिए बेहतर फुटपाथ प्रदान करते हैं। हम आशा करते हैं कि केंद्र सरकार इस युक्ति पर विचार करेगी एवं इसका क्रियान्वयन करने में कोई कोताही नहीं बरतेगी।

Exit mobile version