जब बात फेक न्यूज के जरिये दो समुदायों में विवाद बढ़ाने की हो, तो अपने मीडिया में द वायर और द क्विंट का कोई तोड़ नहीं है। इसकी एक और बेजोड़ मिसाल पेश करते हुए दोनों न्यूज़ पोर्टल्स ने एक आपसी झड़प को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया।
द वायर ने एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, “कश्मीरियों को आतंकी कहकर संबोधित किया और साथी छात्रों द्वारा पीटा गया।
इस लेख में द वायर की श्रुति जैन कहती हैं, “पुलिस के अनुसार दोपहर में छात्रों में झड़प हुई, क्योंकि एक कश्मीरी विद्यार्थी को गेट पास मिला, और बिहार के एक विद्यार्थी को ऐसा नहीं मिला। एफ़आईआर में लिखा गया है, “बिहार के विद्यार्थी ने सेक्युरिटी गार्ड से बहस करते हुए कश्मीरी विद्यार्थी को गाली दी। जब कश्मीरी विद्यार्थियों को इस बारे में पता चला, तो दोनों गुटों में हिंसक झड़प हो गयी”।
Rajasthan: Kashmiris Called 'Terrorists', Thrashed by Fellow Students | @astute_shruti reports https://t.co/TpF9e9x2zQ via @thewire_in
— Siddharth (@svaradarajan) November 23, 2019
पिटने वाले विद्यार्थियों में से एक, बिलाल अहमद ने द वायर को बताया, “बिहार के विद्यार्थियों ने हमसे बहुत बदतमीजी की। उन्होंने हमें आतंकी भी बोला”।
इसी तरह द क्विंट ने अपने लेख का शीर्षक छापा, “मेवाड़ विश्वविद्यालय में कश्मीरियों को पीटा गया और कथित रूप से आतंकी भी कहा गया”। अपने लेख में द क्विंट ने द वायर का न केवल अनुमोदन किया, बल्कि जम्मू एवं कश्मीर स्टूडेंट असोसिएशन के छात्र नासिर खुएहामी का भी बयान रिकॉर्ड किया, जिन्होंने इस विवाद के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग की।
The Quint reported that Kashmiris in Mewar university thrashed, allegedly called ‘Terrorists’ by fellow students.
But The Quint didn't tell that those fellow students are Aadil, Nazar Hayat, Sunil, Zeeshan, Salman, Abhijeet, Mohammed Rubbani.
And, No one blaming Rajasthan Govt. https://t.co/DMsC1Y5937
— Anshul Saxena (@AskAnshul) November 24, 2019
परंतु द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट ने इन दोनों पोर्टलों की पोल खोलकर रख दी। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ‘’पुलिस ने बिहार के चार छात्रों और कुछ अन्य छात्रों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई है। पुलिस और कश्मीरी छात्रों ने कहा कि हमला एक आपसी विवाद के कारण हुआ था, इसलिए नहीं कि पीड़ित कश्मीरी मुसलमान थे”।
https://indianexpress.com/article/india/fir-filed-after-students-clash-in-chittorgarh-private-college-police-6134039/
चित्तौड़गढ़ की एडिशनल एसपी सरिता सिंह के अनुसार ‘हमें जानकारी मिली थी कि निजी विश्वविद्यालय में छात्रों के दो समूहों के बीच झड़प हुई थी। परिसर से बाहर निकलने के लिए कश्मीरी छात्रों के गेट पास होने के बारे में बिहार के कुछ छात्रों को बताया गया था। बाद में, बिहार के छात्रों ने भी पास हासिल कर लिया और कॉलेज परिसर के बाहर दोनों समूहों के बीच एक बहस छिड़ गई, जो बाद में झड़प में परिवर्तित हो गयी’।
एक कश्मीरी विद्यार्थी ने नाम न छापने की शर्त पर द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “वे (बिहार के छात्र) हमसे नाराज थे क्योंकि हमें बाहर जाने के लिए पास मिल रहा है। हम मिल्कशेक और अन्य खाने की चीजें खरीदने के लिए एक दुकान पर बाहर गए … हम में से अधिकांश रग्बी टीम में खेलते हैं। बाद में रात के खाने के समय बिहार के छात्रों ने हमें घेर लिया। हमारे धर्म के कारण हम पर हमला नहीं किया गया और क्योंकि दूसरे पक्ष के लोग भी मुसलमान थे”।
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब द वायर ने बेशर्मी से फेक न्यूज़ प्रकाशित की हो। 2018 में द वायर ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें एक वीडियो था। इस वीडियो में अभिसार शर्मा ने ये दावा किया था कि अमृतसर में लोगों को दुर्घटना का शिकार बनाने वाली ट्रेन डीएमयू पर लगी टॉप लाइट उस दिन काम नहीं कर रही थी जिसके कारण ट्रेन के ड्राइवर को ट्रैक पर लोगों का भारी जमावड़ा नहीं दिखा। जबकि हकीकत ये है कि अमृतसर में जिस ट्रेन हादसे में लोगों की जान गई थी वो पुराने मॉडल का लोकोमोटिव इंजन था जिसमें टॉप लाइट की कोई व्यवस्था नहीं थी। जब अभिसार शर्मा को अपनी इस गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने शर्मनाक तरीके अपने प्रोपेगंडा वीडियो के तहत बचाव किया था और रेलवे के सुरक्षा मानकों पर सवाल उठाये थे।
हालांकि, हमने अपनी रिपोर्ट में वायर और अभिसार शर्मा के झूठ का पर्दाफाश किया था। अंततः जब द वायर का झूठ पकड़ा गया और उन्होंने अभिसार शर्मा के इस वीडियो को डिलीट कर दिया लेकिन फिर भी अपनी इस गलती के लिए द वायर ने कोई माफ़ी नहीं मांगी और ना ही अभिसार शर्मा ने इसके लिए कोई खेद जताया है।
इसी तरह जब गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान को हटवाया, तो द वायर और द क्विंट ने कश्मीर के संबंध में फेक न्यूज़ फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ा, जिसका फ़ायदा बीबीसी जैसे एजेंडावादी चैनल ने जमकर उठाया।
द वायर और द क्विंट के फेक न्यूज इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि अभी भी हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें किसी प्रकार की शांति अथवा समृद्धि प्रिय नहीं है। यदि कोई न लड़ना चाहे, तो भी ज़बरदस्ती लड़ाई करवाने के लिए ऐसे न्यूज़ पोर्टल्स तत्पर रहते हैं, क्योंकि कश्मीर और अयोध्या जैसे मामलों में केंद्र सरकार की चुस्ती और फुर्ती के कारण उन्होंने अपना फेक न्यूज फैलाने का सुअवसर नहीं मिल पाया है।