‘मेड इन चाइना’ हथियारों को डंप कर रही है पूरी दुनिया, उन्हीं बेकार हथियारों को गले लगा रहा पाकिस्तान

ड्रोन

(PC: South China Morning Post)

चीन यूं तो पूरी दुनिया के ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ के रूप में जाना जाता है, लेकिन गुणवत्ता के मामले में चीन में बनी वस्तुओं का ट्रैक रिकॉर्ड आजतक खराब ही रहा है। चीन ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए शुरू से ही गुणवत्ता बढ़ाने के मुक़ाबले वस्तुओं का दाम कम करने पर की नीति पर काम करता आया है। यही कारण है कि अब धीरे-धीरे वैश्विक ग्राहक चीन से दूर भागते नज़र आ रहे हैं और इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव चीन के डिफेंस एक्सपोर्ट पर पड़ना तय है। दरअसल, अब कुछ देश चीन से खरीदे गए सुरक्षा उपकरणों से पूरी तरह तंग आ चुके हैं और कैसे भी करके उन उपकरणों से छुटकारा पाना चाहते हैं। चीन का सीएच4 किलर ड्रोन भी ऐसे ही उपकरणों का एक उदाहरण है। चीन ने इसे अमेरिका के एमक्यू-1 प्रीडेटर के मुक़ाबले का ड्रोन कहकर प्रचारित किया और इसकी कम कीमत ने पश्चिमी एशिया के कई देशों को आकर्षित किया और यह चीनी ड्रोन बेहद लोकप्रिय हो गया। हालांकि, अब यह सभी देश इससे छुटकारा पाना चाहते हैं।

उदाहरण के तौर पर जॉर्डन ने चीन से ऐसे 4 सीएच4 ड्रोन खरीदे थे, लेकिन इस साल जून में उसने अपने सभी ड्रोन्स को बेचने के लिए प्रदर्शित कर दिया। जॉर्डन ने आज से तीन साल पहले चीन ने इन ड्रोन्स को भी खरीदा था। हालांकि, अब वह इन ड्रोन्स छुटकारा पाना चाहता है। इसका कारण है कि इन ड्रोन्स को ऑपरेट करने के लिए ज़्यादा खर्चा आता है, और खरीद के समय ये जितने सस्ते दिखाई देते हैं, उतने होते नहीं हैं। अब ये सभी देश इस जद्दोजहद में हैं कि ये अपने चीनी ड्रोन्स को बेचकर अमेरिकी ड्रोन्स को खरीद सकें।

पिछले महीने अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेन्ट के अधिकारियों ने भी पूरी दुनिया को आगाह किया था कि चीन में बने सुरक्षा उपकरण लेकर वे दुश्मन सैनिकों के लिए नहीं, बल्कि अपने ही सैनिकों के लिए खतरा मोल ले रहे हैं। एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि जब केन्या ने चीन से NORINCO VN-4 armoured personnel carriers खरीदने के सौदा किया, तो टेस्ट फायरिंग के समय चीनी अधिकारियों ने उस carrier में बैठने से साफ मना कर दिया। इस अमेरिकी अधिकारी ने यह भी खुलासा किया था कि चीन सस्ते हथियारों को बेचकर सामने वाले देश पर अपना प्रभाव बढ़ाता है और फिर उन देशों से खूफिया सूचना जुटाने का काम करता है।

बता दें कि अभी पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा defense importer देश है, और चीन ने अपने दोयम दर्जे के उपकरणों से पाकिस्तान के रक्षा क्षेत्र को खोखला बना दिया है। वर्ष 2007 के बाद से चीन एक बड़े डिफेंस एक्स्पोर्टर देश के रूप में उभरा है और उसने अपने अधिकतर हथियारों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों को ही एक्सपोर्ट किए हैं।

वर्ष 2007 से लेकर अब तक चीन पाकिस्तान को 6.57 बिलियन यूनिट हथियार बेच चुका है, और इनमें से अधिकतर की गुणवत्ता संदेह के घेरे में ही है। गुणवत्ता ही सबसे बड़ा कारण है कि चीन से कोई भी विकसित देश हथियार नहीं खरीदता। जब यूके ने चीन के 4 अटैक हेलिकॉप्टर खरीदे थे, तो उनमें से एक डिलिवरी के कुछ समय बाद ही क्रैश हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ था कि यूके ने चीन के साथ अन्य हथियारों की खरीददारी की बातचीत को तुरंत रोक दिया था। इसके अलावा एक अन्य मामले में जब सितंबर 2016 को इंडोनेशिया की नेवी समुद्र में exercise कर रही थी, तो चीन में बनी मिसाइल अपने टार्गेट को निशाना बनाने में पूरी तरह चूक गयी थी। यह सबसे ज़्यादा शर्मिंदा करने वाला पल था, क्योंकि उस वक्त इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो स्वयं वहाँ मौजूद थे। वहीं अब पाकिस्तानी सेना में ऐसे हथियारों की भरमार हो चुकी है।

चूंकि, पाकिस्तान और भारत हमेशा तनाव की स्थिति में रहते हैं, इसलिए कोई देश पाकिस्तान को हथियार बेचकर भारत को नाराज़ नहीं करना चाहता, जिसके कारण पाकिस्तान के पास हथियार खरीदने के लिए तुर्की और चीन के अलावा कोई और विकल्प बचता नहीं है। हालांकि, जॉर्डन से सीख लेकर बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों को जरूर अपने सैनिकों की ज़िंदगी सुरक्षित रखने के लिए चीनी हथियारों का बहिष्कार करने की ज़रूरत है।

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