हॉन्ग-कॉन्ग को बर्बाद करके शंघाई और शेनज़ेन को वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है चीन

हॉन्ग-कॉन्ग

जुलाई-सितंबर तिमाही में हॉन्ग-कॉन्ग की अर्थव्यवस्था में पिछली तिमाही के मुक़ाबले 3.2 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज़ की गई थी। जानकारों का अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष में हॉन्ग-कॉन्ग की अर्थव्यवस्था में और गिरावट देखने को मिल सकती है। वर्ष 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद हॉन्ग-कॉन्ग का यह सबसे बुरा प्रदर्शन है। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? यह तो आपको पता ही है कि हॉन्ग-कॉन्ग में लोकतन्त्र समर्थक लोग लोकतंत्र की स्थापना के लिए लगातार मांग कर रहे हैं और चीन अभी तक इन प्रदर्शनों को रोकने में नाकाम रहा है, और ना ही चीनी सरकार की ओर से इन लोगो की मांग को पूरा करने के लिए कोई तत्परता दिखाई गयी है। यह इसलिए हो सकता है क्योंकि चीन हॉन्ग-कॉन्ग की अर्थव्यवस्था को जान-बूझकर कमजोर करना चाहता है ताकि चीन के आंतरिक शहर जैसे शंघाई और शेनज़ेन की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके।

बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र माना जाता है। न्यूयॉर्क और लंदन के बाद हॉन्ग-कॉन्ग दुनिया के सबसे प्रतिद्वंधी वित्तीय बाज़ारों में गिना जाता है। वहीं दूसरी ओर चीन के अन्य शहर जैसे शंघाई और शेनज़ेन को दुनिया का 5वां और 7वां सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र माना जाता है। चीन अपने इन दोनों शहरों को अब एशिया का सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र बनाना चाहता है।

बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज के जरिये ही चीन में काम करने वाली अधिकतर कंपनियाँ अपने IPOs को बाज़ार में प्रस्तुत करती है। वर्ष 2010 से वर्ष 2018 के बीच में चीन की 73 प्रतिशत कंपनियों ने अपने IPOs को हॉन्ग कॉन्ग शेयर बाज़ार में उतारा था। इसके अलावा चीन में विदेशी बॉन्ड को जारी करने में भी इस शहर का 60 प्रतिशत योगदान रहता है। कुल मिलाकर पूंजी को जुटाने के लिए चीनी कंपनियाँ ज़्यादातर हॉन्ग-कॉन्ग के भरोसे ही रहती हैं।

यही कारण है कि चीन हॉन्ग-कॉन्ग से इतना घबराता है। चीन चाहता है कि जो वित्तीय शान आज हॉन्ग कॉन्ग के पास है, वह चीन के आंतरिक शहरों जैसे शेनज़ेन या शंघाई के पास आ जाये क्योंकि इन शहरों पर चीन का ज़्यादा कंट्रोल है। इसीलिए चीन धीरे-धीरे हॉन्ग-कॉन्ग को तबाह करना चाहता है, और इसकी शुरुआत उसने कर भी दी है।

वैश्विक बाज़ार के कुछ एक्स्पर्ट्स यह पहले ही कह चुके हैं कि चीन शंघाई को ईस्ट एशिया का सबसे बड़े वित्तीय केंद्र के रूप में विकसित करना चाहता है। जब हॉन्ग-कॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज को खरीदने की पेशकश की थी, तो LSE के मुख्य अधिकारी ने कहा था कि वे हॉन्ग-कॉन्ग को भविष्य का आर्थिक केंद्र नहीं मानते। उन्होंने कहा था कि वे शंघाई को चीन का आर्थिक केंद्र मानते हैं।

हॉन्ग-कॉन्ग की जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि हॉन्ग कॉन्ग में आर्थिक गतिविधियां कम हुई हैं। चीन की कम्युनिस्ट सरकार जान-बूझकर हॉन्ग-कॉन्ग के कॉर्पोरेट मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, ताकि शहर को अस्थिर किया जा सके। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘अकाउंटिंग, बैंकिंग, कॉर्पोरेट लाइफ पर जैसे-जैसे सरकार का प्रभाव बढ़ता जाएगा, तो पहले ही हॉन्ग कॉन्ग में काम करने वाली कंपनियाँ यहाँ से काम बंद कर किसी और जगह जाना पसंद करेंगी’।

कई सालों तक चीन की कंपनियों और सरकार ने हॉन्ग कॉन्ग का वित्तीय इस्तेमाल सिर्फ इसलिए किया क्योंकि चीन के अन्य शहरों में ना तो हॉन्ग-कॉन्ग जैसा इनफ्रास्ट्रक्चर था और ना ही अन्य सुविधाएं। लेकिन अब चीन के शंघाई और शेनज़ेन जैसे शहरों ने अपने आप को काफी हद तक विकसित कर लिया है, जिसके बाद अब चीनी सरकार वित्तीय केन्द्र को अपने आंतरिक शहरों में लाना चाहती है।

चीन की कई नई कंपनियाँ पहले ही शंघाई और शेनज़ेन के वित्तीय बाज़ारों का उपयोग कर रही हैं लेकिन चीन की सरकार चाहती है कि पुरानी कंपनियाँ भी हॉन्ग-कॉन्ग छोड़कर उसके इन आंतरिक शहरों में आकार काम करे। कुल मिलाकर सरकार हॉन्ग-कॉन्ग में हो रहे लोकतन्त्र-समर्थक प्रदर्शनों को अपने हित में इस्तेमाल करना चाहती है और अपने दो बड़े शहरों, शंघाई और शेनज़ेन को वित्तीय केंद्र के रूप में विकसित करना चाहती है।

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