भारत के पड़ोसी मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 5 साल जेल की सजा सुनाई गई है, और इसी के साथ ही कोर्ट द्वारा उनपर 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया है। उनपर आरोप था कि उन्होंने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए देश के कुछ द्वीपों को अवैध तरीके से लीज़ पर दे दिया था और इसके बाद उनके खाते में 10 लाख अमेरिकी डॉलर जमा करवाए गए थे।
बता दें कि अब्दुल्ला यामीन वर्ष 2013 से वर्ष 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे थे, और इस दौरान उन्होंने जमकर चीन के पक्ष में नीतियां बनाई थी। यही कारण था कि वर्ष 2018 में वे जब मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह से चुनावों में हारे थे, तो तब तक मालदीव पूरी तरह चीन की गिरफ्त में फंस चुका था और मालदीव पर चीन का भारी कर्ज़ हो गया था। हालांकि, बाद में भारत ने मालदीव को वित्तीय सहायता प्रदान कर उसकी अर्थव्यवस्था को सहारा दिया था।
इस पूरे प्रकरण में चीन की भूमिका को समझना अति-आवश्यक है। चीन ने यहां मालदीव के राष्ट्रपति को अपने पाले में करने के लिए बड़ी मात्रा में पैसा खिलाया और अपने पक्ष में नीति बनवाई, जिससे चीन को फायदा हो सके। लगातार 5 सालों तक चीन ने मालदीव को आर्थिक तौर पर लूटा और उनकी सरकार के अंत तक मालदीव की चीन पर निर्भरता बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी थी। नीचे दिये गए इन ग्राफ से आप इस बात को समझ सकते हैं। इस ग्राफ में पीला रंग जहां एक तरफ देश के आकार को दिखाता है, तो वहीं नीला रंग उस देश पर चीन के प्रभाव को अंकित करता है। मालदीव पर चीन का प्रभाव बहुत ज़्यादा बढ़ गया था, और ये सब हुआ था अब्दुल्ला यामीन और चीन की मिलीभगत से!
ऐसा नहीं है कि चीन ने अपनी इस रणनीति को सिर्फ मालदीव में अपनाया हो। इस बात की पूरी आशंका है कि चीन ने ठीक वैसा ही नेपाल, मलेशिया, पाकिस्तान, और मध्य एशिया के देशों में किया हो। ऐसा इसलिए क्योंकि इन सब देशों में वहां की सरकार तो चीन के पक्ष में नीति बनाती है, लेकिन इन देशों की जनता चीन को लेकर भड़की हुई है। नेपाल में जहां एक तरफ लोग और कई सांसद चीन के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, तो वहां की कम्युनिस्ट सरकार चीन का गुणगान करने में लगी है।
इसी तरह मध्य एशिया के देशों में भी चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी वर्ष कज़ाकिस्तान में चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। चीन के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन कजाकिस्तान के जानाओज़ेन (Zhanaozen) में शुरू हुए थे, जो अब इस देश के अक्तोब, अलमाटी, शिम्केंट और राजधानी नूर-सुल्तान जैसे शहरों में भी फैल चुके हैं। इन सभी विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में कज़ाकिस्तान सरकार के द्वारा हाल ही में लाया गया लैंड कोड है। इस लैंड कोड के तहत कज़ाकिस्तान सरकार किसी भी अन्य देश को अपनी ज़मीन 25 सालों के लिए लीज़ पर दे सकती है। लोगों को डर है कि इस लैंड कोड के तहत चीनी कंपनियों को वहां की ज़मीन दे दी जाएगी जिसके कारण चीन का इस देश में बेहद ज़्यादा दखल बढ़ जाएगा।
इसके अलावा कजाकिस्तान के लोग चीन द्वारा शिंजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर हो रहे ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ भी भड़के हुए हैं। अभी कजाकिस्तान में लगभग 4 लाख ऊईगर मुसलमान रहते हैं जो चीन से भागकर आए हैं। कजाकिस्तान के लोगों में शिंजियांग प्रांत में रहे रहे ऊईगर मुसलमानों के प्रति संवेदना है क्योंकि शिंजियांग में अभी लगभग 2 मिलियन कजाक मुसलमान रहते हैं। और बात सिर्फ विरोध प्रदर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि मध्य एशिया के लोगों ने अब चीनी नागरिकों पर हमला करना भी शुरू कर दिया है। किर्गिस्तान में इस वर्ष अगस्त महीने में 500 गांव वालों ने मिलकर एक खदान पर धावा बोल दिया, जहां पर चीनी कर्मचारी काम कर रहे थे। इस हमले में 20 नागरिक बुरी तरह घायल हो गए थे। हालांकि, बाद में किर्गी सरकार द्वारा उन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
चीन पूरी दुनिया में छोटे देशों को लुभावने सपने दिखाकर अपने एजेंडे में फंसाता है और जब तक सामने वाले देश को चीन की चाल समझ आती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव, अफ्रीका में केन्या और मध्य एशिया में किर्गिस्तान, ऐसे देशों की सूची बहुत लंबी है जो चीन के BRI प्रोजेक्ट से अपने हाथ जला चुके हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति का गंभीर अपराधों के तहत जेल जाना इसी बात की ओर इशारा करता है कि चीन छोटे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पैसा खिलाकर अपने पक्ष में नीतियां बनवाता है जो कि असल में उस देश की संप्रभुता के लिए घातक सिद्ध होती है।