ऑस्ट्रेलिया की खूफिया एजेंसी के पूर्व चीफ़ डंकन ल्यूइस ने अपने हाल ही के इंटरव्यू में एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि चीऩ ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में अपना प्रभाव जमाना चाहता है और इसके लिए वह बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चंदा दे रहा है। डंकन ने यह भी कहा कि चीऩ ऑस्ट्रेलियाई मीडिया पर भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है, और ऐसा करके वह ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता और इस देश के लोकतन्त्र के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। बता दें कि अभी ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर चीऩ का बहुत बड़ा प्रभाव है और ऑस्ट्रेलिया को चीऩ की बड़ी अर्थव्यवस्था का फायदा मिलता आया है। हालांकि, डंकन ने अब सरकार को चेताया है कि चीन की ओर ऑस्ट्रेलिया का ज़रूरत से ज़्यादा झुकाव ऑस्ट्रेलिया के लोकतन्त्र के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
बता दें कि डंकन पांच साल तक ऑस्ट्रेलिया की खूफिया एजेंसी ASIO के प्रमुख रह चुके हैं और वे इस साल सितंबर महीने में अपने पद से रिटायर हुए थे। अब एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का खुलासा किया है और अगर इसपर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो ऑस्ट्रेलिया को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। डंकन में अपने इंटरव्यू में कहा “जासूसी और विदेशी हस्तक्षेप बेहद नुकसानदायक होता है, और इसका प्रभाव हमें लंबे समय में देखने को मिलता है। कैसा लगेगा यही आप एक सुबह उठें और आपको पता लगे कि आपके देश में आपके हितों के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं? और सिर्फ राजनीति में नहीं, बल्कि व्यवसाय और समाज में भी”।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ दिनों पहले ही ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी के एक पावरब्रोकर को इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि उसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से कई हज़ार डॉलर का चंदा मिला था। इसी के साथ वे बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में किसी भी राजनीतिक हस्ती को निशाना बनाना आज बहुत आसान हो गया है। डंकन के मुताबिक चीन का ऑस्ट्रेलिया पर प्रभाव इतना बढ़ गया है कि ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा एजेंसियां भी चीन के कारनामों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं, और मीडिया भी चीन के प्रभाव वाले ऑस्ट्रेलिया-विरोधी प्रोजेक्ट्स के खिलाफ कोई आवाज़ नही उठा रही है। और ऐसा सब इसलिए हो रहा है क्योंकि चीऩ बड़े पैमाने पर ऑस्ट्रेलिया में निवेश कर रहा है, चंदा दे रहा है और अपने समर्थकों को ऑस्ट्रेलिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में तैनात कर रहा है।
अब आपको बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर चीऩ का किस हद तक प्रभाव है। अभी ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर चीन है। वर्ष 2017-18 में दोनों देशों के बीच करीब 195 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ।
ऑस्ट्रेलिया के कुल एक्स्पोर्ट्स का 30 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा चीऩ को ही एक्सपोर्ट होता है, यानि जितना एक्सपोर्ट ऑस्ट्रेलिया कुल मिलाकर भारत, अमेरिका, जापान और साउथ कोरिया को करता है, उतना सामान तो ऑस्ट्रेलिया केवल चीऩ को एक्सपोर्ट करता है। वर्ष 2017-18 में चीऩ को ऑस्ट्रेलिया ने 123 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का एक्सपोर्ट किया।
इसके अलावा हर साल ऑस्ट्रेलिया में चीनी सैलानी सबसे ज़्यादा पैसा खर्च करते हैं। ऑस्ट्रेलिया में विदेशी सैलानियों द्वारा खर्च किए जाने वाले कुल पैसों में चीनी नागरिकों की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से ज़्यादा है। यानि ऑस्ट्रेलिया के टूरिज़म सेक्टर भी चीन का ही बोलबाला है।
अब चीन चाहता है कि ऑस्ट्रेलिया पर इसी आर्थिक प्रभाव का कूटनीतिक लाभ उठाया जाये और ऑस्ट्रेलिया की बाज़ू मरोड़ के इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका को कम किया जाये। बता दें कि अभी इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने की जद्दोजहद करने में लगा है जबकि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया मिलकर चीन के इस एजेंडे को चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अब चीऩ चाहता है कि कैसे भी करके इस समूह में ऑस्ट्रेलिया की हिस्सेदारी को कम किया जा सके, और इसके लिए वह अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर रहा है। अगर समय रहते ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने चीऩ के इस एजेंडे के विरुद्ध कोई बड़ा कदम नहीं उठाया, तो चीज़ें ऑस्ट्रेलिया के हाथ से फिसल सकती हैं और ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता खतरे में आ सकती है।