चीन का BRI प्रोजेक्ट मध्य एशिया को बर्बाद कर रहा है और लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं

चीन का मास्टर प्रोजेक्ट इस समय सबसे कठीन दौर से गुजर रहा है!

चीन

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और भारत के पड़ोसी चीन के महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट के बारे में तो आज पूरा विश्व जानता है, या कहिए कि आधा विश्व चीन के BRI प्रोजेक्ट से जूझ रहा है। चीन ने बड़ी ही चालाकी से अपने पड़ोस के छोटे-बड़े देशों को यह कहकर लुभाया कि वह लोन देकर उसके देश में सड़कों का जाल बिछाएगा, जिसके बाद उस देश की कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी और उसकी अर्थव्यवस्था के विकास की दर में इजाफा होगा। हालांकि, पहले तो साउथ ईस्ट एशियाई देशों में इस प्रोजेक्ट के खिलाफ आवाजें उठने लगी, फिर धीरे-धीरे अफ्रीका के देशों में चीन के प्रति अविश्वास की भावना बढ़ने लगी, और अब मध्य एशिया में चीन के इस BRI प्रोजेक्ट के खिलाफ आवाज़े उठने लगी है। चीन बीआरआई प्रोजेक्ट के माध्यम से मध्य एशिया के देशों को अपने कर्ज़ के जाल में फंसाता चला जा रहा है, और अब वहां के लोगों ने चीन के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ दिया है। चीन कैसे अपनी बड़ी अर्थव्यवस्था की मदद से मध्य एशिया के छोटे देशों पर आर्थिक युद्ध थोप रहा है, यह आप ताजिकिस्तान और कज़ाकिस्तान जैसे देशों के आर्थिक आंकड़ों को देखकर समझ सकते हैं।

People protest against the construction of Chinese factories in Kazakhstan during a rally in Almaty, Kazakhstan September 4, 2019. REUTERS/Pavel Mikheyev

 

चीन के BRI प्रोजेक्ट में मध्य एशिया देशों को खास जगह दी गयी थी। वह इसलिए क्योंकि इन्हीं देशों के माध्यम से चीन को यूरोप तक पहुंच मिल पाती। चीन के महत्वकांक्षी सिल्क रूट का यही देश हिस्सा थे। यहां चीन ने भारी मात्रा में पैसा भी निवेश किया। हालांकि, अब इन देशों के लोगों को लगता है कि चीन उनके देश पर ना सिर्फ अपना आर्थिक प्रभुत्व बढ़ाता जा रहा है, बल्कि चीन अपनी संस्कृति को भी उनपर थोपने की कोशिश कर रहा है।

एक तरफ कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेज्किस्तान जैसे देशों पर चीन का कर्ज़ बढ़ता जा रहा है, तो वहीं इन देशों में मौजूद चीनी लोग अपनी संस्कृति को क्षेत्रीय लोगों पर थोप रहे हैं।

इसकी शुरुआत वर्ष 2017 में होती है, जब कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेज्किस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बीजिंग में BRI फोरम की बैठक के लिए पहुंचे थे। इन सब देशों ने मिलकर चीन के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई थी। कुछ प्रोजेक्ट कनेक्टिविटी से जुड़े थे, तो कुछ ऊर्जा से, और सभी को यह सपना दिखाया गया था कि कुछ सालों के बाद उनके देशों में सब अच्छा होने लगेगा। लेकिन महज़ दो सालों के भीतर ही सब कुछ पटरी से उतर चुका है। कई प्रोजेक्ट शुरू होकर अधर में लटक चुके हैं, और कई प्रोजेक्ट्स अभी तक सिर्फ कागज़ पर ही हैं। लेकिन इतने समय में इन देशों पर चीन का कर्ज़ बड़ी मात्रा में बढ़ चुका है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, किर्गिस्तान ने अपने कुल कर्ज़ का 41 प्रतिशत हिस्सा चीन से लिया है, तो वहीं ताजिकिस्तान के कुल कर्ज़ का 53 प्रतिशत हिस्सा चीन से उधार लिया हुआ है। किर्गिस्तान की बात करें तो वर्ष 2008 में उसपर चीन का कर्ज़ महज़ 9 मिलियन था, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 1.7 बिलियन हो गया। 1.7 बिलियन किर्गिस्तान की जीडीपी का 24 प्रतिशत है।

किर्गिस्तान इस हद तक कर्ज़ में डूब गया है जहां से उबर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल होने वाला है। किर्गिस्तान पर 4 बिलियन डॉलर का कर्ज़ हो गया है, जबकि उसकी जीडीपी महज़ 7 बिलियन डॉलर की है। ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों में प्राकृतिक संसाधन भी इतनी मात्रा में नहीं हैं कि वे बीजिंग को कर्ज़ के बदले कुछ और ऑफर कर सकें।

यह तो सिर्फ आर्थिक आंकड़ों की बात हुई। चीन इन देशों पर एक योजनाबद्ध तरीके से सांस्कृतिक हमला भी बोल रहा है। 1 अक्टूबर, जब दुनियाभर में सभी चीनी लोग अपना राष्ट्रीय दिवस मनाते हैं, तो उस दिन मध्य एशियाई देशों में बसे चीनी लोगों ने भी परेड निकालकर, कॉन्सर्ट और उत्सव का मंचन किया था। यहां तक कि किर्गिस्तान की यूनिवर्सिटीज़ में भी चीन का राष्ट्रीय दिवस बड़े धूम-धाम से मनाया गया था। ये सभी चीनी लोग BRI प्रोजेक्ट के तहत काम करने के लिए लेबर के तौर पर ही इन देशों में आकर बसे हैं। यानि जगह भी उन देशों की, पैसा भी उन देशों का, लेकिन रोजगार सिर्फ चीनी नागरिकों के लिए। सबसे बुरी बात यह है कि मध्य देशों की सरकार इस सब पर आंख बंद करे बैठी है, लेकिन लोगों में इसको लेकर बेहद गुस्सा है।

इसी वर्ष कज़ाकिस्तान में चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। चीन के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन कजाकिस्तान के जानाओज़ेन (Zhanaozen) में शुरू हुए थे, जो अब इस देश के अक्तोब, अलमाटी, शिम्केंट और राजधानी नूर-सुल्तान जैसे शहरों में भी फैल चुके हैं। इन सभी विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में कज़ाकिस्तान सरकार के द्वारा हाल ही में लाया गया लैंड कोड है। इस लैंड कोड के तहत कज़ाकिस्तान सरकार किसी भी अन्य देश को अपनी ज़मीन 25 सालों के लिए लीज़ पर दे सकती है। लोगों को डर है कि इस लैंड कोड के तहत चीनी कंपनियों को वहाँ की ज़मीन दे दी जाएगी जिसके कारण चीन का इस देश में बेहद ज़्यादा दखल बढ़ जाएगा।

इसके अलावा कजाकिस्तान के लोग चीन द्वारा शिंजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर हो रहे ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ भी भड़के हुए हैं। अभी कजाकिस्तान में लगभग 4 लाख ऊईगर मुसलमान रहते हैं जो चीन से भागकर आए हैं। कजाकिस्तान के लोगों में शिंजियांग प्रांत में रहे रहे ऊईगर मुसलमानों के प्रति संवेदना है क्योंकि शिंजियांग में अभी लगभग 2 मिलियन कजाक मुसलमान रहते हैं। और बात सिर्फ विरोध प्रदर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि मध्य एशिया के लोगों ने  अब चीनी नागरिकों पर हमला करना भी शुरू कर दिया है। किर्गिस्तान में इस वर्ष अगस्त महीने में 500 गाँव वालों ने मिलकर एक खदान पर धावा बोल दिया, जहां पर चीनी कर्मचारी काम कर रहे थे। इस हमले में 20 नागरिक बुरी तरह घायल हो गए थे।

Source- http://invest.gov.kz/

मध्य एशिया के देशों में चीन के खिलाफ उठती आवाज़ फिर से चीन की कर्ज़ जाल की नीति का खुलासा करती है। चीन पूरी दुनिया में छोटे देशों को लुभावने सपने दिखाकर अपने एजेंडे में फँसाता है और जब तक सामने वाले देश को चीन की चल समझ आती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव , अफ्रीका में केन्या और मध्य एशिया में किर्गिस्तान, ऐसे देशों की सूची बहुत लंबी है जो चीन के BRI प्रोजेक्ट से अपने हाथ जला चुके हैं और दुर्भाग्य से भविष्य में ऐसे देशों की सूची लंबी होने का अनुमान है।

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