महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का खिचड़ी सरकार बनना लगभग तय है। भाजपा से बगावत करके गठबंधन तोड़ने वाली शिवसेना कुर्सी की लालच में लगातार अपनी पार्टी लाइन से दूर जा रही है। दरअसल, कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना को कथित तौर पर सलाह दी है कि वे इस खिचड़ी गठबंधन का नाम महाशिव आघाड़ी से बदलकर महाविकास अगाड़ी यानि प्रोग्रेसिव अलायंस रखें। इस खबर के बाद महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में इस गठबंधन को लेकर बहस तेज हो गई है। ऐसा लगता है कि यह राज्य भाजपा के लिए शिवसेना पर तंज कसने का रास्ता और भी आसान हो गया है, जिसने गुरुवार को शिवसेना पर आरोप लगाया था कि वह अपने हिंदुत्व की तख्ती से भटक रही है।
इस मामले में भाजपा के प्रवक्ता अवदूत वाघ ने कहा है- ”चूंकि कांग्रेस ने ‘शिव’ को लेकर आपत्ति जताई थी इसलिए शिवसेना ने ‘शिव’ को हटा दिया है। क्या इसका मतलब यह है कि गठबंधन में छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना होगी या अफ़ज़ल खान की सेना होगी ये अहमद पटेल तय करेंगे?
इधर कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि इस तरह की विरोधाभासी पार्टियों के बीच एक रस्सी होती है जो अलग अलग विचारधाराओं से बंधी होती है, गठबंधन तीन दलों के बीच में है हमें शिव या सेना शब्द की अनुमति क्यों देनी चाहिए? उन्होंने कहा कि हमें एक विकास जैसा कुछ तटस्थ शब्द ढूंढना होगा। पार्टी के सांसद हुसैन दलवई ने कहा कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के लिए प्रतिबद्ध है, गठबंधन के मानदंडों की गहन जांच की जा रही है। “कुछ आशंकाएं हैं, जिन्हें तीनों दलों के साझा न्यूनतम कार्यक्रम के माध्यम से हल किया जाना है। लेकिन हमें यह फर्क करना होगा कि शिवसेना आरएसएस नहीं है। इसलिए, कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना गठबंधन, राज्य में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए सरकार बनाएगी।
शिवसेना के एक नेता ने कहा,” यह संकल्प है कि शिवसेना ने हमेशा वीर सावरकर को सम्मान दिया है। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक स्थिति के बीच, हम कुछ राजनीतिक समायोजन के लिए सहमत हुए हैं। चाहे वह सेना हो, कांग्रेस हो या राकांपा हो, हम सभी एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम से बंधे रहने वाले हैं। वहीं भाजपा उद्धव के अयोध्या दौरे के टाले जाने को लेकर सवाल खड़ा कर रही है।
बता दें कि शिवसेना गठबंधन को लेकर बाला साहेब के विचारों मारकर कुर्सी पर चढ़ना चाहती है इसके लिए वह कांग्रेस के हर फरमान को सिरआंखों पर रख रही है। एक समय था जब जेएनयू में देशविरोध नारे लगे थे तो शिवसेना ने ही कहा था जेएनयू को आग लगा दो अगर वहां अफजल के नारे लगते हैं।
ठीक ऐसा ही संजय राउत ने अपने हाल के बयान में कहा था कि भारत का आधार ही धर्मनिरपेक्षता है। उनके शब्दों में “देश और उसकी बुनियाद धर्मनिरपेक्ष शब्द पर टिके हैं। आप किसानों, बेरोजगारों या भूखों से उनका धर्म या उनकी जाति नहीं पूछ सकते.. देश में सभी लोग धर्मनिरपेक्ष हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमेशा हर धर्म एवं जाति के लोगों को साथ रखा और शिवसेना के दिवंगत संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने सबसे पहले कोर्ट के सामने शपथ लेने के लिए धार्मिक ग्रंथों के स्थान पर भारतीय संविधान को रखने का विचार पेश किया था”।
बता दें कि एनसीपी और कांग्रेस ने “कॉमन मिनिमम प्रोग्राम” के तहत शिवसेना को सेक्युलर रहने की बात की गई थी। शिवसेना ने जिस तरह से सरकार बनाने के लिए इनकी हां में हां मिलाई है, उससे शिवसेना पर से अब हिंदुत्व का मुखौटा उतर गया है।
इतना ही नहीं, राम मंदिर के मुद्दों पर भाजपा को मोदी-1 सरकार में दिन रात कोसती थी, ‘शिव’ हटाकर सिद्ध कर दी है कि वह कुर्सी की लालच में किसी भी स्तर तक गिर सकती है। इस प्रकरण से पूर्णतया सिद्ध होता है कि शिवसेना अब एक सेक्युलर पार्टी बनकर रह गयी है, जिसका न मराठा गौरव से कोई लेना देना है न हिंदुत्व से, अब उसे सिर्फ कुर्सी से लेना देना है।