सबरीमाला पर CPI(M) ने बदला अपना सुर क्योंकि केरल के हिंदुओं ने सिखाया वो सबक जो वे कभी न भूल पाएंगे!

सबरीमाला

भारत शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ बहुसंख्यक जनसंख्या की आस्था के मामले अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। कई वर्षों से विभिन्न दलों ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का अनुसरण किया है, भले ही इसकी कीमत हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली हो, और सबरीमाला का मामला इस तथ्य का एक और प्रत्यक्ष प्रमाण है।

केरल में कम्युनिस्ट सरकार ने हिंदू समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का प्रयास किया था जिसके लिए पार्टी ने हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में भारी कीमत चुकाई, क्योंकि यह केरल में 20 में से केवल एक लोकसभा सीट प्राप्त कर पायी थी। अब राजनीतिक मजबूरी के लिए ही सही, पर  पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार ने अब यू टर्न लेते हुए दावा कर रही है कि वह सबरीमाला जाने वाली महिला एक्टिविस्टों का समर्थन नहीं करेगी।

सबरीमाला का पवित्र मंदिर हाल ही में फिर से विवादों के केंद्र में आया है क्योंकि कुछ प्रोपगैंडावादी कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाए। भगवान अयप्पा मंदिर में एक ब्रह्मचारी के रूप में मौजूद हैं, इसलिए यह मंदिर के नियमों के विरुद्ध है कि 10 से 50 वर्ष के उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी जाए। इस मुद्दे को जल्द ही प्रोपगैंडा के लिए गलत दिशा में मोड़ दिया गया था, और इन अवसरवादी प्रोपगैंडावादियों ने इस बात की कोई परवाह नहीं की कि भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां न केवल महिलाओं का दबदबा है, यानि पुरुषों को प्रवेश से वर्जित किया जाता है, जैसे केरल में अटुकल भगवती मंदिर, जो हिंदू परंपराओं की जटिलता को दर्शाता है और लैंगिक समानता की प्रारंभिक अवधारणाओं को पार करते हैं।

विजयन के नेतृत्व में माकपा की सरकार ने सबरीमाला मंदिर की पवित्रता को भंग करने के लिए State Sponsored अभियान का नेतृत्व किया, और साल के शुरूआत में ही अपने सुनियोजित कार्यक्रम के तहत वह 2 जनवरी 2019 को 3:45 AM पर दो महिलाओं को मंदिर में घुसपैठ करवा दिए। काले कपड़े पहनकर और पुलिस के संरक्षण में जल्दबाजी में  महिलाओं ने भागकर और लौटने से पहले कथित तौर पर भगवान अयप्पा से “प्रार्थना” की। उन्हें रात के उस समय में भक्तों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा और अपने गुप्त कार्य से उन्होंने भक्तों और मंदिर प्रशासन को चकमा दे दिया।

इस घटना से पहले, एक युवा मुस्लिम और एक ईसाई महिला ने श्रद्धालु के रूप में मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया था। उनमें से एक,  रेहाना फ़ातिमा ने परिसर की मर्यादा का उल्लंघन करने का प्रयास किया, क्योंकि प्रसाद की थैली में उसके पास एक प्रयोग में लाया सैनिटरी पैड था। इसके अलावा हिंदू धर्म के विरुद्ध अपने भड़काऊ अपमानजनक फेसबुक पोस्ट के कारण उनकी न केवल गिरफ्तारी हुई, बल्कि उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया।

केरल पुलिस ने भगवान अयप्पा के भक्तों को कठोर यातनाएँ दीं, जिसके प्रत्युत्तर में केरलवासियों ने लोकसभा चुनावों में माकपा को करारी हार भेंट की।

बता दें कि सबरीमाला मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की पीठ करेगी। इसीलिए लेफ्ट सरकार को शंका हो गया है कि शायद आने वाले फैसले से उन्हें राजनीतिक घाटा हो जाएगा और यही सोचकर वे निर्णय बदलने की सोच रहे हैं। केरल देवस्वाम मंत्री कडकम्पल्ली सुरेंद्रन ने कहा है कि राज्य सरकार के लिए उन महिलाओं की सक्रियता को संरक्षण देने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, जो इस साल सबरीमाला अयप्पा मंदिर में प्रवेश करना चाहती हैं।

पार्टी का लोकसभा हारना भी एक प्रमुख कारण है और इन्ही कारणों से वह अपना रुख बदल रही है। केरल सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश होकर, भगवान अयप्पा के कई भक्तों ने मंडला पूजा या तीर्थयात्रा के दौरान सबरीमाला जाने का फैसला किया था। सबरीमाला में होने वाले कार्यक्रमों का राज्य भर में ऐसा प्रभाव था कि राज्य ने मंदिर के दान में भारी गिरावट देखी, जो अंततः देवस्वाम बोर्ड की आय का कारण बनती है। त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड (टीडीबी) लगभग 1,250 मंदिरों का प्रबंधन करता है, पर तीर्थयात्रा सीजन के दौरान पिछले साल 100 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान के कारण बोर्ड को इस साल अपने खर्चों को पूरा करने के लिए 30 करोड़ रुपये के बैंक ऋण का लाभ उठाने के लिए मजबूर किया।

विजयन की सरकार को आर्थिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्र में झटका मिला है और ऐसे में यह कदम कुछ भी नहीं है अपितु पर्यटन के क्षेत्र में तेजी से हो रहे नुकसान को कम करने की कवायद है। केरल पिछले साल की तरह पर्यटकों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता क्योंकि व्यापक विरोध प्रदर्शनों पर एक राज्य का पर्यटन उद्योग पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। सच कहें तो तुष्टीकरण की राजनीति करने में विजयन की सरकार ने सबरीमाला मंदिर की पवित्रता को भंग कर दिया है और इस तरह की लापरवाही से आने वाले दिनों में लेफ्ट की सरकार को और भी निराशाजनक परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

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