चीन पर US की दहाड़- दलाई लामा के मुद्दे को संयुक्त रूप से पूरी दुनिया हल करे, चीन कोई ठेकेदार नहीं है

चीन की नाक में दम कर रखा है अमेरिका!

दलाई लामा

अमेरिका और चीन यूं तो हाँग-काँग, दक्षिण चीन सागर जैसे कई मोर्चों पर एक-दूसरे के सामने हैं, लेकिन अब लगता है कि अमेरिका ने तिब्बत को लेकर भी चीन का सरदर्द बढ़ाने का विचार कर लिया है। दरअसल, अमेरिका पिछले कुछ दिनों से तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर चीन पर दबाव बना रहा है और चीन से उत्तराधिकारी की चयन प्रक्रिया पर किसी तरह का प्रभाव नहीं डालने की चेतावनी दे रहा है, वहीं चीन का कहना है कि उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार चीन के पास पूरी तरह सुरक्षित है। इसी कड़ी में दलाई लामा के वारिस पर फैसला करने के चीन के दावे को खारिज करते हुए अमेरिका ने बृहस्पतिवार को कहा कि यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में उठाया जाना चाहिए। बता दें कि चीन इस मामले को चीन का आंतरिक मामला मानता है, ऐसे में अमेरिका के इस फैसले से चीन को बड़ा झटका पहुंचाना तय माना जा रहा है।

दरअसल, इस मुद्दे पर बोलते हुए अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिका के विशेष राजदूत सैमुअल ब्राउनबैक ने संवाददाताओं से कहा, ‘कई लोग ऐसे हैं जो चीन में नहीं रहते लेकिन दलाई लामा का अनुसरण करते हैं। वह विश्वभर के एक जाने-माने धार्मिक नेता हैं, वह सम्मान के हकदार हैं और उनके वारिस को चुनने की प्रक्रिया उन पर विश्वास करने वाले समुदाय के हाथों में होनी चाहिए।’ इससे पहले अमेरिकी राजदूत सैम ब्राउनबेक ने धर्मशाला पहुंच कर दलाई लामा से मुलाकात की थी। इस दौरान भी सैम ने कहा था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव का अधिकार तिब्बती लोगों को है।

इसके उलट चीन का कहना है कि तिब्बत पर उसका अधिकार है, ऐसे में नए दलाई लामा चुनने का अधिकार सिर्फ उसी का है। यानि स्पष्ट है कि तिब्बत मुद्दे पर भी अमेरिका और चीन एक दूसरे के सामने आने वाले हैं, और यह लड़ाई अब तक यूएन में पहुंच चुकी है।

परंतु दलाई लामा का स्वास्थ्य चीन और अमेरिका के बीच तनातनी का विषय क्यों है? आखिर चीन तिब्बत पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए इतना उतावला क्यों है। इसके पीछे के इतिहास पर हमें थोड़ा प्रकाश डालना होगा। 14वें दलाई लामा के नाम से प्रसिद्ध तेनजिंग ग्यात्सो को 1939 में महज चार वर्ष की आयु में दलाई लामा के पद पर सुशोभित किया गया था। 1959 में तिब्बत ने चीन के विरुद्ध विद्रोह किया, तो चीनी कार्रवाई से बचने के लिए दलाई लामा ने सीमा पार करते हुए भारत में प्रवेश किया और धर्मशाला के मैकलोडगंज में अपनी सरकार की स्थापना की। तभी से वे भारत में रहने के लिए विवश हैं, और चीन से तिब्बत की स्वायत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब 84 वर्ष के हो चुके दलाई लामा को इस वर्ष के प्रारम्भ में सीने में संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था। हालांकि, अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी कोई गंभीर समस्या है।

वहीं, माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच की कड़वाहट और बढ़ सकती है। चीन ने दलाई लामा के प्रतिनिधियों से 9 सालों तक कोई बातचीत नहीं की है। चीन ने हमेशा यही संकेत दिए हैं कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही चुनेगा। एक ऐसा उत्तराधिकारी चुनेगा जो  तिब्बत में उसके निरंकुश शासन का समर्थन करेगा।

हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में पेश किए गए एक विधेयक में किसी भी चीनी अधिकारी के तिब्बती बौद्ध उत्तराधिकार परंपराओं में हस्तक्षेप पर प्रतिबंध की अपील की गई है। पूर्व एशिया के लिए विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी डेविड स्टील वेल ने कांग्रेस के समक्ष ये स्पष्ट किया है कि अमेरिका तिब्बतियों की अर्थपूर्ण स्वायत्तता  के लिए दबाव बनाता रहेगा यानि स्पष्ट है कि हाँग-काँग, दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों के बाद अब दलाई लामा के मुद्दे पर भी दोनों देश एक दूसरे के सामने आने को तैयार हैं। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन अमेरिका की इस चुनौती का कैसे सामना करता है।

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