पुलिस व्यवस्था से उर्दू-फारसी को उखाड़ फेंकने की हुई शुरूआत, दिल्ली HC ने दिया आदेश

उर्दू

हमारा देश 3 स्तंभो पर यानि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका पर मजबूती से खड़ा है और ये तीनों ही जनता के लिए तत्पर रहते हैं। लेकिन जब जनता और इनमें से किसी एक के भी बीच एक रुकावट आ जाए तो जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वह भी तब जब मामला भाषा से जुड़ा हो तब तो यह और मुश्किल हो जाता है। ठीक इसी तरह स्वतंत्रता के बाद से ही भाषा को लेकर एक चलन हमारे देश में चलता आ रहा था जिसे कभी हटाने की कोशिश नहीं की गई। यह मामला है कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच पुल की तरह काम करने वाली FIR और उसमें प्रयोग होने वाली भाषा की। FIR में अभी भी कठीन उर्दू और फारसी भाषा का ही उपयोग होता है, जिससे आम जनता को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

स्वतन्त्रता के बाद पहली बार इस मामले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने ध्यान दिया है और निर्देश दिया है कि एफआईआर में मुश्किल उर्दू और फारसी शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, ‘FIR अहम दस्तावेज है और इसकी भाषा आम लोगों को समझ में आनी चाहिए दिल्ली हाई कोर्ट ने अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में दर्ज की गई 100 FIR की भाषा का नमूना देखने के बाद यह निर्देश दिया। चीफ जस्टिस डी. एन. पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने यह निर्देश जारी किया जिसे दिल्ली पुलिस की लीगल सेल को भेजा गया है।

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस ने 20 नवंबर को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया है कि एफआईआर लिखते समय हल्के और साधारण शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है। लीगल सेल ने सभी पुलिस स्टेशनों को कोर्ट के निर्देशानुसार FIR में मुश्किल उर्दू, फारसी शब्द नहीं प्रयोग करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि एफआईआर नोट करते वक्त पुलिसकर्मी कई बार मुश्किल शब्दों के तकनीकी अर्थ को पूरी तरह से समझे बिना ही प्रयोग करते हैं।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस के लिए 383 ऐसे उर्दू और फारसी के शब्दों को चुना गया है जिनका अनुवाद हिंदी और अंग्रेजी में किया गया। इस लिस्ट पर जोर देते हुए कोर्ट ने कहा कि मुश्किल उर्दू और फारसी के शब्दों को आम जनता नहीं समझ सकती है। इन शब्दों के स्थान पर आसान शब्दों के प्रयोग का निर्देश दिया गया है। अदालत ने एक दिलचस्प बयान देते हुए कहा कि पुलिस आम आदमी का काम करने के लिए है, सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है, जिनके पास उर्दू या फारसी में डॉक्टरेट की डिग्री हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह जरूरी नहीं है कि मुश्किल शब्दों के स्थान पर हिंदी के ही शब्द प्रयोग किए जाएं, उर्दू या फारसी के आसान और लोगों को समझ में आने वाले शब्द प्रयोग हो सकते हैं।

हाईकोर्ट ने कमिश्नर को अगली सुनवाई के दौरान 10 अलग-अलग थानों की 100 एफआईआर की कॉपी भी पेश करने को कहा है, जिससे ये पता लगाया जा सके कि क्या सर्कुलर को पुलिसकर्मी फॉलो कर रहे हैं या नहीं।

भारत की न्यायपालिका में उर्दू और फारसी का प्रयोग मध्यकालीन समय में इस्लामी आक्रमण और उनके लगातार 800 वर्षों तक शासन के कारण ही होता रहा है। उनके द्वारा लाए गए फारसी, पर्शियन और उसका हिन्दी में मिश्रण कर उर्दू के प्रचलन को ही बढ़ावा दिया गया। उस कालखंड में राजदरबार की भाषा फारसी या पर्शियन ही होती थी। उसी का प्रभाव ब्रिटिश शासन से दौरान भी रहा। स्वतन्त्रता के बाद भी इसे बदलने की कोशिश नहीं की गई। इसलिए यह आज भी प्रचलन में है।

बता दें कि 1947 से पहले अंग्रेजी शासन के दौरान पुलिस, अदालत और राजस्व विभाग में जो भी कार्य होते थे, उसमें हिंदी की बजाय उर्दू या फारसी के शब्दों की संख्या अधिक रहती थी। जमीन से जुड़े मामले, अदालती आदेश या कर प्रणाली, इन सबके बारे में जब कोई आदेश सार्वजनिक किया जाता था तो उसमें उर्दू के साथ-साथ फारसी के शब्द भी रहते थे। कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लेकर एक महत्वपूर्ण क्रांति की शुरुआत की है, जो न्यायालय में प्रयोग की जाने वाली भाषा को देश के आम लोगों के अनुरूप बनाने में सीढ़ी का पहला कदम साबित हो सकता है जिसके बाद लोकतन्त्र के इस स्तंभ को आम जनता के अनुरूप ढलने में आसानी होगी।

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