यमुना के जहरीले झाग में श्रद्धालुओं ने की छठ पूजा, यमुना का प्रदूषण लेवल क्रॉस कर चुका है सभी लेवल

हाल ही में दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को रोकने हेतु दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने एक बार फिर अपने चर्चित ऑड ईवन स्कीम को लागू किया है। ये स्कीम 15 नवम्बर तक दिल्ली एनसीआर में लागू रहेगी, और इससे प्रदूषण में कमी आने का दिल्ली सरकार ने अंदेशा जताया है। परंतु हाल ही में सम्पन्न हुई छठ पूजा की कुछ ऐसी तस्वीरें दिल्ली से सामने आयीं हैं जिसे देखकर आप कहेंगे कि आखिर ये दिल्ली की यमुना है या अंटार्कटिका? ये तस्वीरें दिल्ली सरकार के प्रदूषण के खिलाफ उठाये जा रहे क़दमों की पोल खोलन के लिए पर्याप्त हैं।

ये तस्वीरें यमुना नदी के समीप दिल्ली के कालिंदी कुंज क्षेत्र की है। छठ पूजा के समय महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जिस प्रकार से इस प्रदूषित नदी में खड़ी हैं वो दिल्ली के जल प्रदूषण की वास्तविकता को बयां कर  रही है। जब समस्या इतनी विकराल हो, तो दिल्ली सरकार द्वारा लागू किए गए उपाय उतने ही सार्थक हैं, जितना कि आँधी को रोकने के लिए झाड़ू लेकर आँधी के सामने खड़े होना।

2015 में सत्ता में आने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल ने यमुना की सफाई को लेकर कई लंबे चौड़े दावे किए थे। परंतु सत्य तो यह है कि केजरीवाल के शासन में स्थिति बद से बदतर हुई है। केजरीवाल वायु प्रदूषण के लिए भले ही अन्य राज्यों पर ठीकरा फोड़ते हों, परंतु यमुना के रखरखाव का दायित्व दिल्ली सरकार के जल मंत्रालय के पास है, जो स्वयं अरविंद केजरीवाल संभालते हैं। छठ पूजा के समय यमुना नदी की यह तस्वीरें साफ बताती हैं कि अरविंद केजरीवाल ने इस दिशा में वास्तव में कितना काम किया है।

अब इस समस्या की जड़ क्या है? दरअसल, यमुना नदी के समीप दिल्ली में कई उद्योग स्थित हैं, जो अपने विषैले वेस्ट यानि कूड़ा-कर्कट यमुना नदी में छोड़ देते हैं। यही नहीं, यमुना नदी में जाने वाले पोल्यूटंट्स में प्रमुख रूप से एंटीबायोटिक, कीटनाशक एवं डिटरजेंट जैसे घातक रसायन मिले हुए हैं.

रुनकता से ताजगंज के बीच तमाम फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी सीधे यमुना में गिरता है। शहर से निकलने वाला 550 एमएलडी से अधिक पानी भी बिना शोधन डाला जा रहा है। कार्बन का दूषित पानी पीकर वर्ष 2014 में बड़ी संख्या में नील गायों ने दम तोड़ दिया था। तब उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अलर्ट जारी करते हुए पशुओं को इस नदी का पानी न पिलाने के संबंध में अलर्ट जारी किया था।  इस जल के प्रदूषित होने के कारण लोगों को इसका सेवन अथवा छठ पूजा में डुबकी लगाने से मधुमेह, चर्म कैंसर जैसी बीमारियाँ के बढ़ने का खतरा है। परंतु दुर्भाग्यवश दिल्ली सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई व्यापक कदम नहीं उठाया, और पीने योग्य पानी तो दूर की बात, यमुना नदी की वर्तमान स्थिति तो एक भयानक आपदा के संकेत दे रही हैं।

इसी वर्ष के प्रारम्भ में नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल द्वारा गठित किए गए यमुना पॉल्यूशन मॉनिटरिंग कमिटी ने बताया कि विभाग के स्तर पर दिल्ली के नालों और यमुना की सफाई की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा. एनजीटी की हालिया रिपोर्ट में कमिटी ने कहा है कि सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग और दिल्ली जल बोर्ड के बीच कोई सामंजस्य ही नहीं बैठ रहा है।

यमुना नदी की वर्तमान स्थिति की भयावहता अपने आप में दिल्ली एनसीआर की दयनीय स्थिति को बयां करता है, परंतु उससे भी ज़्यादा दुख की बात तो यह है कि इस समस्या की ओर ध्यान देने की बजाए अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री गंदी राजनीति कर रहे हैं।  राज्य की सरकारों को तो दोषी ठहरा दिया परन्तु इससे कैसे अपना पल्ला झाडेंगे ? केजरीवाल सरकार चाहे तो सख्त कदम और फैसलों से इंडस्ट्रियल वेस्ट को यमुना में जाने से रोक सकती है परन्तु केजरीवाल सरकार केवल दोष मढ़ना जानती है, काम करना नहीं। यदि इस स्थिति को जल्द ही नहीं संभाला गया, तो दिल्ली को वास्तव में चेर्नोबिल बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

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