समानता की मांग करने वाले दिल्ली के LGBTQ समुदाय, भगवा-मोदी और हिंदू विरोध के प्रोपेगेंडे पर आ गए हैं

इनको मोदी ने ही अधिकार दिलाया और ये उन्हीं के खिलाफ जहर उगल रहे हैं

रविवार को दिल्ली में समलैंगिकों ने अपनी विचारधारा के समर्थन में ‘दिल्ली क्वीयर परेड’ यानि प्राइड मार्च का आयोजन किया। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा-377 हटाये जाने की खुशी में समलैंगिकों प्राइड मार्च के माध्यम से अपनी विचारधारा के लिए अन्य लोगों का समर्थन जुटाना चाहते थे, परंतु इस प्राइड मार्च से उनके वास्तव एजेंडे से हम परिचित हुए। अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए वामपंथी किस स्तर तक गिर सकते हैं, ये प्राइड मार्च इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्राइड मार्च को आजादी के रूप में मनाया जाता है परंतु दुर्भाग्यवश ये मार्च हिंदू विरोधी प्रचार रैली में बदल गया।

जो रैली LGTBQ + के लोगों के अधिकारों के लिए होनी चाहिए थी, वो कश्मीर के आज़ादी के नारों से गूंज उठी। नारे कुछ इस प्रकार से लगाए जा रहे थे, “तुम पुलिस बुलाओ, तुम गाली गलौज करो, लाठी मारो, तुम गाली बोलो… पर लेके रहेंगे आज़ादी”। ये निस्संदेह ये नारे जेएनयू के वर्तमान विरोध प्रदर्शन की याद दिलाते हैं। दिल्ली प्राइड परेड पर ’भारत माता को प्रेमिका चाहिए’ जैसे अभद्र प्लाकार्ड भी देखे गए। एक यूजर ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा, “मैं भी समलैंगिकों का समर्थन करती हूँ। परंतु इसका मतलब ये नहीं कि केसरिया के ऊपर इंद्रधनुष हो? अटेन्शन पाने के लिए ये बड़ा सस्ता जुगाड़ है। जो भी इस महिला ने अपने अतार्किक पोस्टर में कहा है, मैं उसका विरोध करती हूँ”।

बेशक, ऐसी रैली तो मोदी विरोधी नारों के बिना सूनी लगती है और इस रैली में यही देखने को मिला। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए गए, और उनके लिए आपत्तिजनक पोस्टर भी निकाले गए। भले ही नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में धारा 377 को निरस्त कर दिया गया हो, लेकिन पीएम मोदी को रैली में प्यार का दुश्मन बना दिया गया। LGTBQ + समुदाय का इंद्रधनुषी LOGO समुदाय की विशिष्टता का संकेत देता है, परंतु इस समुदाय का केसरिया रंग के प्रति घृणा देखते हुए तो हमें इस बात पर कम ही विश्वास होता है।

धारा-377 का विरोध नहीं करने के लिए केंद्र सरकार की बहुत सराहना की गई और आरएसएस के लिए स्पष्ट घृणा के बावजूद, संघ ने LGBTQ+ के अधिकारों का विरोध करने के अपने पुराने रुख को बदलकर अपने दूरदर्शी सोच को प्रदर्शित किया। परंतु रैली में कुछ लोगों ने भाजपा के लिए अपनी घृणा को खुलकर उजागर किया।

यहां पर ये ध्यान देना आवश्यक है कि कि 2011 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने समलैंगिकता को एक बीमारी के रूप में घोषित किया था, यहीं नहीं कांग्रेस तो प्रारंभिक मामले में इसके अपराधिकारण को निरस्त करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक चली गयी थी। 2014 तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया, परंतु सत्ता में बदलाव होते ही नए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने समलैंगिक अधिकारों के लिए समर्थन व्यक्त किया।

धारा 377 को निरस्त करने के ऐतिहासिक फैसले ने कुछ ईसाई और मुस्लिम समूहों में बहुत नाराज़गी पैदा की, फलस्वरूप उन्होंने फैसले का विरोध किया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने शीर्ष अदालत के फैसले का विरोध करने के लिए अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया और समलैंगिकता को “अनैतिक” और “भारतीय मूल्यवान और संस्कृति के खिलाफ” माना। जो समाज की ज्वलंत विविधता का उत्सव माना जाता था, वह दुर्भाग्य से भारत-विरोधी, भगवा विरोधी और सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया, जो LGTBQ + समुदाय के लिए अच्छा नहीं होगा।

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