राम जन्मभूमि मामले पर उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले को चंद लोगों को छोड़कर सभी देशवासियों ने मिलकर स्वीकार किया है। जहां सामान्य मुस्लिम समुदाय ने फैसले को सहृदय स्वीकार किया, तो वहीं कुछ राजनेता ऐसे हैं जो इस फैसले से काफी व्यथित हैं, क्योंकि उनके पास अब न कोई मुद्दा बचा है न ही राजनीति की रोटी सेंकने का जरिया। इसके अलावा अभी तक देश भर में फैसले के बाद शांतिपूर्ण माहौल है, कहीं भी कोई हिंसा की घटना नहीं हुई है। यह सिद्ध करता है कि कैसे आम जनता ने फैसले को परिपक्वता से स्वीकार किया है।
हालांकि, स्वीकृति और भ्रम के बीच एक स्पष्ट रेखा है। राजनीतिक और बौद्धिक वर्ग में उपस्थित मुसलमान काफी भ्रमित हैं। यही नहीं, इस वर्ग में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी देखी जा रही है, क्योंकि एआईएमपीएलबी का दावा है कि इस भूमि पर उसका स्वामित्व था, जिसे कभी पेश भी नहीं किया गया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच के फैसले को चुनौती देने वाली एक समीक्षा याचिका दायर करने का फैसला किया है।
9 नवम्बर को अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का उल्लेख करते हुये मुसलमानों को पांच एकड़ जमीन दी थी, जो उन्हें अयोध्या में कहीं और आवंटित किया जाना था। एआईएमपीएलबी ने न केवल पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है, बल्कि पांच एकड़ जमीन का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया है। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि भूमि विवाद में AIMPLB पक्षकार नहीं थी, फिर भी वह इस सुलझे हुए विवाद को हवा देने में लगी है। भूमि को संभवतः सुन्नी वक्फ बोर्ड और जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद को आवंटित किया गया है।
चूंकि एआईएमपीएलबी विवाद में कोई पक्षकार नहीं थी, इसलिए मामले में स्वीकार की जा रही उनकी पुनर्विचार याचिका का स्वीकृत होना लगभग न के बराबर है। यह एआईएमपीएलबी द्वारा अपना राजनीति पक्ष मजबूत करने के अलावा कुछ भी नहीं सिद्ध करता है, जिससे वे मुसलमानों को किसी भी तरह यह विश्वास दिलाने में सफल हो पाये कि वे कानूनी तौर पर अंत तक अपनी लड़ाई लड़ें। अधिवक्ता ज़फ़रियाब जिलानी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की ज़मीन अल्लाह की है और इसलिए शरीयत के अनुसार ये किसी और को नहीं दी जा सकती। हालांकि जब एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह उन्हें मामले में एक पक्ष बनाए, तो कोर्ट ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया।
उधर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक परिपक्व निर्णय लेते हुए पुनर्विचार याचिका नहीं दायर करने करने का लिया। उन्होंने बताया कि भले ही वे इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं, वे खुश है कि कम से कम ये मामला समाप्त तो हुआ।
असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम ने ड्रामेबाजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ओवैसी ने भी मुसलमानों को दी गई पांच एकड़ जमीन को अस्वीकार करते हुए इसे टोकनवाद बताया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय पर कटाक्ष किया और कहा कि “सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च है, परंतु यह अचूक नहीं है”। एक उग्र भाषण में, उन्होंने अपना कानूनी तर्क दिया, जिसे हमनें भी कवर किया था। भीड़ वास्तव में प्रभावित हुई थी। हालांकि अनुमान ये लगाया जा रहा है कि यह उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए एक सम्बोधन था, इसलिए इतना जोश उमड़ पड़ा होगा।
ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया भले ही जनता के लिए अपनी चिंताओं को आवाज देने के लिए लोकतांत्रिक मंच हैं, लेकिन मुसलमानों ने किसी भी मूर्खतापूर्ण अभियान को शुरू करने से इनकार कर दिया। फैसले के विरुद्ध एक गंभीर ऑनलाइन बैकलैश की आशा की गयी थी, हालांकि ऐसे कोई अभियान नहीं देखे गए थे।
कई लोगों को फैसले का स्वागत करते देखा गया और यह मामला आखिरकार बंद हो गया। जावेद अख्तर ने सुझाव दिया था कि पांच एकड़ भूमि पर एक धर्मार्थ अस्पताल बनाया जाए जो मुसलमानों को दिया गया था। इसी तरह, सलमान खान के पिता सलीम खान ने उक्त 5 एकड़ जमीन पर एक कॉलेज बनाने के लिए हितधारकों को सलाह दी। यह स्पष्ट करता है कि एआईएमपीएलबी की सोच के विपरीत, मुसलमान आवश्यक रूप से पांच एकड़ जमीन पर एक मस्जिद नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि हम मुस्लिम समुदाय के बीच इस मुद्दे पर अनबन और असहजता देख रहे हैं।
हमें याद रखना चाहिए कि सभी कथित मुस्लिम मुस्लिम नेता दावा कर रहे थे कि जो भी इस न्यायिक प्रक्रिया का परिणाम होगा, वे फैसले को पूरी ईमानदारी से स्वीकार करेंगे। हालांकि, अब जब यह फैसला सुनाए जाने के एक सप्ताह से अधिक समय हो गया है, केवल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसे स्वीकार कर लिया है। कोई अन्य निकाय अपने शब्दों पर अड़े रहने को तैयार नहीं है जो उन्होंने फैसले से पहले बोला था। ये पाखंड नहीं तो और क्या है?