PM मोदी ने हिन्दुओं की आस्था के सम्मान और संवैधानिक प्रावधानों के बीच बेजोड़ संतुलन

राम मंदिर मोदी

(PC: satyavijayi.com)

दशकों के लंबे इंतज़ार के बाद आखिरकार बीते शनिवार यानि 9 नवंबर को बाबरी-मस्जिद राम मंदिर विवाद का हल हो ही गया और देश की सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल को हिंदुओं को सौंपने का आदेश दिया। यह फैसला भाजपा के साथ-साथ पीएम मोदी के लिए भी अति-महत्वपूर्ण था क्योंकि उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा वर्ष 2014 से ही यह बोलती आई है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए, और इसके साथ ही राम मंदिर निर्माण का यह वादा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का भी हिस्सा रहा है।

वर्ष 2014 में जब पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी, तो हर जगह यह बात चली कि अब अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ हो सकता है। हालांकि, केंद्र सरकार ने अपनी ओर से न्यायपालिका पर दबाव बनाना सही नहीं समझा। वर्ष 2019 के चुनावों से पहले यह बात भी उठाई गयी कि केंद्र सरकार को एक अध्यादेश के जरिये अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ करना चाहिए। हालांकि, भाजपा और पीएम मोदी ने ऐसा करने की बजाय न्यायपालिका पर विश्वास जताना ही बेहतर समझा और धर्म एवं संविधान के बीच शानदार संतुलन बनाये रखा।

जब राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो पीएम मोदी ने ट्वीट कर यह साफ किया कि आखिर यह निर्णय क्यों इतना महत्वपूर्ण है। पीएम मोदी ने लिखा सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई वजहों से महत्वपूर्ण है: यह बताता है कि किसी विवाद को सुलझाने में कानूनी प्रक्रिया का पालन कितना अहम है। हर पक्ष को अपनी-अपनी दलील रखने के लिए पर्याप्त समय और अवसर दिया गया। न्याय के मंदिर ने दशकों पुराने मामले का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान कर दिया।‘

इसके बाद पीएम मोदी ने एक अन्य ट्वीट में लिखा यह फैसला न्यायिक प्रक्रियाओं में जन सामान्य के विश्वास को और मजबूत करेगा। हमारे देश की हजारों साल पुरानी भाईचारे की भावना के अनुरूप हम 130 करोड़ भारतीयों को शांति और संयम का परिचय देना है। भारत के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की अंतर्निहित भावना का परिचय देना है’

पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि जब न्यायपालिका की ओर से यह फैसला आया है तो इस फैसले पर लोगों का विश्वास अटूट है, और इसके साथ ही सबको इस बात की भी संतुष्टि है कि सबको अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया। पीएम मोदी और भाजपा के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत था और वो चाहते तो आसानी से अध्यादेश के जरिये राममंदिर का रास्ता साफ़ कर सकते थे। हालांकि, उन्होंने ऐसा किया नहीं। इसी वर्ष 1 जनवरी को जब पीएम मोदी ने एएनआई को अपना इंटरव्यू दिया था, तो उनसे पत्रकार स्मिता प्रकाश ने राम मंदिर को लेकर सवाल पूछा था। तब पीएम मोदी ने कहा था कि वे इस मामले का एक संवैधानिक हल चाहते हैं और सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही सरकार कोई कदम उठाएगी। इस मामले में वे भाजपा के अन्य नेताओं से अलग थे, जो राम मंदिर पर सरकार के सुस्त रवैये से नाराज़ थे। हालांकि, पीएम मोदी इस मुद्दे को लेकर अधिकतर शांत ही रहे थे। अगर वे चाहते, तो जिस तरह राजीव गांधी सरकार ने वर्ष 1986 में हिन्दू समुदाय के दबाव में विवादित परिसर का ताला तुड़वा दिया था, ठीक उसी तरह वे भी जल्दबाज़ी में अध्यादेश का रास्ता अपना सकते थे। हालांकि, पीएम मोदी को पता था कि अगर वो यह रास्ता अपनाते तो देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता था।

राम मंदिर के मुद्दे पर पीएम मोदी की चुप्पी ने एक तरफ समाज में यह संदेश भेजा कि सरकार का नेतृत्व न्यायपालिका पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाना चाहता, और न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है। अगर उनकी सरकार एक अध्यादेश के जरिये राम मंदिर का निर्माण करवाती, तो कांग्रेस, विपक्ष समेत पूरा मीडिया उनपर हिन्दू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाता और देश के मुस्लिम समुदाय को भी दंगे के लिए भड़काता। आप यह बात इसी उदाहरण से समझ सकते हैं कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया से लेकर एजेंडावादी लोगों का एक समूह कोर्ट को अपने निशाने पर ले रहा है, अगर सरकार अध्यादेश के जरिये राम मंदिर का रास्ता साफ करती, तो सरकार पर ना जाने किस किस तरह के आरोप लग चुके होते।

कुल मिलाकर पीएम मोदी ने इस पूरे मुद्दे पर जिस तरह हिंदुओं की आस्था और संविधान के बीच एक बेहतरीन संतुलन बनाकर रखा, वह बेहद जिम्मेदार-पूर्ण था। फैसला आने से पहले से लेकर, फैसला आने के बाद तक जिस तरह उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की, वह दर्शाता है कि उनके लिए देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखना कितना महत्वपूर्ण था।

Exit mobile version