कांग्रेस और लालू के लिए बुरे सपने से कम नहीं थे TN शेषन, कहते थे नेताओं को तो नाश्ते में लेता हूं

टीएन शेषन ने कैसे चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया...

टीएन शेषन

टीएन शेषन, जोकि भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे, कल रात यानि रविवार को उनका निधन हो गया। शेषन एक ऐसे प्रशासनिक अधिकारी थे जिन्होंने देश की चुनावी तस्वीर बदल दी थी। उनका कार्यकाल था 12 दिसंबर 1990 से लेकर 11 दिसंबर 1996 तक। उन्हें आज भी भारत के सबसे प्रभावशाली चुनाव आयुक्त के तौर पर जाना जाता है।

शेषन ने अपने कार्यकाल में भारतीय चुनाव प्रक्रिया को काफी मजबूत, निष्पक्ष व पारदर्शी बनाया था। शेषन को लोग कांग्रेसी कहा करते थे लेकिन कांग्रेस खुद उनके एक्शन से परेशान रहती थी। शेषन मजाक-मजाक में कहा करते थे कि मैं तो नाश्ते में नेताओं को खाता हूं (‘आई ईट पॉलिटिशियंस फॉर ब्रेकफास्ट’)। ये बात भले ही वे मजाक में कहा करते थे लेकिन 90 के दशक में कहा जाता था कि नेता केवल दो चीजों से डरते हैं एक तो भगवान से दूसरा टीएन शेषन से। बड़े से बड़े बाहुबली नेता शेषन के आगे कांपते रहते थे। मजाल नहीं होती थी कि चुनावी भाषणों में वे कुछ अनाप-शनाप बक दें।

स्वामी के बहुत करीबी मित्र थे शेषन

बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रहण्यम स्वामी और टीएन शेषन के बीच काफी गहरी दोस्ती थी। स्वामी ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में टीएन शेषन को पढ़ाया था। शेषन उम्र में भले ही बड़े थे लेकिन दोनों के बीच बराबरी वाली दोस्ती थी। कहा जाता है कि हार्वर्ड के दिनों में स्वामी को जब भी दक्षिण भारतीय खाने की तलब लगती थी तो वे शेषन के रूम पर पहुंच जाते थे। शेषन और स्वामी चाव से दही, चावल और रस्सम खाते थे।

कांग्रेस के नेताओं में शेषन का खौफ था

90 के दशक में जब भाजपा की सरकार हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बर्खास्त हो गई थी तब कांग्रेस मंत्री रहे अर्जून सिंह ने कहा कि इन राज्यों में चुनाव साल भर बाद होंगे। इस पर शेषन ने तुरंत एक विज्ञप्ति जारी की और कहा कि ”चुनावों की तारीख मंत्रीगण तय नहीं करते, ये आयोग का काम है।”

जब राज्यपाल ने अपने कांग्रेसी बेटे के लिए किया चुनावी प्रचार

बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बर्खास्त हो गई थी, राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लागू था। जिसके बाद साल 1993 में फिर से चुनाव होने जा रहा था। इसी विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे गुलशेर अहमद के बेटे सईद अहमद भी सतना सीट से खड़े थे। उस दौरान गुलशेर अहमद हिमाचल के राज्यपाल थे, बेटे का प्रचार करने के लिए वे हिमाचल से सतना चुनाव प्रचार करने पहुंच गए, जिसकी तस्वीर अखबार में छपी और इसको साक्ष्य मानते हुए चुनाव आयोग ने कड़ी आपत्ति जताई थी। गुलशेर को आचार संहिता के उल्लंघन करने का दोषी माना गया और उन्हें अंततः इस्तीफा देना पड़ा।

लालू का बूथ कैप्चरिंग राज खत्म किया

कहा जाता है कि लालू के राज में बिहार में बूथ कैप्चरिंग की खूब खबरें आती थीं। इस पर लगाम लगाने के लिए टीएन शेषन ने कई कठोर कदम उठाया था। शेषन ने 1995 में पहली बार 4 चरणों में बिहार विधानसभा का चुनाव संपन्न करवाया था। चुनाव की तारीखें भी बदल गईं। लालू अपने चुनाव प्रचार में खूब बयानबाजी करते थे।

जब लालू ने कहा ‘ई शेषनवा को भईंसिया पे चढ़ा के गंगा जी में हेला देंगे’

एक चुनावी जनसभा में लालू ने कहा था- ”ई शेषनवा को भईसियां पर चढ़ाके गंगाजी में हेला देंगे।” उस दौरान शेषन ने लालू की कई चुनावी जनसभाओं को रद्द करवा दिया था। बूथ कैप्चरिंग को रोकने के लिए पुलिस की जगह अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल किया गया था। इसी के बाद से बिहार में चुनावी पारदर्शिता आई और लालू का किला ढहने लगा।

अपने पूरे कार्यकाल में टीएन शेषन ने भारतीय चुनावी प्रक्रिया में खुब सुधार किया। उन्हीं के शासन में नेताओं के हेलीकॉप्टर से प्रचार करने पर लगाम लगा, चुनाव प्रचार में धन बहाने वालों पर भी शेषन ने कड़ी कार्रवाई की थी। उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था लेकिन के आर नारायणन से हार गए थे। साल 1996 में शेषन को उत्कृष्ट सेवा के लिए रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया था। आज भले ही शेषन हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके उत्कृष्ट योगदान को आज भी याद किया जाता है। उन्होंने ही भारतीय चुनाव व्यवस्था की कायाकल्प की।

Exit mobile version