सीएम कुर्सी की भूखी पार्टी शिवसेना को कल तगड़ा झटका तब लगा जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इससे पहले शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने के लिए जहां एक तरफ भाजपा के साथ छल किया, तो वहीं उसने अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाने की भी नीति बनाई। हालांकि, इतना कुछ करने के बाद भी शिवसेना बहुमत का आंकड़ा जुटाने में असफल रही और एक हफ्ते के सियासी नाटक के बाद आखिरकार कल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। हालांकि, इसके बाद भाजपा को लेकर शिवसेना के रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिला। कल मीडिया से बातचीत करते हुए उद्धव ठाकरे ने इशारों ही इशारों में यह कहा कि उनका गठबंधन भाजपा के साथ खत्म नहीं हुआ है। शिव सेना के इस रुख से इस बात की आशंका अब बढ़ गयी है कि शिव सेना दोबारा भाजपा के साथ आ सकती है। अगर ऐसा होता है, तो अब भाजपा को शिवसेना को पुरानी हैसियत के साथ स्वीकार कतई नहीं करना चाहिए और भाजपा को शिवसेना के सामने कई शर्तें रखनी चाहिए।
#WATCH Mumbai: Shiv Sena chief Uddhav Thackeray reacts to a question 'Is the BJP option completely finished?'. Says, "Why are you in such a hurry? It's politics. 6 months time has been given (President's Rule). I didn't finish the BJP option, it was BJP itself which did that…" pic.twitter.com/3pew41hMuF
— ANI (@ANI) November 12, 2019
1) नहीं देना चाहिए डिप्टी सीएम का पद
बता दें कि चुनावों के नतीजे आने के बाद भाजपा और शिव सेना के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर ठन गयी थी। भाजपा जहां एक तरह पूरे पाँच सालों के लिए फड़णवीस को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी, तो वहीं शिवसेना की मांग थी कि ढाई सालों के लिए आदित्य ठाकरे को सीएम बनाया जाए। भाजपा आदित्य ठाकरे को राज्य का डिप्टी सीएम बनाने के लिए तैयार थी, लेकिन शिवसेना ने भाजपा का यह ऑफर नहीं माना, जिसके बाद महाराष्ट्र में यह पूरा सियासी नाटक शुरू हुआ। अब अगर शिव सेना दोबारा भाजपा के पास आती है, तो भाजपा को अब शिव सेना ने डिप्टी CM का पद भी छीन लेना चाहिए और साथ ही मंत्रिमंडल में भी दो-चार लो-प्रोफाइल मंत्रालय से अधिक शिवसेना को नहीं देने चाहिए।
2) नहीं देनी चाहिए BMC में बड़ी भूमिका
बता दें कि वर्ष 2017 में BMC के चुनावों में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग होकर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था और भाजपा को उन चुनावों में बड़ी सफलता मिली थी। बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2012 के चुनाव में उसे महज 31 सीटें मिली थीं। शिवसेना को बीजेपी से महज दो ज्यादा सीट यानी 84 सीटें मिली थीं। बीएमसी चुनाव के बाद एक बार फिर शिवसेना और बीजेपी साथ आ गए थे। इस दौरान बीएमसी की कुर्सी पर बीजेपी ने अपना दावा किया था। शिवसेना ने इसका विरोध किया था। इसके बाद दोनों पार्टियों की आम-सहमति के बाद बीएमसी की कुर्सी शिव सेना के खाते में गई थी। BMC एशिया की सबसे ज़्यादा बजट वाली नगरपालिका है, ऐसे में BMC शिवसेना के लिए अति-महत्वपूर्ण है। वर्ष 2017 के चुनावों से यह स्पष्ट था कि अब भाजपा का जनाधार मुंबई में मजबूत हो गया है और उसे शिव सेना की ज़रूरत नहीं है, बल्कि शिवसेना को भाजपा की ज़रूरत है। ऐसे में अब समय आ गया है कि भाजपा को BMC की कुर्सी पर अपना कब्जा जमाना चाहिए, और यहाँ शिवसेना की भूमिका को सीमित करना चाहिए।
3) केंद्रीय कैबिनेट में भी नहीं दी जानी चाहिए कोई जगह
बता दें कि जब भाजपा और शिव सेना के बीच सीएम कुर्सी को लेकर विवाद हुआ था, तब शिवसेना कोटे से मोदी सरकार में मंत्री अरविंद सावंत ने कैबिनेट से इस्तीफा देने का ऐलान किया था। अब अगर शिव सेना दोबारा भाजपा के साथ आती है, तो भाजपा को किसी शिव सेना के मंत्री को दोबारा कैबिनेट में जगह नहीं दी जानी चाहिए।
इतना स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में पिछले कुछ दिनों में जिस तरह शिवसेना ने अपनी मौकापरस्ती राजनीति का उदाहरण पेश किया है, उससे शिव सेना के समर्थकों को बड़ा झटका पहुंचा है, और इस बात की पूरी आशंका है कि अगर अब राज्य में दोबारा चुनाव होते हैं, तो इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को ही होगा। स्पष्ट है कि भाजपा को अब शिव सेना की कोई ज़रूरत नहीं है, और शिवसेना का भाजपा के बिना कोई गुजारा नहीं है। ऐसे में अब अगर शिव सेना दोबारा भाजपा के साथ आने का प्रस्ताव रखती है, तो भाजपा को डटकर शिवसेना के सामने ये शर्तें रखने की ज़रूरत है।