आंध्र प्रदेश: प्रतिशोध की राजनीति में जगन रेड्डी चढ़ा रहे हैं उद्योग और भारत की छवि की बलि

आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार को छः महीने होने को है और इन छः महीनों में ही जगन सरकार ने कई ऐसे कदम उठा लिए हैं जिसके कारण राज्य के साथ देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होना तय है। दरअसल, जगन सरकार लगातार ऊर्जा, इनफ्रास्ट्रक्चर और अन्य क्षेत्रों से जुड़े उन सभी प्रोजेक्ट्स को रद्द करती जा रही है जिन्हें आंध्र प्रदेश सरकार ने TDP सरकार के समय मंजूरी दी थी। सरकार ने 7000 मेगावाट के सोलर और विंड पावर प्रोजेक्ट को भी रद्द कर दिया है जिसके कारण अब राज्य में 40 हज़ार करोड़ रुपये के निवेश पर तलवार लटक गयी है। वहीं सरकार के इस कदम से निवेशक भी खासा नाराज़ हैं और दोबारा कभी राज्य में निवेश ना करने की बात कर रहे हैं।

दरअसल, जापान, UAE, कनाडा, अमेरिका और सिंगापुर जैसे देशों ने प्रदेश में कई ऊर्जा प्रोजेक्ट्स में निवेश किया हुआ है। हालांकि, अब जैसे ही आंध्र प्रदेश सरकार ने उन प्रोजेक्ट्स को रद्द कर दिया है, ठीक वैसे ही उन सभी कंपनियों का निवेश किया हुआ सारा पैसा डूब गया है। अब इन देशों के राजदूतों ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह से संपर्क साधकर अपनी चिंताओं को साझा किया है। इसके अलावा कई देशों ने भारतीय विदेश मंत्रालय को भी संपर्क साधा है।

जैसे ही रेड्डी सरकार सत्ता में आई, उसने आते ही अमरावती को राजधानी के रूप में विकसित करने हेतु शुरू हुए सभी प्रोजेक्ट्स को रोक दिया, जिसकी वजह से सिंगापुर द्वारा किया जा रहा निवेश अधर में लटक गया। इसके साथ ही सरकार ने सभी ऊर्जा क्षेत्र के प्रोजेक्ट को रिव्यू करने के लिए एक high-level negotiation committee यानि HLNC का गठन करने का निर्णय लिया। बता दें कि इन सभी प्रोजेक्ट्स को पिछली टीडीपी सरकार के समय मंजूरी दे दी गयी थी।

नई आंध्र प्रदेश सरकार ने सभी एनर्जी प्रोजेक्ट्स से बिजली खरीदने से मना कर दिया, जबकि पूर्व की टीडीपी सरकार ने इसके लिए वादा किया हुआ था। ये कंपनियाँ बाद में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट गईं जहां इनके पक्ष में निर्णय आया। हालांकि, जगन सरकार ने कोर्ट का फैसला मानने की बजाय कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने में अपनी भलाई समझी।

इसी तरह UAE के लूलू समूह ने भी जगन सरकार ने नाराज़ होकर आंध्र प्रदेश में कभी निवेश नहीं करने की बात कही है। लूलू समूह को एक इंटरनेशनल कन्वेन्शन सेंटर खोलने के लिए विशाखापट्टनम में जगह आवंटित की गयी थी, लेकिन रेड्डी सरकार ने इस आवंटन को रद्द कर दिया। अब लूलू ने कहा है कि वह आंध्र सरकार के इस निर्णय से सहमत है लेकिन भविष्य में वह कभी राज्य में निवेश नही करेगा। लूलू भारत के डायरेक्टर अनंत राम ने इसपर कहा “हमने एक बहुत ही पारदर्शी बोली प्रक्रिया में भाग लिया था और इस परियोजना के लिए हमें यह ज़मीन लीज़ पर ली थी। हालाँकि, हमने शुरुआती परियोजना विकास लागतों, जैसे अंतर्राष्ट्रीय जाने-माने सलाहकारों को नियुक्त करने और विश्व स्तरीय आर्किटेक्ट्स द्वारा परियोजना को डिजाइन करने के लिए भारी खर्च किया है, हम इस परियोजना के लिए भूमि आवंटन को रद्द करने के आंध्र प्रदेश की नई सरकार के निर्णय से सहमत हैं। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, हमने आंध्र प्रदेश राज्य में किसी भी नई परियोजना में निवेश नहीं करने का फैसला किया है। ”

हालांकि, जगन सरकार के आत्मघाती निर्णय यहीं तक सीमित नहीं हैं। एका अन्य फैसले में सरकार ने राज्य के लगभग 40 फीसदी बार का पंजीकरण रद्द कर दिया। शराब की बिक्री किसी भी राज्य के लिए टैक्स के माध्यम से आय का बड़ा सोर्स होती है। हालांकि, चूंकि अब राज्य में वैध बार्स की संख्या कम हो गयी है, इसलिए अब शराब भी राज्य में कम बिकेगी जिससे सरकार को शराब से होने वाली आय कम होगी।

इसी तरह अमरावती पूरी तरह सरकार द्वारा फंड किए जाना वाला प्रोजेक्ट था और इसे 7 से 8 सालों में पूरा होना था। हालांकि, राज्य में नई सरकार आने के बाद से ही इस प्रोजेक्ट को कई झटके मिल चुके हैं। इसी वर्ष चुनावों के बाद विश्व बैंक ने आंध्र प्रदेश की राजधानी ‘अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना’ के लिए 300 मिलियन डॉलर के कर्ज़ देने के फैसले को रद्द कर दिया था। वर्ल्ड बैंक ने यह फैसला नागरिक समाज समूहों (सिविल सोसाइटी) से शिकायतें मिलने के बाद किया था, जिसमें कहा गया गया था कि इस परियोजना में हजारों लोग विस्थापित हो गए थे और सरकार ने जबरन खेती की जमीनों का अधिग्रहण किया था।

वाईएसआर कांग्रेस सरकार अब अमरावती के किसानों की ज़मीनों को वापस करने पर भी विचार कर रही है। पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के नगर निगम मंत्री बोत्सा सत्यनारायण ने कहा था, ‘हम मानते हैं कि राजधानी के निर्माण में हर कदम पर भ्रष्टाचार हुआ है। राजधानी के लिए जमीन देने वाले किसानों को प्लॉट देने में अनियमितताएं बरती गई हैं। नायडू की सरकार ने प्लॉट के आवंटनों में अपने निकट सहयोगियों को वरीयता दी थी। इसमें जो भी लोग शामिल थे, हमने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। हम राजधानी विकास निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे लेकिन ऐसा भ्रष्टाचारों के खिलाफ उचित कार्रवाई के बाद ही होगा। हम नायडू सरकार के कार्य को कतई आगे नहीं बढ़ाएंगे। हम ऐसे किसानों को उनकी ज़मीन वापस करेंगे, जिनसे ये जमीन जबरन ली गई है’।

जगन सरकार के इन कदमों से राज्य के साथ-साथ भारत की साख को भी बड़ा झटका पहुंच रहा है। एक तरफ जहां भारत सरकार पूरी दुनिया से निवेशकों को लुभाने की योजना पर काम कर रही है, तो वहीं जगन सरकार जैसी राज्य सरकारें सभी निवेशकों को नाराज़ करने पर तुली है जिसके कारण भारत की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाना सिर्फ केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी राज्य सरकारों को भी इसमें अपना योगदान देना होगा और सभी निवेशकों के लिए बेहतर माहौल बनाना होगा।

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