चीन को वैश्विक मंच पर शर्मिंदा करने के लिए भारत के पास मौका था, लेकिन नहीं किया, करना चाहिए था

चीन

इस महीने की शुरुआत चीन ने भारत को धमकाकर शुरू की थी। चीन ने कहा था कि जिस जम्मू-कश्मीर को भारत ने आधिकारिक तौर पर दो हिस्सों में बांटा है, वह उसको मान्यता नहीं देता। चीन ने बेहद ही कड़े शब्दों में भारत को धमकी जारी की थी। ठीक उसी दिन, यूएन में चीन द्वारा ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर भी एक वोटिंग हुई थी। हालांकि, भारत ने इस वोटिंग में हिस्सा ना लेना ही बेहतर समझा। अब यह बात सोच से परे है कि जो चीन आए दिन भारत को आँखें दिखाने का काम करता हो, और बार-बार भारत के आंतरिक मामलों में दखल देता हो, आखिर भारत को यूएन में उस चीऩ के खिलाफ खड़ा होने से कौन रोक रहा है?

दरअसल, यूएन के 23 सदस्य देशों ने चीऩ द्वारा ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर एक कड़ा बयान जारी किया था। इन सभी देशों ने अपने बयान में चीन से इन ऊईगर मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने को कहा था। हालांकि, भारत ने इस बयान पर हस्ताक्षर ना करना ही सही समझा। अब इस पूरे मुद्दे को लेकर भारत की क्या रणनीति है, यह तो साफ़ नहीं है, लेकिन इतना ज़रूर है कि भारत के पास चीन की आँखों में उंगली करने का एक सुनहरा अवसर मौजूद था, जो कि हमने गंवा दिया।

बता दें कि ऐसी खबरें समय-समय पर आती रहती हैं, जो यह पुष्ट करती हैं कि चीन इस्लाम को एक बीमारी की तरह ट्रीट करता है और मुसलमानों को शिक्षित करने के नाम पर वह उन्हें बंदीगृह में रखता है। चीऩ में मुसलमानों की कुल संख्या लगभग 2.3 करोड़ है। जबकि शिंजियांग में उइगर मुसलमानों की कुल संख्या 10 लाख है। उइगर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं। चीन में इन मुसलमानों को स्पेशल डिटेन्शन कैंप्स में रखा जाता है जहां कट्टरवाद को खत्म करने के नाम पर इन मुसलमानों को गहरी यातनाएं दी जाती हैं।

चीन अपने यहां के मुसलमानों को उनकी धार्मिक मान्यताओं से दूर ले जाने के तमाम हथकंडे अपनाता रहा है। ऐसी खबरें आती रही हैं कि, उइगर शिवरों में इस्लाम के प्रति घृणा फैलाने, इस्लाम के खिलाफ निबंध लिखने, इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ भड़काने और घृणा फैलाने जैसी तमाम शिक्षाएं दी जाती हैं। यहां तक कि, उन्हें सूअर का मांस खाने और शराब पीने के तक लिए मजबूर किया जाता है जो मुस्लिम धर्म में वर्जित माना जाता है। इसके लिए चीन मुसलमानों को कथित रुप से ‘री-एजुकेट’ किए जाने का नाम देता आ रहा है। चीनी सरकार का यह मानना है कि उसने सभी लोगों को पूरी धार्मिक स्वतन्त्रता दी हुई है, हालांकि यह भी सच्चाई है कि उसने पिछले कुछ समय से मुस्लिमों पर बेतहाशा पाबंदी लगाई हुई है।

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, चीऩ के नजरबंदी शिविरों में मुस्लिम उइगर अल्पसंख्यक समुदाय से करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को शिविरों में बंधक बनाकर रखा गया है। इस दौरान उनपर कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा का राग अलापने और इस्लाम की आलोचना करने के लिए दबाव बनाया जाता है।

पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम ने चीऩ का दौरा किया था। इस टीम ने चीन में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि “ये समझ के बाहर है कि उइगर समुदाय के लोगों को चीऩ ने री एजुकेशन कैंप में क्यों रखा है?”

चीन को अरुणाचल प्रदेश में पीएम के दौरे से परेशानी है, चीऩ को NSG ग्रुप में भारत के शामिल होने से भी परेशानी है और वह जब चाहे भारत विरोधी बयान देता रहता है। हालांकि, भारत ना तो हाँग-काँग मुद्दे पर कुछ बोलता है, ना ही तिब्बत मुद्दे पर और ना ही चीऩ द्वारा ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार के मुद्दे पर। भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीऩ की इस गुंडागर्दी का जवाब देना अब सीखना ही होगा, नहीं तो चीन ऐसे ही भारत को अपनी आँखें दिखाता रहेगा।

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