देश में हवाई यातायात को नियंत्रित करने वाले नागरिक विमानन निदेशालय (डीजीसीए) ने बजट एयरलाइन ‘इंडिगो’ से ए-320 नियो विमानों के प्रेट एंड व्हिटनी (पीडब्ल्यू) इंजन बदलने को कहा। 24 से 26 अक्टूबर तक लगातार 3 दिन इंडिगो विमानों के पीडब्ल्यू इंजन बंद होने की घटनाएं सामने आईं थी। इस पर डीजीसीए ने सोमवार को कंपनी के रखरखाव और सुरक्षा रिकॉर्ड की जांच की थी। डीजीसीए ने कहा था, “इस तरह की घटनाओं के परिणाम घातक हो सकते हैं और इसने हवाई सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। आपको समझना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं पहले कभी नहीं हुई हैं, इसलिए अब तुरंत और प्रभावी कार्रवाई की जरूरत है।”
हालांकि यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि पैट एंड व्हिटनी के इंजन का वर्ष 2016 में प्रयोग में आने के बाद से ही कुछ समस्याएँ देखने में आई हैं और कई बार एयरलाइंस को अपने विमानों को वापस जमीन पर उतारने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इन कारणों से इन एयरलाइंस को घाटे का भी सामना करना पड़ा हैं। इंडिगो को पिछली तिमाही में 1,062 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा तिमाही घाटा हुआ था।
इसके बावजूद यह कम किराये वाले एयरलाइन भारत की सबसे अधिक पैसेंजर ढोने वाली एयरलाइन बनी हुई है। इस कंपनी का मार्केट शेयर इस वर्ष सितंबर तक 48.2 प्रतिशत रहा था। हालांकि इंडिगो को आखिरी तिमाही में जरूर घाटे का सामना करना पड़ा, लेकिन साल की पहले तिमाही में इस कंपनी को 1203 करोड़ रूपाय का सबसे बड़ा लाभ हुआ था। इंडिगो को झटका जरूर लगा है, लेकिन इसकी सफलता की कहानी अविश्वसनीय रही है। इसका उदय उस समय की अवधि में हुआ जब अधिकतर प्रमुख एयरलाइंस जैसे जेट एयरवेज, किंगफिशर और एयर इंडिया को भयावह गिरावट का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश व्यवसायी, रिचर्ड ब्रैनसन ने एक बार एयरलाइन उद्योग के बारे में कहा था- “यदि आप एक करोड़पति बनना चाहते हैं, तो एक बिलियन डॉलर से शुरुआत करें और फिर एक एयरलाइन शुरू कर दें!” भारत के मामले में भी यह उतना ही प्रासंगिक लग रहा हैं। हालांकि, अस्तित्व में आने के बाद से अभी तक इंडिगो इस प्रतिस्पर्धी उद्योग में अभूतपूर्व रूप से सफल रहा है।
इस सफलता का राज इंडिगो का एक ही प्रकार का विमान प्रयोग करना है। इंडिगो अभी तक सिर्फ एयरबस 320 का ही प्रयोग करता है। आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इंडिगो के पास 247 विमानों का बेड़ा है, जिसमें 89 नई पीढ़ी के A320 NEOs, 129 A320 CEOs, 22 ATRs and 7 A321 NEO शामिल हैं। यह अन्य एयरलाइनों के बेड़े के ठीक विपरीत है, जिसमें कई श्रेणियों के विमान शामिल हैं। एक ही वर्ग हवाई जहाजों के संचालन से इंडिगो को होने वाले खर्च में कटौती करना आसान होता है। यही कारण है यह कंपनी उपभोक्ताओं को कम लागत में ही अच्छी सुविधा दे पाती है। एक ही वर्ग के विमान का संचालन करने से इंडिगो को दो बड़े लाभ हुए हैं। सबसे पहला, विमानों की खरीद में उसे कम लागत पड़ती है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2005 इसने फ्रांसीसी विमान निर्माता एयरबस के साथ पहला 100 विमानों का सौदा किया था। उस वक्त भारत में बोइंग के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए एयरबस ताक में था। इसी वजह से, इंडिगो अपने अनुकूल मूल्य पर 100 विमान खरीदने में सफल रहा था, और शुरुआती वर्षों में लाभ कमाया। और दूसरा, एक ही वर्ग के विमान रखने से कंपनी को विमान के कर्मचारीयों का प्रशिक्षण और, विमान के उन्नयन की लागत में भारी कमी का फायदा हुआ जिसने एयरलाइन कंपनी को लागत कम करने में काफी मदद की।
एक और कारण है कि जिसने इंडिगो को बड़ा मार्केट बनाने में मदद की है और वह है सेल एंड लीज बैक मॉडल। कंपनी एक तरफ जहां बड़ा बड़ा ऑडर्र देकर बड़ा डिस्काउंट पाने में कामयाब होती है, वहीं दूसरी ओर वह डिलिवरी लेने के बाद विमानों को बेच देती है और फिर उन्हे लीज पर ले लेती है। बाजार कीमत पर बेचने से भी मुनाफा होता है जिससे लीज के किराये के एक हिस्से को चुकाने में सहूलियत होती है, इससे रुपया एक बार में खर्च नहीं होता। तकनीकी भाषा में इस मॉडल को सेल एंड लीज बैक मॉडल कहते हैं। और इंडिगो इसे शुरु करने वाली देश में पहली एयरलाइन थी। इंडिगो को इस व्यवस्था से काफी फायदा हुआ और आज देश के कई एय़रलाइन इस मॉडल को अपना रहे हैं।इसके कई फायदे हैं। पहला तो यह कि बेड़े में विमान की औसत उम्र काफी कम होती है। आज की तारीख में इंडिगो के विमानों की औसत उम्र तीन वर्ष से कुछ ज्यादा ही है। दूसरी बात ये कि नए विमान की वजह से ईधन की खपत कम होती है। तीसरी बात ये कि विमान के नए होने की वजह से रखरखाव का खर्च कम होता है। साथ ही वारंटी पीरियड का भी फायदा मिलता है। बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा अक्टूबर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, इंडिगो द्वारा इस मॉडल के तहत 169 में से 143 विमान संचालित किए जा रहे थे।
अब देखिए 180 सीटों वाले विमान के लिए सरकारी नियम कम से कम चार एय़र होस्टेस या फ्लाइट पर्सर रखने की बात कहते हैं। दूसरी एय़रलाइन अपने विमानों में एयर होस्टेस की संख्या छह तक रखती हैं जबकि इंडिगो के विमानों में यह संख्या चार से ज्यादा नहीं होती। इसी तरह इंडिगो के विमानों में खाने पीने के लिए दो ही सर्विस ट्रे रखी जाती है। एक अतिरिक्त क्रू मेंबर या ट्रे का मतलब होगा अतिरिक्त यात्री का भार, जिससे इंधन की खपत पर असर प़ड़ेगा। और इंडिगो इस तरह अपने विमानों का वजन कम करती है जिससे उसको थोड़ा-थोड़ा करके बड़ा वित्तीय फायदा होता है।
ये भले ही छोटी-छोटी बाते हों, लेकिन औसतन दिन भर में एक विमान अगर 6-7 उड़ान भरे और बेड़े में 97 विमान हो तो अंदाजा लगा सकते हैं कि उड़ान की लागत पर इसका किस तरह से असर पड़ेगा। इन्हीं सब की बदौलत लागत में कमी सम्भव हो पाती है। देश में विमानन कम्पनियों की सबसे बड़ी परेशानी महंगा हवाई इंधन ही है।
यह इंडिगो का वीजन ही है, जिसने इंडिगो को आज इस मुकाम पर पर पहुंचाया है, जब अधिकांश एयरलाइंस खुद को बचाने में सफल नहीं रही है। सेंटर फ़ॉर एशिया-पैसिफ़िक एविएशन (CAPA) के क्षेत्रीय प्रमुख कपिल कौल के अनुसार, IndiGo की सफलता इस कंपनी के फोकस के साथ- “ऑन-टाइम प्रदर्शन,स्वच्छ विमान और अच्छी सेवा” का परिणाम है। कंपनी ने यह स्पष्ट किया है कि यह एक कम लागत वाली कंपनी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यह अपने यात्रियों को कम गुणवत्ता वाली सेवा प्रदान करती है।
इंडिगो के अध्यक्ष, आदित्य घोष ने बार-बार यही दोहराया है कि “कम लागत का मतलब कम गुणवत्ता नहीं होता है।” यही प्रतिबद्धता और दृष्टिकोण ही है, जो इस एयरलाइन की अभूतपूर्व सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण रहा है। इंडिगो ने कम लागत वाले एयरलाइन के रूप में शुरुआत की और आज तक वह इस मॉडल पर मजबूती से कायम है। अपने अधिकांश प्रतियोगियों के विपरीत, इंडिगो बोर्ड पर गर्म भोजन की सुविधा नहीं देता है। भारी उपकरणों और कटलरी से बचकर, इंडिगो विमान को हल्का करने और ईंधन की खपत को कम करने में सक्षम रहा है, वह भी यात्रियों को परेशान किए बिना। इंडिगो ने इस बात को समझा है कि भोजन और ऐसी अन्य सुविधाओं की तुलना में यात्रियों के लिए सेवा और समय की पाबंदी अधिक मायने रखती है। कोई भी व्यक्ति समय की बचत करने के लिए ही सड़क या रेल से यात्रा करने के बजाय विमान से जाने का विकल्प चुनता है। गर्म भोजन परोसने आदि सेवा समय की पाबंदी की भरपाई नहीं कर सकती है। यही कारण है कि इंडिगो एयरलाइन उद्योग से मुनाफा कामने में सक्षम रहा है, वह भी ऐसे समय में जब अधिकांश एयरलाइन को मंदी का सामना करना पड़ा है। यही नहीं टॉप-20 एयरलाइंस में सबसे कम टर्नओवर होने के बावजूद यह देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी बन चुकी है और इसके शेयर दुनिया में दूसरे सबसे महंगे एयरलाइंस शेयर बन गए हैं।