‘क्या ‘तानाजी’ भी नागिन है?’, द क्विंट तानाजी के ट्रेलर रिलीज़ होने के बाद से पागल हो गया है

द क्विंट

लगता है द वायर को द क्विंट में एक नया प्रतिद्वंदी मिल गया है। एक वर्ष पहले, जब सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म ‘उरी’ का पहली बार ट्रेलर जारी किया गया था, द वायर ने फिल्म में कुछ विशेष दिलचस्पी दिखाई, और इस न्यूज़ पोर्टल ने फिल्म की जमकर आलोचना की जिसने वायर की उम्मीदों के विपरीत सिनेमाघरों में दर्शकों का दिल जीता और बम्पर कमाई भी की। अभी तक ये फिल्म दुनिया भर में 340 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर चुकी है। ऐसा ही कुछ ‘तानाजी – द अनसंग वॉरियर’ को लेकर द क्विंट में देखने को मिल रहा है. ओम राउत द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अजय देवगन वीर मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे की भूमिका में हैं, जो कोंधना के किले को पुनः प्राप्त करने के लिए हुए युद्ध में शहीद हो गए थे।

कई लोग इस  फिल्म में सनातन धर्म के अप्रत्याशित महिमामंडन पर आहत हैं लेकिन ऐसा लगता है कि द क्विंट को इससे बड़ा सदमा लगा है। ये सदमा ऐसा है कि वो आये दिन तानाजी फिल्म पर अपनी खीझ आर्टिकल के रूप में निकाल रहा है।

जैसा कि हमारे लेख में उल्लेख  किया गया है, द क्विंट ने एक लेख लिखा था , जिसका शीर्षक था ’10 बातें जो हमें ‘तानाजी’ के ट्रेलर को देखकर समझ आयी”। इस आर्टिकल में क्विंट ने ऐसे बेतुके सवाल पूछे थे कि जैसे कि:

‘क्या कागज़ की कमी से धड़ाम हुआ मुग़ल साम्राज्य?’

‘क्या ‘weird flex’ के कूल होने से पहले मराठाओं ने किया प्रयोग?’

‘सभी हाथी भीमकाय क्यों होते हैं?’

‘क्या तलवारों के साथ ज़िप लाइनिंग सबसे घटिया एडवेंचर सपोर्ट रहा है?’

‘क्या ‘तानाजी’ भी नागिन है?’

‘सिंहगढ़ का युद्ध सर्जिकल स्ट्राइक में कब बदल गया?’

परन्तु ‘तान्हाजी’ को निशाने पर लेने के लिए द क्विंट का ये इकलौता लेख नहीं था। एक और लेख में इस मीडिया पोर्टल ने  ‘तानाजी’ के ट्रेलर की तुलना ‘पानीपत‘ के ट्रेलर से कर दी। लेखिका ने यह भी ध्यान देने का प्रयास नहीं किया कि कैसे दोनों फिल्मों के विषय और उनके ट्रेलर के अप्रोच में ज़मीन आसमान का अंतर है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि द क्विंट ने आखिरी के लिए ‘सबसे अच्छा ‘ लेख बचा लिया था। ‘पानीपत’हो या ‘तानाजी, बॉलीवुड बेच रहा है हिंदुत्व का इतिहास’ शीर्षक वाले लेख में, द क्विंट ने न केवल ट्रेलर का मजाक बनाया, बल्कि विभाजनकारी राजनीति का प्रयोग करते हुए इसने बॉलीवुड पर ही भेदभाव का आरोप लगा दिया।

द क्विंट के इस लेख के एक अंश के अनुसार, “फिल्में अक्सर अपने समय की राजनीति का आईना होती हैं। नेहरू के जमाने में फिल्मों का झुकाव समाजवाद की ओर था, मसलन ‘दो बीघा जमीन’ और ‘जिस देश में गंगा बहती है। फिलहाल नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी का राज है। इस दौरान उग्र राष्ट्रवाद दिखाने वाली फिल्मों का बोलबाला है। आतंकवाद रोधी ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक और ‘बेबी’एक देश के रूप में भारत का महिमा मंडन करने वाली फिल्मों के उदाहरण हैं। इनसे भी महत्त्वपूर्ण हैं वो ऐतिहासिक फिल्में और खासकर मध्यकालीन जमाने का इतिहास बताने वाली फिल्में, जिनमें हिंदू राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ये बात संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’(2018) और ‘बाजीराव मस्तानी’(2015) से साफ है। इस कड़ी में ताजा उदाहरण हैं, आने वाली फिल्में ‘पानीपत: द ग्रेट बेट्रायल’ और ‘तानाजी: द अनसंग हीरो।”

ये उरी के विरोध में द वायर द्वारा फैलाए गए वैमनस्य से ज़्यादा भिन्न नहीं है। द वायर ने अपने आर्टिकल में लिखा था कि “उरी फिल्म बीजेपी के राजनीति का हिस्सा है जिसका फायदा वह 2019 के आम चुनाव में लेना चाहती है। फिल्म के जरिये हमें एक नया हिंदुस्तान’ से परिचित कराया जाता है जहां भारत पाकिस्तान को हिंसा और खून खराबे से सबक सिखाने के लिए तैयार है। यह स्वर तब और बढ़ जाता है जब सैनिक ‘ जय हिन्द’ के नारे लगाते हैं, और उनके नेता कहते हैं, उन्हें कश्मीर चाहिए और हमें उनका सिर। ”

हालाँकि, द क्विंट वायर के मुकाबले एक अलग ही लेवल स्थापित किया है। रंग केसरिया का उपहास उड़ाने से  लेकर, सबसे निकृष्ट जातिवाद को बढ़ावा देने तक, द क्विंट अपने ही तरीके से ‘तानाजी’ का प्रमोशन भी कर रहा है और अपने प्रोपेगेंडा को बढ़ावा दे रहा है।

 

ऐसे द क्विंट के आर्टिकल का एक और उदाहरण देखने को मिला जिसे पढ़कर आप भी कहेंगे इतनी नफरत आती कहां से है.. यकीन न हो तो इस आर्टिकल की इन पंक्तियों को पढ़िए जिसमें लिखा है, “तानाजी का ट्रेलर: सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर भगवा पावर तक सबकुछ दिखा”, इस आर्टिकल में लिखा है कि “मालूम पड़ता है कि फिल्म निर्माता ने जानबूझकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’  नैरेटिव का इस्तेमाल किया है, ताकि मराठा और मुगलों के बीच जंग को भारत-पाकिस्तान तनाव के साथ जोड़ा जा सके। साफ है कि ये नैरेटिव ‘हिन्दू बनाम मुस्लिम पर आधारित है। 1670 में हुई कोंढाना की लड़ाई (अब पुणे के पास सिंघनाद) पर आधारित फिल्म निश्चित रूप से धार्मिक आधार पर हुई लड़ाई दिखलाती है। उस जंग के मुख्य किरदार थे छत्रपति शिवाजी के कोली जाति के एक सेनापति तानाजी मल्सारे और मुगल साम्राज्य से दो-दो हाथ करने वाले राजपूत सेनापति उदयभान सिंह राठौड़। उस जंग में कहीं हिन्दू-मुस्लिम का एंगल नहीं था लेकिन, फिल्म निर्माता ने जानबूझकर उस जंग को ‘अच्छे और बुरे,’ ‘हिन्दू बनाम मुसलमान और भारतीय राष्ट्रवाद की विदेशी शासन से लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया। तानाजी की भूमिका में अजय देवगन हैं, जबकि उदयभान की भूमिका में सैफ अली खान। फिल्म का राष्ट्रवादी झुकाव पोस्टर से ही साफ है, जिसमें अजय देवगन को तिलक लगाए हुए और दाढ़ी के साथ सैफ अली खान को मुस्लिम किरदार के रूप में दिखाया गया है, जिसके चेहरे पर कोई धार्मिक निशाना नहीं है। जबकि सच्चाई ये है कि दोनों हिन्दू थे।” द क्विंट ने आगे लिखा है कि “पोस्टर और पूरे ट्रेलर में मराठा पहचान पीले और भगवा रंग की है, जबकि मुगलों को भयंकर दिखलाया गया है. मराठा सेना सफेद या भगवा कपड़ों में हैं, जबकि मुगल काले या हरे कपड़ों में। साफ है कि फिल्म की थीम ‘अच्छा बनाम बुरा’ और ‘हिन्दू बनाम मुसलमान है”।

द क्विंट के इस आर्टिकल को जब आप पूरा पढ़ेंगे तो आपको इसकी भगवा और हिन्दू शासकों के प्रति नफरत स्पष्ट नजर आएगी। ऐसा लगता है कि तानाजी और शिवाजी जैसे योद्धाओं की शौर्य गाथा से क्विंट परेशान है और वो इतना विचलित है कि खुलेआम अपनी नफरत का प्रचार कर रहा है। ये वही वामपंथी पोर्टल हैं जो आक्रमणकारियों की कथित वीर गाथा का बखान करते नहीं थकते। वैसे ये अच्छा ही है जैसे फिल्म ‘उरी’ के खिलाफ अपना जहरीला प्रोपेगेंडा चलाकर वायर ने इस फिल्म का खूब प्रमोशन किया था अब क्विंट भी वही कर रहा है, जिससे लोगों में इस फिल्म को लेकर दिलचस्पी जरुर बढ़ेगी। अब तो केवल इस फिल्म के रिलीज़ होने का इंतजार है।

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