जेएनयू के मुफ्तखोरों को लाइन पर लाने के लिए स्वामी ने ढूंढा तगड़ा इलाज

दो साल में जेएनयू समस्या का शर्तिया इलाज!

स्वामी

देश में एक ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जिनके पास सभी सवालों का एक जवाब होता है और वो भी जानदार। चाहे देश की इकॉनमी की बात हो या कश्मीर का या फिर राम मंदिर का मामला ही क्यों न हो। अब आप तो समझ ही गए होंगे हम किसकी बात करने जा रहे हैं। जी हां, वो हैं भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, जो अपने बेबाकी के लिए पूरे भारतीय राजनीति में जाने जाते हैं। इस बार उन्होंने JNU विवाद को खत्म करने के लिए एक अनोखा प्लान बताया है।

हाल ही में हुए JNU में मामूली फीस बढ़ोतरी के बाद छात्र रोड पर उतार आए थे और पुलिस से झड़प भी हुई थी। आय दिन वहां कुछ-न कुछ होता रहता है। इससे निपटने के लिए भाजपा नेता और राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक जबरदस्त प्लान बताया है। उन्होंने मंगलवार को कहा कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि JNU को दो साल के लिए बंद कर देना चाहिए और असामाजिक तत्वों को बाहर निकालकर, विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सुभाष चंद्र बोस विश्वविद्यालय करने के बाद इसे पुनः खोलना चाहिए। स्वामी ने एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा, ‘‘नेहरू के नाम पर बहुत से संस्थान हैं। ऐसे में JNU का नाम बदलकर बोस के नाम पर रखने से छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’’

ये बात उन्होंने NDMC कन्वेंशन सेंटर में लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एस.के. शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा?’ के विमोचन के अवसर पर कहा। उन्होंने कहा कि नेहरू जैसे कई प्रधानमंत्री हुए हैं, पर नेहरू के नाम पर कई इमारतें हैं। ऐसे में जेएनयू का नाम बदलकर आजादी के आंदोलन के महान नेता सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कर दिया जाना चाहिए।

स्वामी ने आगे कहा कि समाजवादी और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी नेहरू के विपरीत बोस राष्ट्रवादी थे और विश्वविद्यालय का नामकरण उनके नाम पर करने के बाद छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

बता दें कि कई दिनों से देश की राजधानी दिल्ली में छात्र बवाल कर रहे हैं और यह बवाल किसी और चीज के लिए नहीं बल्कि फीस बढ़ाए जाने के खिलाफ है। इसके केंद्र में है देश की सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय यानि JNU। कुछ सप्ताह पहले प्रशासन ने फीस में बढ़ोतरी कर दी थी वह भी मामूली। मतलब जो नाममात्र की फीस लगती थी उसे जरा सा बढ़ा दिया गया था। इसके बाद तो जैसे JNU में भूकंप सा आ गया हो। कुछ अति उत्साही छात्र जो अपने लाल झंडे के सामने झुकने के लिए जाने जाते हैं, सभी ने मिल कर पूरे कैंपस में रायता फैला दिया। जगह-जगह लाल सलाम वाले नारे लिख दिए।

सिर्फ इतना ही नहीं स्वामी विवेकानंद की मूर्ति जिसका अभी अनावरण भी नहीं हुआ था उसे क्षत-विक्षत कर उसके पाये में कई असंवेदनशील स्लोगन लिख दिए गए। इसके बाद यह तमाशा रोड पर भी उतर गया और सड़क छाप यात्रा निकाली गई। इसके बाद जेएनयू प्रशासन ने रविवार को मौजूदा गतिरोध के समाधान के लिए एक आंतरिक उच्च स्तरीय कमेटी गठित की थी। सात सदस्यीय कमेटी ने सोमवार को इस मामले में कुछ सिफारिशें दी थीं।

वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थियों के लिए जेएनयू किसी स्वर्ग से कम नहीं रहा है। अभिव्यक्ति की निर्बांध स्वतन्त्रता इस स्थान पर प्रचुर मात्र में पाये जाने का दावा किया जाता है। परंतु अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करने के लिए बदनाम जेएनयू के अराजक छात्रों को अगर सुधारना हो तो सुब्रहण्यम स्वामी की बात बेहद महत्वपूर्ण है, ऐसा करने से वहां से देशद्रोही विचारधारा की जड़ों को समाप्त किया जा सकेगा।

सुब्रमण्यम स्वामी अपने प्रखर वक्तव्यों के लिए जाने जाते हैं। उनके बयानों में कही-न-कही लॉजिक जरूर होता है और अगर हम उनके JNU को 2 वर्ष के लिए बंद करने के सुझाव को देखें तो यह फुलप्रूफ आइडिया लगता है। भारत सरकार को इस सुझाव को मान लेना चाहिए।

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