कांग्रेस और हिपोक्रेसी में तो चोली दामन का साथ है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण आज फिर देखने को मिला है, जब सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि मामले में राम जन्मभूमि न्यास के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया। कोर्ट ने माना कि विवादित स्थल पर श्री राम का जन्म हुआ था, और उन्होंने मुस्लिम पक्ष के लिए अयोध्या में वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद बनाने का निर्णय भी सुनाया।
देशभर में इस निर्णय का लगभग सभी पक्षों ने खुलकर स्वागत किया। इस परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस ने भी निर्णय का समर्थन करते हुए कहा,” भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का सम्मान करती है। पार्टी ने कहा कि हम सभी संबंधित पक्षों और सभी समुदायों से निवेदन करते हैं कि वे भारत के संविधान में स्थापित ‘‘सर्वधर्म समभाव” तथा भाईचारे के उच्च मूल्यों को निभाते हुए अमन-चैन का वातावरण बनाए रखें।”
#BreakingNews | "…We are in favour of the construction of Ram Temple. #AyodhyaJudgement not only opened the doors for temple construction but also closed the doors for BJP and others to politicize issue." Randeep Surjewala, Congress.
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— NDTV (@ndtv) November 9, 2019
इतना ही नहीं, कांग्रेस की केंद्रीय वर्किंग कमेटी ने ये भी कहा कि हर भारतीय की जिम्मेदारी है कि हम सब देश की सदियों पुरानी परस्पर सम्मान और एकता की संस्कृति एवं परंपरा को जीवंत रखें।
परन्तु कांग्रेस के मुंह से ये बातें वास्तव में शोभा नहीं देती। राम जन्मभूमि मामले में यही कांग्रेस थी जिसने मामले की त्वरित निस्तारण में ना केवल रोड़े अटकाए थे, अपितु श्री राम के अस्तित्व पर भी सवाल उठाए थे। हम कैसे भूल सकते हैं कि यह वही कांग्रेस है जिसने राम को कपोल कल्पना की बात कहते हुए श्रीराम सेतु को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था?
बता दें कि 2005 में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता में आसीन यूपीए की सरकार ने राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था। यही नहीं इस पुरानी पार्टी ने रामसेतु तक पर बांध बनाने पर काम शुरू करने की तैयारी शुरु कर दी थी।
उस समय भाजपा ने कांग्रेस के इस विवादित निर्णय का पुरजोर विरोध किया था। 2006 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि राम के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं और इस बात के कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं कि ‘राम-सेतु’ का निर्माण पौराणिक चरित्रों द्वारा किया गया।
परन्तु सनातन समुदाय का मानना है कि ‘राम सेतु’ का निर्माण भगवान राम ने वानरों की सेना के जरिए कराया। भाजपा ने सदैव सेतुसमुद्रम परियोजना का विरोध किया है। ये भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ही थे जिन्होंने राम सेतु को कांग्रेस-डीएमके जोड़ी द्वारा खंडित करने से रोका था।
लाखों हिंदुओं की भावनाओं को ताक पर रख कर कीराम सेतु को हटाने की योजना बनाई थी जिसके तहत तत्कालीन सरकार ने 2005 में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट (SSCP) का ऐलान किया था। हालांकि, सुब्रमण्यम स्वामी ने तब इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन सरकार की इस योजना को फेल कर मामले में विजयी हुए थे। इस पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस की गंदी साजिश को सफल होने से उन्होंने रोका था और एक बड़ी न्यायिक लड़ाई होने से भी रोका था।
परन्तु सनातन धर्म का अपमान यहीं पर नहीं रुका। यूपीए सरकार में उनकी पार्टनर रही डीएमके पार्टी ने सरेआम श्रीराम को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। श्रीराम के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाना हो, या फिर श्री राम को दुष्ट बता राम लीला के कलाकारों का तमिलनाडु में अपमान करना हो, डीएमके ने तो मानो श्रीराम का नाम इतिहास से मिटाने की ठान ले थी। ये अलग बात थी कि तमिलनाडु की जनता ने उन्हें 2011 में सत्ता से ही बाहर कर दिया था।
परन्तु यह तो कुछ भी नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो यह बयान दिया कि जो लोग मंदिर जाते हैं, वे लड़कियों को छेड़ते हैं। इसे हिपोक्रेसी की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, बताइए?
सच कहें तो कांग्रेस संसार में ऐसा आखिरी पक्ष है जो राम मंदिर पक्ष पर कुछ भी बोलने का अधिकार रखता है। स्वतंत्रता के बाद भी जिस पार्टी ने अपने स्वार्थ के लिए वर्षों तक इस निर्णय में बाधाएं डाली, उसके मुख से मंदिर वाले पक्ष का समर्थन करना किसी को भी स्वाभाविक नहीं लगेगा। कांग्रेस जानती है कि मंदिर केवल धार्मिक है, अपितु देश के जनमानस के स्वाभिमान के लिए भी एक अहम विषय है। परन्तु कांग्रेस के हिपोक्रेट स्वभाव को देखते हुए इनकी दाल बार जनता के सामने नहीं गलने वाली।