श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा 28 और 29 नवंबर को भारत दौरे पर थे, जहां उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार किसी देश का दौरा किया। इस दौरान राजपक्षा ने भारत को एक बार फिर सुनिश्चित किया कि भारत और श्रीलंका के रिश्तों पर किसी तीसरे देश का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने साथ ही श्रीलंका के कब्जे में मौजूद सभी भारतीय नावों को वापस भारत को सौंपने की दिशा में कदम उठाने का ऐलान किया। वहीं भारत ने श्रीलंका के साथ एक बार फिर आर्थिक कूटनीति का बेजोड़ उदाहरण पेश किया। भारत ने श्रीलंका को 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान करने की घोषणा की, जिसमें से भारत 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के श्रीलंका को लाइन ऑफ क्रेडिट जारी करेगा, वहीं आतंक से लड़ने के लिए श्रीलंका को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर अतिरिक्त आर्थिक सहायता दी जाएगी।
बता दें कि भारत ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ श्रीलंका में तमिल समुदाय के लिए India Housing Project के तहत घर बनाने का भी आश्वासन दिया है। भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए इस हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत अब तक 46 हजार घर बनाए गए हैं। इसके साथ ही तमिल मूल के लोगों के लिए अतिरिक्त 14 हजार घर बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा भारत ने सोलर प्रोजेक्ट के लिए 100 मिलियन डॉलर का ऋण देने का भी फैसला लिया है। गौरतलब है कि भारत और श्रीलंका में मछुआरों की गिरफ्तारी को लेकर अक्सर तनाव की स्थिति बनी रहती है। गोटाबाया राजपक्षा इस मुद्दे को हल करने को लेकर काफी सकारात्मक दिखे। मुलाक़ात के दौरान पीएम मोदी और राजपक्षा ने आतंक की समस्या को लेकर भी विस्तृत चर्चा की।
श्रीलंका में गोटाबाया की सरकार बने अभी सिर्फ 10 दिन ही हुए हैं और इन 10 दिनों में भारत ने गोटाबाया को अपने पक्ष में करने के लिए कई बड़े फैसले लिए हैं और उनका असर भी अब दिखाई दे रहा है। गोटाबाया के राष्ट्रपति बनने के बाद 19 नवंबर को अचानक भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर श्रीलंका पहुंच गए थे और वहां जाकर वे श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाबाया से मिले थे। इसी के साथ राष्ट्रपति बनने के बाद गोटाबाया से मिलने वाले एस जयशंकर पहले विदेशी मेहमान बने थे। इस दौरान एस जयशंकर ने उनको जीत की बधाई दी थी और उनको पीएम मोदी की ओर से भारत आने का न्यौता दिया था। तब गोटाबाया ने भारत आने का न्यौता स्वीकार कर लिया था और घोषणा की कि वे 29 नवंबर को भारत दौरे पर आएंगे।
भारत की यह तत्पर कूटनीतिक चाल इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि गोटाबाया को आमतौर पर भारत-विरोधी समझा जाता है। गोटाबाया ने पूर्व में ऐसे भारत विरोधी बयान दिये हैं जिसके कारण भारत में कुछ लोगों को यह डर था कि अगर वे राष्ट्रपति बनते हैं तो वे भारत के हितों के खिलाफ और चीन के हितों के लिए काम कर सकते हैं। लेकिन जिस तरह भारत सरकार पिछले एक साल से राजपक्षा परिवार से संबंध बढ़ा रही थी, और जिस तरह उनकी जीत के बाद भारत सरकार उनके साथ कूटनीति को आगे बढ़ा रही है, यह वाकई प्रशंसनीय है।
अपनी सबसे नवीनतम कूटनीतिक चाल से तो भारत ने श्रीलंका को पूरी तरह चीन की गिरफ्त से छुड़ाकर अपने पाले में कर लिया है। ठीक ऐसे ही भारत ने मालदीव के साथ भी किया था। मालदीव में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन की हार के बाद नए भारत समर्थक राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह अपने पहले विदेशी दौरे पर भारत में ही आए थे और तब भारत ने मालदीव को 1.4 अरब डॉलर का LOC जारी किया था। अब श्रीलंका के साथ भी भारत ने ठीक ऐसा ही किया है जिसे देखकर चीन को पीड़ा पहुंचाना तय माना जा रहा है।