महाराष्ट्र में राजनीतिक खींचातानी पर भारतीय मीडिया के अनुसार कल शाम लगाम लगती हुई दिखाई दी थी। शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया था कि शिवसेना, काँग्रेस और राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेगी। यहाँ तक कि अखबार और मीडिया भी इस बात से इतने आश्वस्त थे कि अगले सीएम के तौर पर उन्होने फ्रंट पेज पर उद्धव ठाकरे का नाम छाप दिया था। परंतु 23 नवंबर की सुबह होते होते सारा पासा पलट गया, और अधिकांश अखबार अपना-सा मुंह लेके रह गए।
बीजेपी के साथ अपने संबंध तोड़ने के बाद, शिवसेना ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर अपने गठबंधन की घोषणा की, जिनके विरुद्ध बालासाहेब ठाकरे ने बिना झिझक अपना विरोध जताया था । सरकार के लिए हिस्सेदारी का दावा करने के लिए, यदि आवश्यक होता तो शिवसेना सिर के बल खड़े होने के लिए भी तैयार थी और इसके लिए उन्होने स्वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने जैसे अनेक ऊटपटाँग फैसले लिए थे। उदाहरण के लिए इन निर्णयों में जेएनयू में वामपंथियों की बर्बरता का समर्थन करना, अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर की यात्रा को त्यागना , और यहां तक कि वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग पर अपना दावा ठुकराना शामिल था।
कई बैठकों और चर्चाओं के बाद, मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन को सील कर लिया गया था। समाचार पत्र भी अपने दृष्टिकोण में बेहद आश्वस्त थे, और उन्होंने उद्धव को महाराष्ट्र का एकमुश्त सीएम घोषित कर दिया, क्योंकि ऐसा शरद पवार द्वारा पुष्ट किया गया था। उसी के कुछ उदाहरणों आप स्वयं देख सकते हैं-
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— अभिनव (@abhinavpratap_s) November 23, 2019
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परंतु जिस तरह कुछ घंटों में पासा पलटा है, उससे अखबार मीडिया के अति उत्साह न सिर्फ सबके सामने उजागर हुआ है, अपितु ये भी पता चला है की कैसे कुछ स्वघोषित राजनीतिक विशेषज्ञों ने अमित शाह को कमतर आँकने की भूल की थी। उन्होने न केवल शरद पवार और उद्धव को अजेय मान लिया, अपितु उन्होने अजित पवार के अन्तर्मन को समझने की जहमत भी नहीं उठाई। शायद अखबारों ने 23 नवंबर की सुबह के लिए ‘फेकिंग न्यूज़’ से कुछ टिप्स लिए थे, और उन्हे इसकी एक बेहद नायाब कीमत भी चुकानी पड़ी।
चूंकि अखबारों और बाकी मीडिया का ध्यान शिव सेना और एनसीपी पर केन्द्रित था, इसलिए उन्होंने भाजपा के दांवों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। गोवा और कुछ पूर्वोत्तर के राज्यों की भांति मीडिया ने अमित शाह को कमतर आँकने की एक बार फिर भूल की, क्योंकि शायद वे भूल गए थी की राजनीति के लोक में परिवर्तन ही एक स्थायी वस्तु है।