पिछली सरकारों ने कई गलतियां की थी, इन गलतियों में सबसे ऊपर आता है धार्मिक मामलों की गलतियां। जिन्हें वोट बैंक और सेक्युलरिज्म का चोला पहनाकर कई सालों तक विवादों में रखा गया, लेकिन अब पासा पलट चुका है, सरकारें बदल चुकी हैं और फैसले भी बेहद निर्णायक लिए जा रहे हैं। हाल ही में सबसे लंबे समय तक चलने वाले केस में एक बेहद निर्णायक फैसला आया था और वह फैसला था अयोध्या में राम जन्मभूमि को हिंदुओं को सौपने का। अब एक नए फैसले में उत्तराखंड सरकार ने चारों धाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री) और 51 अन्य मंदिरों के प्रबंधन के लिए चारधाम श्राइन प्रबंधन बोर्ड अधिनियम-2019 के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।
इसमें कहा गया है कि इस बोर्ड का अध्यक्ष सीएम होगा लेकिन किसी मुस्लिम शख्स के सीएम बनने की स्थिति में हिंदू कैबिनेट मंत्री को इसका अध्यक्ष बनाया जाएगा। वैष्णो देवी और जगन्नाथ मंदिर श्राइन बोर्ड की तर्ज पर उत्तराखंड में भी श्राइन बोर्ड बनेगा।
त्रिवेंद्र रावत सरकार का मानना है कि चारधाम श्राइन बोर्ड बनने के बाद इन मंदिरों के रख-रखाव और संचालन में सुधार आएगा। उत्तराखंड में ऐसे सभी मंदिर सीधे सरकार के नियंत्रण में आ जाएंगे। चारधाम अभी तक अलग अलग समितियों के अधीन था। राज्य के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा, “तीन सांसद और छह विधायक बोर्ड के सदस्य होंगे। चार अन्य सदस्यों को सरकार नामित करेगी। पुजारियों के तीन प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। वरिष्ठ आईएएस अफसर इसके सीईओ और सचिव होंगे।”
मंत्री ने कहा कि प्रस्तावित नए अधिनियम के तहत चार धाम विकास बोर्ड का गठन किया जाएगा। बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे, बशर्ते वह हिंदू हों। मुख्यमंत्री के गैर हिंदू होने की स्थिति में हिंदू धर्म को मानने वाले मंत्रिपरिषद के वरिष्ठ मंत्री को बोर्ड अध्यक्ष का जिम्मा दिया जा सकेगा। संस्कृति और धार्मिक मामलों का प्रभारी मंत्री उपाध्यक्ष होगा।
देशबंधु की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य बनने के 19 साल बाद पहली बार चारों पवित्र धामों, उनके नजदीकी मंदिरों समेत तकरीबन 50 प्रसिद्ध मंदिरों के विकास, प्रबंधन और देश-दुनिया से आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए यात्रा संचालन को व्यवस्थित करने के लिए सरकार ने उक्त कदम उठाया है।
उन्होंने कहा कि लंबे अरसे से नया श्राइन बोर्ड बनाने पर विचार तो किया जा रहा था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया। विधेयक के अनुसार बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री के पुजारी, रावल, नायब रावल और पंडों के वंशानुगत व परंपरागत अधिकार संरक्षित रहेंगे।
यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सेक्युलरिज्म का दिखावा करने वाली सरकारें अक्सर किसी गैर हिन्दू को ऐसे धार्मिक बोर्ड में नियुक्त कर देती हैं। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपने मंत्री फिरहाद हकीम को तारकेश्वर मंदिर का अध्यक्ष बनाया था लेकिन भारी विरोध के बाद उन्हें अपना फैसला बदलना पड़ा। उत्तरखंड सरकार ने इस बिल में यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई गैर हिन्दू मुख्यमंत्री चुना जाता है तो फिर वह इस बोर्ड का अध्यक्ष नहीं रहेगा और उस स्थिति में मंत्रिपरिषद के वरिष्ठ हिंदू मंत्री को बोर्ड अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा।