‘यहाँ केवल सिखों का स्वागत होगा’- करतारपुर के सहारे से इमरान खान खालिस्तानी एजेंडा को दे रहे बढ़ावा

पाकिस्तान

करतारपुर कॉरीडोर के उदघाटन से कुछ दिन पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने बताया कि उनकी सरकार ने भारत से करतारपुर की तीर्थयात्रा पर आने वाले सिखों को उन्होंने छूट दी है। उन्होंने बीते शुक्रवार यानि 1 नवंबर को ट्वीट कर बताया-

भारत से करतारपुर की तीर्थयात्रा पर आने वाले सिखों को मैंने दो छूट दी है। अब उन्हें पासपोर्ट की जरूरत नहीं होगी, बस उनके पास एक वैध आईडी कार्ड होना चाहिए। भारतीय श्रद्धालुओं को अब 10 दिन पहले रजिस्ट्रेशन नहीं कराना होगा। उद्घाटन के दिन और गुरुजी के 550वें जन्मदिन पर श्रद्धालुओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। हम करतारपुर कॉरिडोर का 9 नवंबर को उद्घाटन करेंगे

बता दें कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने पाकिस्तान के करतारपुर में रावी नदी के किनारे स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारे में अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए थे। करतारपुर का यह गलियारा पंजाब के गुरदासपुर में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे को करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब से जोड़ता है।

यानि करतारपुर कॉरीडोर जाने वाले सिख श्रद्धालुओं के लिए पाकिस्तान ने जितने भी फरमान जारी किए थे, वे लगभग सभी वापस ले लिए गए। इतना ही नहीं, इमरान खान ने करतारपुर कॉरीडोर जाने के लिए वसूला जाने वाला शुल्क भी हटाने का निर्णय लिया है।

अब आप भी यही सोच रहे होंगे कि आखिर आज सूरज किस दिशा में उगा है? परंतु ठहरिए, इमरान खान यूं ही इतने दरियादिल नहीं हुए हैं। वे अभी तो दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि पाकिस्तान तो हमेशा से ही शांतिप्रिय मुल्क रहा है। परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है। दरअसल, इमरान खान द्वारा घोषित की गयी सहूलियतें और कुछ नहीं हैं, पाक के आईएसआई द्वारा खालिस्तानी उग्रवाद को भड़काने के लिए जनता का ध्यान हटाने का एक प्रयास है। इसी वर्ष जुलाई में भारत ने पाकिस्तान को इस बात से अवगत कराया था कि वर्ष में चार बार पाक जाने वाले सिख तीर्थयात्रियों को नियमित रूप से भारत विरोधी प्रचार और खालिस्तान एजेंडे के लिए उकसाया जाता है।

यही नहीं, जब पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरीडोर के उदघाटन के लिए खालिस्तानी नेता गोपाल सिंह चावला को अपना प्रतिनिधि बनाया, तो उसी समय हमें समझ जाना चाहिए था कि दाल में कुछ तो काला है। खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला का मीडिया से बातचीत करना और सिख श्रद्धालुओं को खालिस्तानी बोलना काफी कुछ बताता है। इसी ओर इशारा करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] ने अभी हाल ही में कहा कि करतारपुर कॉरीडोर को लेकर केंद्र सरकार को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि इसके सहारे पाकिस्तानी आईएसआई खालिस्तान के लिए ‘रेफेरेंडम 2020’ नामक अभियान को बढ़ावा देता है।

अमरिंदर सिंह के अनुसार, “कॉरिडोर को खोलना ISI का एजेंडा हो सकता है। इसका उद्देश्य रेफरेंडम-2020 के लिए हो सकता है, जिससे सिख भाईचारे को प्रभावित किया जा सके। खालिस्तान समर्थित संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा भी ऐसा किया जा रहा है। पाकिस्तान द्वारा कॉरिडोर व गुरु नानक के नाम पर यूनिवर्सिटी शुरू करने जैसे फैसलों पर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। इनके पीछे छिपे एजेंडे को भी ध्यान से परखने की जरूरत है। भारत को इस मामले में पाकिस्तान के सिर्फ चेहरे पर नहीं जाना चाहिए, सभी चीजों को समग्र तौर पर लेना चाहिए”।

अमरिंदर का बयान वास्तविकता से विमुख भी नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान और खलिस्तानियों का काफी पुराना नाता रहा है। 1980 के दशक में खालिस्तानी अभियान जब अपने चरम पर था, तो उसे बढ़ावा देने में भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों ने आईएसआई का भी हाथ पाया था। हाल ही में भारत ने पाकिस्तान को इस बात से अवगत कराया था कि वर्ष में चार बार पाक जाने वाले सिख तीर्थयात्रियों को नियमित रूप से भारत विरोधी प्रचार का सामना करना पड़ता है और उन्हें खालिस्तान एजेंडे के लिए उकसाया जाता है। पाकिस्तान को सौंपे डोजियर में भारत ने कहा है कि वहां के एक संघीय मंत्री ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के मारे गए आतंकवादी बुरहान वानी की तारीफ की और सिख श्रद्धालुओं को अपने संबोधन में कहा कि भारतीय सरकार सिखों और कश्मीरियों के साथ ‘गुलाम’ की तरह व्यवहार करती है। इसका अर्थ स्पष्ट है –  पाकिस्तान का एजेंडा भारत के श्रद्धालुओं को करतारपुर साहिब का दर्शन करने का मौका देना नहीं, बल्कि इसके माध्यम से भारतीय सिखों को भारत के खिलाफ भड़काना है और अपना भारत विरोधी एजेंडा चलाना है।

करतारपुर कॉरीडोर को लेकर हाल ही में इमरान खान द्वारा घोषित किए गए सहूलियतें और कुछ भी नहीं, महज छलावा है। असल में पाकिस्तानी सरकार एक बार फिर भारत में आतंकवाद फैलाने हेतु एक नयी युक्ति के अंतर्गत काम कर रहे हैं, और भारत को इसे हल्के में बिलकुल नहीं चाहिए।

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