दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए PM मोदी को अब ‘एक्शन मोड’ में आना होगा

वायु प्रदूषण

शुक्रवार को दिल्ली में धूल के साथ धुंध ने विकराल रूप धारण कर लिया, जब राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण स्तर में 50 पॉइंट्स की वृद्धि होते हुए कुल वायु प्रदूषण इंडेक्स 459 अंकों तक पहुँच गया, और यह Severe श्रेणी में आता है। शीत ऋतु के प्रारम्भ में उभरते इस विषैले धुंध के पीछे का प्रमुख कारण है उत्तर भारत के कुछ राज्यों में पराली यानि फसलों के अवशेषों का जलाया जाना।

अक्टूबर से नवम्बर के बीच में किसान धान की कटाई के साथ गेहूं बोने की तैयारी करते हैं। इसके लिए वे खेत में बचे फसलों के अवशेष को जला देते हैं। इसी को पराली जलाना कहते हैं, जिसके कारण वायु की गुणवत्ता एवं मानव स्वास्थ्य को काफी खतरा पहुंचता है। पराली के जलाने के पीछे पंजाब और हरियाणा के किसानों का प्रमुख हाथ रहता है। इसी के कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सरकार ने मंगलवार तक सभी विद्यालय बंद करने का निर्देश जारी किया है।

दिल्ली समेत भारत के कई शहर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन [WHO] की रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में 30 लाख लोगों की मृत्यु के पीछे वायु प्रदूषण एक प्रमुख कारण रहा है। कुछ शोधों के अनुसार 66 करोड़ भारतीयों के कुल जीवनकाल में वायु प्रदूषण के कारण 3 वर्ष कम हुए हैं। ऐसे में ये अत्यंत आवश्यक है कि केंद्र सरकार ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की भांति वायु प्रदूषण को जड़ से नष्ट करने हेतु एक अभियान चलना चाहिए, और अगर संभव हो सके, तो स्वच्छ हवा को भी स्वच्छ भारत मिशन का एक अहम भाग बनाना चाहिए।

यूनिसेफ़ द्वारा प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार पीएम मोदी के स्वच्छ भारत मिशन के कारण भारत के कई ग्रामों में भूमिगत जल के प्रदूषण में काफी गिरावट दर्ज़ हुई है। बिहार, ओड़ीशा एवं पश्चिम बंगाल में किए गए शोध के अनुसार पता चला कि ऐसे कई गाँव हैं, जो खुले में शौच से मुक्त हैं, और जिसके कारण भूमिगत जल में प्रदूषण की मात्रा में भी काफी कमी दर्ज़ की गई है।

यही नहीं, स्वच्छ भारत मिशन के कारण शिशु मृत्यु दर में भी काफी गिरावट दर्ज़ की गई है। संयुक्त राष्ट्र के इंटर एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टलिटी एस्टिमेशन यानि यूएनआईजीएमई की एक रिपोर्ट [जिसका टीएफ़आई पोस्ट ने अपने लेख में उल्लेख भी किया है] के अनुसार 2017 में 80,2000 बच्चों की मृत्यु हुई, जो 5 वर्ष से कम उम्र के थे। पिछले पाँच वर्षों में ये शिशु मृत्यु की सबसे निचली दर है। 2016 में लगभग 8.67 लाख शिशुओं की मृत्यु हुई थी। मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के कारण शिशु मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक डायरिया में भी काफी गिरावट दर्ज़ हुई है।

साफ सुथरे शौचालय और स्वच्छ पेयजल की कमी के कारण 88 प्रतिशत बच्चों को डायरिया होता है। स्वच्छ भारत मिशन के कारण भले ही बच्चों में असामयिक मृत्यु की दर कम हुई हो, परंतु वायु प्रदूषण से उनका संपर्क हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है। शोधकर्ताओं की माने तो वायु प्रदूषण के लिए प्रभावी क़ानूनों को अविलंब लागू करना चाहिए। इस दिशा में मोदी सरकार ने कुछ सार्थक कदम भी बढ़ाए हैं, जब इस वर्ष के प्रारम्भ में उन्होंने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम का अनावरण किया था, जिसके अन्तरगत पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा में अगले 5 वर्षों में 20-30 प्रतिशत की कमी एवं वायु की गुणवत्ता को सुधारने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएँगे। इसके अंतर्गत 102 शहर चुने गए हैं, जिनके लिए शहरों के प्रदूषण स्तरों के अनुसार उक्त शहर के लिए योजना बनाई जाएगी।

वायु प्रदूषण के कारण जिस तरह स्वास्थ्य के साथ साथ पृथ्वी को भी नुकसान पहुँच रहा है, उसके लिए स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियान की सख्त आवश्यकता है। NCAP अपने उद्देश्य में स्पष्ट है, परंतु यह तभी सफल होगा जब स्वच्छ भारत मिशन की भांति देश का प्रत्येक नागरिक स्वच्छ हवा के लिए अपनी ओर से भरपूर प्रयास करेगा। ये इसलिए भी और अहम है क्योंकि श्रीलंका के दिल्ली दौरे के 2 वर्ष बाद प्रदूषित वातावरण में अब बांग्लादेश के खिलाड़ियों को 3 नवंबर को भारत के विरुद्ध एक टी-20 मैच खेलना है।

स्थिति कितनी बिगड़ी हुई है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगता है कि बांग्लादेशी खिलाड़ी लिटन दास मास्क लगा कर अभ्यास कर रहे थे और बांग्लादेशी कोच रसेल डोमिंगो ने सिरदर्द, सांस लेने में दिक्कत एवं चक्कर आने की शिकायत की। ये भारत के लिए अच्छी बात नहीं है, और ऐसे में अब ये अत्यंत आवश्यक हो चुका है कि मोदी सरकार अपनी कमर कस लें और जनता के साथ मिलकर स्वच्छ भारत मिशन की भांति स्वच्छ हवा के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाये।

Exit mobile version