बीते कुछ महीनों में बांग्लादेश की तरफ से रोहिंग्याओं के खिलाफ कई एक्शन लिए गए हैं। बांग्लादेश ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा समझते हुए, कभी उन्हें किसी दूर टापू पर भेजने का फैसला लिया तो कभी उनके रहने वाले क्षेत्र के सिग्नल को जाम कर दिया। यही नहीं अब रोहिंग्याओं के बच्चों को बंगला सीखने पर भी रोक लगा दी गयी है। इसके बाद रोहिंग्या के कैंपों को कंटीले तारों से भी घेरे जाने का फैसला लिया गया है। अगर देखे तो बांगलादेश रोहिंग्याओं के साथ एक पिंग-पोंग बॉल की तरह व्यवहार कर रहा है।
दरअसल, विश्व का 8वां सबसे अधिक जनसंख्या वाला बांग्लादेश क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व के छोटे देशों में से एक है लेकिन इस देश का घनत्व 1115 प्रति स्क्वायर किलोमीटर है। इसका मतलब यह हुआ कि बांग्लादेश में औसत 1X1 किलोमीटर में 1115 से अधिक लोग रहते हैं। ऐसे में इस छोटे से देश में लगभग 7.5 लाख लोग किसी अन्य देश से एक अलग प्रकार की संस्कृति लेकर जबरदस्ती आकार रखने लगें तो फिर वहां के लोगों के लिए जीना दुश्वर हो जाएगा। यही बंगलादेश के साथ हो रहा है।
अगस्त 2017 के बाद से अभी तक लगभग 7.5 लाख से अधिक रोहिंग्या म्यांमार से विस्थापित हो कर बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं। कुछ ही दिनों में उनके असली चेहरे का पर्दाफाश हो गया और उनके आतंकी संगठनों से भी तार मिलने लगे। कुछ ही वर्षों में ये रोहिंग्या बांग्लादेश के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गए। परंतु बांग्लादेश की सरकार और वहां के लोगों ने इस समस्या को जल्द ही पहचान लिया और इसके लिए कारवाई शुरू हो चुकी है।
पहले तो बांग्लादेश सरकार ने इन रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने के लिए कई कदम उठाए लेकिन अंत मौके पर म्यांमार सरकार ही पलट जाती है। यही नहीं, रोहिंग्या भी वापस अपने देश नहीं जाना चाहते।
सितंबर में यह खबर आई थी कि कई संगठन हैं जो रोहिंग्याओं की मदद कर रहे थे और उन्हें वापस म्यांमार न जाने के लिए भड़का रहे थे। इसी वजह से बांग्लादेश की सरकार ने 41 गैर-सरकारी संगठनों को रोहिंग्याओं की मदद करने के लिए दोषी पाया था जिसके बाद इन सभी एनजीओ की गतिविधियों पर रोक लगा दी गयी थी।
इसके बाद तो बांग्लादेश ने रोहिंग्या शरणार्थियों से निपटने का सबसे अनोखा तरीका निकाला। वहाँ की सरकार ने 1 लाख रोहिंग्याओं को म्यांमार के पास स्थित एक टापू पर भेजने की तैयारी कर ली। बांग्लादेश सरकार के मुताबिक अभी जिस कॉक्स बाजार में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया गया है, वहां पर लगातार भीड़ बढ़ती जा रही है, और ऐसे में उन्हें भासान छार नाम के एक द्वीप पर बसाया जाएगा।
यहीं नहीं इसके बाद शेख हसीना सरकार ने यह निर्णय लिया है कि अब इन रोहिंग्या आप्रवासियों को बंगाली भाषा में शिक्षा नहीं दी जाएगी। अगर यह कदम नहीं लिया जाता तो यह बांग्लादेश के समाज के लिए ही खतरा साबित होता। पिछले दो साल में रोहिंग्या शरणार्थियों की ज़िंदगी में अगर कोई बदलाव आया है तो इतना कि वे अब बांग्लादेशियों की भाषा को सहजता से समझने लगे हैं। बांग्लादेशी सिर्फ रोहिंग्या बस्ती को लेकर ही नहीं, बल्कि शिविरों में कानून-व्यवस्था को लेकर भी चिंतित हैं। शिविरों के अंदर हत्याओं की संख्या बढ़ी है। रोहिंग्या लोगों द्वारा बांग्लादेशियों की हत्या के भी मामले सामने आ रहे हैं।
इसके बाद अब बांग्लादेश की सरकार ने रोहिंग्या शिविरों को कंटीले तारों से घेरने काम कर शुरू कर दिया। बांग्लादेश प्रशासन ने रविवार को कहा कि उसने देश के कोक्स बाजार जिले में स्थित रोहिंग्या शिविरों के निकट कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया है। गृहमंत्री असदुज्जमान खान ने 26 सितंबर को ढाका में संवाददाताओं से कहा कि शिविरों में कानून-व्यवस्था लागू करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री के निर्देश पर शिविरों के चारों तरफ वे बहुत जल्द कंटीले तार लगा देंगे।
इन कदमों से स्पष्ट दिख रहा है कि बांग्लादेश रोहिंग्यायों को काबू में करने के लिए एक के बाद ताबड़तोड़ कदम उठा रहा है। बंगलादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के अनुसार भी म्यांमार से अवैध रूप से भागकर आए 10 लाख रोहिंग्या पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। उन्होंने वैश्विक समुदाय से इस समस्या के समाधान के लिए अपील भी की थी। बांग्लादेश इन रोहिंग्या से छुटकारा पाना चाहता है और इसे हासिल करने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं हिचक रहा है। वैश्विक पटल पर बांग्लादेश आज आर्थिक मोर्चे पर कामयाबी की नई कहानी लिखता जा रहा है। बांग्लादेश बहुत तेज़ी से आर्थिक विकास करता जा रहा है। वर्ल्ड बैंक के सबसे नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक बांग्लादेश के इंडस्ट्री सेक्टर ने पिछले वर्ष लगभग 10 प्रतिशत की दर से विकास किया, जबकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने इस दौरान लगभग 7 प्रतिशत की रफ्तार से विकास किया है। इस रफ्तार को देखते हुए बांग्लादेश नहीं चाहता कई किसी भी प्रकार से उसका विकास रुके और इसके लिए जरूरी है कि रोहिंग्या को वापस उनके देश भेजा जाए।