‘रोहिंग्या शरणार्थी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं’ शेख हसीना का यह बयान लिबरलों के मुंह पर तमाचा है

रोहिंग्या

(PC: Anadolu Agency)

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाल ही में एक अहम बयान दिया है। उनके अनुसार म्यांमार से अवैध रूप से भागकर आए 10 लाख रोहिंग्या पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। उन्होंने वैश्विक समुदाय से इस समस्या के समाधान के लिए अपील भी की है। तीन दिवसीय ‘ढाका ग्लोबल डाइलॉग 2019’ में उन्होंने अपने भाषण में कहा“राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुसार मैं कहना चाहूंगी कि 11 लाख से ज़्यादा म्यांमार के रोहिंग्या नागरिक वहाँ हो रही कार्रवाई के चलते बांग्लादेश भाग आए थे और अब वे केवल बांग्लादेश ही नहीं, अपितु समस्त क्षेत्र के लिए एक खतरा बन चुके हैं”। बांग्लादेश के राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी बांग्लादेश सांगबद संस्था के अनुसार, “मैं वैश्विक समुदाय से निवेदन करूंगी कि वे इस खतरे की भयावहता को समझे और उचित कार्रवाई करे। किसी भी देश का विकास और समृद्धि बिना शांति और सुरक्षा के संभव है ही नहीं”।

बांग्लादेशी पीएम ने ये बात यूं ही नहीं कही है। रोहिंग्या समुदाय का आतंकी गुट, अक्का मूल मुजाहिदीन कथित तौर पर पाकिस्तान की आतंक समर्थक इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई और पाक में बसे आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा इत्यादि के साथ संबंध रखता है। रोचक बात तो यह है कि स्वयं हाफिज़ सईद ने रोहिंग्या समुदाय को भारत के विरुद्ध जिहाद में हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भेजा था, क्योंकि भारत ने रोहिंग्या की समस्या में म्यांमार के पक्ष का समर्थन किया था।

लश्कर-ए-तैयबा अब रोहिंग्याओं की भर्ती कर रहा है ताकि उन्हें म्यांमार के बौद्धों से अपना कथित प्रतिशोध लेने में मदद मिल सके। रोहिंग्या मुसलमानों को पहले भी इस्लामी चरमपंथियों द्वारा रिक्रूट किया गया है। उदाहरण के लिए इस्लामिक स्टेट (आईएस) इराक और सीरिया में अपने अभियानों के लिए लड़ने हेतु कुछ रोहिंग्याओं को भर्ती करने में सफल रहा है। इसके अलावा, अल कायदा ने भारतीय उपमहाद्वीप में रोहिंग्याओं का भी समर्थन किया है। इसलिए, रोहिंग्या मुसलमान प्रमुख इस्लामी आतंकवादी संगठनों के केंद्र में बने हुए हैं। बांग्लादेश और भारतीय सुरक्षा कर्मी दोनों इसलिए कट्टरपंथी रोहिंग्या मुसलमानों की उपस्थिति को इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखते हैं।

भारत बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करता है, जिसमें रोहिंग्याओं के लिए भारत में घुसपैठ करना सरल होता है। बांग्लादेश में लगभग 11 लाख रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे हैं, जिससे वर्तमान स्थिति भारत और समूचे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए काफी चिंताजनक बन जाता है। अभी अनुमानों के अनुसार 40000 रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं, और स्थिति न सुधारने पर अप्रत्याशित रूप से बढ़ भी सकती है।

रोहिंग्याओं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिस तरह खतरा बन रहे  है, वह मात्र आशंकाओं पर आधारित नहीं है। रोहिंग्या भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए हानिकारक कैसे हो सकते हैं, इसके ठोस प्रमाण भी उपलब्ध हैं। पिछले वर्ष, रोहिंग्याओं के एक आतंकवादी समूह ने भारत-म्यांमार सीमा पर असम राइफल्स के एक गश्ती दल पर हमला किया था। वन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, रोहिंग्या आतंकवादी समूह ने असम राइफल्स की एक टीम को पीछे ढकेलने के लिए गोलाबारी की थी ताकि सीमा के भारतीय हिस्से पर आतंकी शिविर स्थापित किए जा सकें। एक और चौंकाने वाली घटना में, पिछले वर्ष दिल्ली के पास जमात-उल-मुजाहिदीन से जुड़े दो गुर्गों को गिरफ्तार किया गया था। वे दिल्ली में एक बड़े हमले को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। वन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, वे दिल्ली में रोहिंग्या मुसलमानों से मिलकर एक मॉड्यूल को सक्रिय करने की कोशिश कर रहे थे।

इंटेलिजेंस ब्यूरो का भी मानना ​​है कि म्यांमार के राखीन प्रांत में सक्रिय रोहिंग्या आतंकी समूह अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA) की मदद से भारत में मॉड्यूल स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आई.एस.आई. ने रोहिंग्याओं को उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ-साथ दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे हाई-प्रोफाइल शहरों को टार्गेट करने के लिए निर्देशित किया है। लश्कर-ए-तैयबा, जेएमबी, सिमी और आईएसआई सभी मिलकर भारत के खिलाफ बड़े आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए काम कर रहे हैं और इसी उद्देश्य के लिए वे सभी रोहिंग्याओं के लगातार संपर्क में बने हुए हैं।

इसलिए  यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अवैध रोहिंग्या अप्रवासियों का निष्कासन मोदी सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। हालाँकि, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दल वोट बैंक की राजनीति के कारण रोहिंग्याओं के समर्थन में बार-बार खड़े होते रहे हैं। वे भाजपा पर सांप्रदायिक आधार पर रोहिंग्या शरणार्थियों को निष्कासित करने का आरोप लगाते रहे हैं।

उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी रोहिंग्या शरणार्थियों के बचाव के अपने दृष्टिकोण में अडिग हैं और अतीत में मोदी सरकार पर निर्वासन के नाम पर रोहिंग्या मुसलमानों का उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। पिछले साल जम्मू के सुंजवान आर्मी कैंप पर रोहिंग्याओं पर आतंकी हमले की सुविधा देने के आरोप लगे थे। भाजपा ने इसलिए जम्मू से रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित करने की मांग की थी। पीडीपी ने तब भाजपा पर जम्मू में रोहिंग्याओं के सांप्रदायिकरण का आरोप लगाया था। कांग्रेस भी रोहिंग्याओं को भारत में रहने की अनुमति देने पर जोर दे रही है।

हालाँकि, उनके बेतुके तर्क को ध्वस्त करते हुए बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने बताया है कि कैसे रोहिंग्या मुसलमान इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। भारत में विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं कि सत्तारूढ़ दल इस मामले का सांप्रदायिकरण कर रहा है, जब वास्तव में, एक पड़ोसी मुस्लिम देश भी रोहिंग्या मुसलमानों को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखता है।

रोहिंग्याओं का निष्कासन किसी भी स्थिति में बिल्कुल भी सांप्रदायिक या धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से भारत की आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आधारित है। रोहिंग्याओं को इस्लामिक चरमपंथियों और आतंकी संगठनों ने कट्टरपंथी बना दिया है। इसके अलावा, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई, जेएम और लश्कर जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ रोहिंग्याओं को भारत के विरुद्ध अपनी जंग के एक उपयोगी अस्त्र के तौर पर देखते हैं। ऐसे में भारत अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को भारत के भीतर किसी भी स्थिति में नहीं स्वीकार कर सकता, और उन्हें किसी भी कीमत पर तुरंत निष्कासित किया जाना चाहिए।

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