शरद पवार। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा क्षत्रप शरद पवार एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने पचास साल से लगातार राजनीति में अपनी अहमियत और महत्व को बरकरार रखा है। शरद पवार की राजनीति की विशेषता शुरुआती दौर से ही सूझ-बूझ से भरी रही है। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार काफी बड़ी शख्सियत हैं। शरद पवार अपने विरोधियों की चाल पहले ही समझ जाते है और फिर अपनी चाल चल देते है। लेकिन इस बार वह चारों खाने चित हो गए। अमित शाह ने अपनी चाणक्य राजनीति से शरद पवार की पार्टी और परिवार दोनों को ही अपने पक्ष में कर लिया है।
बता दें कि चाहे शरद पवार सत्ता में हों या फिर उससे बाहर लेकिन पवार की पवार पॉलिटिक्स हर पार्टी समझती है। लेकिन अभी तक उनके जीवन में दो ही ऐसे मौके आये हैं जब किसी ने राजनीति के खेल में उन्हें पस्त किया हो। पहली बार 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री के रेस में उन्हें पछाड़ा था और इस बार अमित शाह ने।
पहली बार वर्ष 1991 में राजीव गांधी की आकस्मिक मौत के बाद जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई तब उसमें सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव खुद शरद पवार ने उनके कहने पर किया था। जाहिर है राजीव की जगह जो कांग्रेस अध्यक्ष बनता वही नतीजे आने के बाद सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनता। लेकिन सोनिया गांधी ने जब यह जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया तब नरसिम्हा राव को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन इस रेस में सिर्फ नरसिम्हा राव ही नहीं थे। शरद पवार का नाम भी उन तीन लोगों में आने लगा जिन्हें कांग्रेस के अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था। इन तीन नामों में अर्जुन सिंह, पी वी नरसिम्हा राव और शरद पवार शामिल थे। पवार जो उस समय लोकसभा सदस्य भी नहीं थे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, इसलिय वे बड़ी तेजी से संसदीय दल के नेता बनने की मुहिम में जुट गए। चूंकि यह तय था कि कांग्रेस संसदीय दल का नेता ही प्रधानमंत्री बनेगा, कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी की गणित में नरसिम्हा राव सभी को पछाड़ते हुए और गांधी परिवार के करीबी रहने के कारण कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुने गए। शरद पवार को ऐसा लगा ही नहीं था कि नरसिम्हा राव उनके लिए चुनौती बन जाएंगे और उस पद के लिए चुने जायेंगे जिसकी चाहत अर्जुन सिंह के साथ शरद पवार को भी थी।
शरद पवार कांग्रेस के चुने गए 235 सांसदों को अपनी तरफ करने के दौरान अपना ध्यान अन्य उम्मीदवार अर्जुन सिंह और माधव राव पर ही केन्द्रित रखा था। लेकीन चुने गए सांसदों को यह पता था कि पवार गांधी परिवार के करीबी नहीं थे और अपनी एक अलग राजनीति करते थे। इसी बात का फायदा नरसिम्हा राव को मिला और सांसदों ने बागी शरद पवार के स्थान पर नरसिम्हा राव को चुना। यहीं पवार नरसिम्हा राव को कम आंक कर गलती कर बैठे और नरसिम्हा राव ने उन्हें चारों खाने चित कर दिया था। हालांकि, शरद पवार ने यह अपनी किताब ‘लाइफ ऑन माई टर्म्स – फ्रॉम ग्रासरुट्स एंड कोरीडोर्स ऑफ पावर’ में यह दावा किया था कि गांधी परिवार के वफादारों में शामिल दिवंगत अर्जुन सिंह खुद भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे और उन्होंने पवार की बजाय राव को चुनने का निर्णय लेने में सोनिया गांधी को राजी करने की ‘‘चालाकीपूर्ण चाल चली’ थी।
नरसिम्हा भी कम मंजे हुए राजनेता नहीं थे। पार्टी का अध्यक्ष पद तो पहले ही उनके पास आ चुका था। उसी पद के प्रभाव के चलते वे दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि उत्तर भारत तथा पवार और अर्जुन सिंह के गृह राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को अपने पीछे खड़ा करने में सफल रहे थे।
अब फिर से एक बार शरद पवार को गृह मंत्री अमित शाह ने स्तब्ध कर उन्हें उन्हीं के घर में मात दी है। अमित शाह ने यहां अजीत पवार को लेकर अपना सबसे बड़ा दांव खेला। एक तरफ जहां अजीत पवार और उनके चाचा यानि शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का जुगाड़ कर रहे थे, तो अमित शाह ने चुपके से अजीत पवार को डिप्टी सीएम के पद का ऑफर देकर NCP के एक बड़े धड़े को अपने साथ कर लिया। यह बात अजीत पवार को भी पता है कि उनका फायदा उसी एनसीपी का नेतृत्व करने में होगा, जहां वे बड़ी भूमिका में होंगे। अमित शाह ने उनको यह अवसर दिया और उन्हें उनकी अपनी पार्टी में बड़ी भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया। अजीत पवार ने भी बिना समय गवाएँ भाजपा का समर्थन करना इसलिए मुनासिब समझा क्योंकि अगर शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर एनसीपी सरकार बनाती, तो अजीत पवार को वह बड़ी भूमिका मिल ही नहीं पाती।
इससे यह कह सकते है कि यह शरद पवार की बड़ी राजनीतिक हार है, जहां उनके भतीजे की आकांक्षा ने उन्हें फिर से राजनीति में हरा दिया है। तो वहीं, अमित शाह ने बेहतरीन चाल चलते हुए एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि आज के दौर में वही सबसे बड़े ग्रैंडमास्टर हैं।