शिवसेना केवल कुर्सी नहीं हारी बल्कि सत्ता, प्रतिष्ठा और विचारधारा की लड़ाई भी हार गयी है

शिवसेना

महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले 10 घंटों में वह सब कुछ हो चुका है, जो कल रात तक किसी ने सोचा तक नहीं था। देवेन्द्र फडणवीस राज्य के सीएम पद की शपथ ले चुके हैं और अजीत पवार राज्य के डिप्टी सीएम का पदभार संभाल चुके हैं। उधर पिछले दो हफ्तों से सीएम पद को लेकर छाती ठोक रही शिवसेना के पाले में अगर कुछ आया है, तो वह है सिर्फ मात और बड़ा सबक। शिवसेना ने पिछले 20 दिनों में अपने मराठा गौरव और हिंदुओं की शान को परे रखकर सिर्फ अपने सत्ता मोह का प्रदर्शन किया, और कुर्सी के लालच में उद्धव ठाकरे शिवसेना पार्टी के मूल सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाने से पीछे नहीं हटे। ऐसा लग रहा था कि अब उनके लिए केवल सत्ता पाना ही मात्र मकसद रह गया है और उसके लिए वे NCP और कांग्रेस की किसी भी शर्त को मानने को तैयार हो गए थे। शिवसेना ने पिछले कुछ दिनों में अपनी सत्ता की भूख में वह सब कुछ किया, जिसकी कभी शिवसैनिकों ने भी कल्पना नहीं की होगी। महाराष्ट्र में चल रहे इस ड्रामे के नतीजे में शिवसेना को तो कुछ हासिल नहीं हुआ है लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर शिवसेना के वोटर्स तक, सबने शिवसेना के उस चेहरे को बखूबी देख लिया है जिससे ठाकरे परिवार की सत्ता की भूख सबके सामने एक्सपोज हो गई है।

जो पार्टी कभी हिंदुओं के अधिकारों और मराठाओं की शान की बात करते नहीं थकती थी, उसने अचानक से शिव नाम से भी दूरी बना ली, और वह पार्टी अचानक से मुस्लिमों को शिक्षा में 5 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कहने लगी। सत्ता-मोह के लालच में शिव सेना ने वह सब कुछ किया जिसकी बाला साहेब के समय वाली हिन्दू-वादी शिवसेना पार्टी से उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। कांग्रेस और एनसीपी ने शिव सेना को कथित तौर पर सलाह दी थी कि वे इस खिचड़ी गठबंधन का नाम महाशिव आघाड़ी से बदलकर महाविकास अगाड़ी यानि प्रोग्रेसिव अलायंस रखें, और शिवसेना ने उसे मान भी लिया था। शिव सेना ने बड़े चाव से धर्मनिरपेक्षता का चौला औढ लिया। संजय राउत ने अपने हाल के बयान में कहा था कि भारत का आधार ही धर्मनिरपेक्षता है। उनके शब्दों में “देश और उसकी बुनियाद धर्मनिरपेक्ष शब्द पर टिके हैं। आप किसानों, बेरोजगारों या भूखों से उनका धर्म या उनकी जाति नहीं पूछ सकते.. देश में सभी लोग धर्मनिरपेक्ष हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमेशा हर धर्म एवं जाति के लोगों को साथ रखा और शिवसेना के दिवंगत संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने सबसे पहले कोर्ट के सामने शपथ लेने के लिए धार्मिक ग्रंथों के स्थान पर भारतीय संविधान को रखने का विचार पेश किया था”। बता दें कि एनसीपी और कांग्रेस ने “कॉमन मिनिमम प्रोग्राम” के तहत भी शिव सेना को सेक्युलर रहने की बात कही थी, और शिवसेना इन सभी शर्तों को मानने पर राज़ी भी हो गयी थी।

उद्धव ठाकरे ने अति-उत्साहित होकर और संजय राऊत की बातों में आकर ऐसे-ऐसे आत्मघाती कदम उठाए जिसके बाद अब इस पार्टी का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है। शिव सेना ने केंद्र सरकार से अपना पद गंवा दिया, BMC में उसकी कुर्सी जाना तय है, और जो भाजपा के साथ रहके उसे डिप्टी सीएम का पद मिलता, वह भी अब अजीत पवार का पाले में जा चुका है। यानि शिवसेना का सत्ता की भूख वाला असल चेहरा भी सबके सामने आ गया और शिवसेना के हाथ में भी कुछ नहीं आया। अब यह शिवसेना कभी भविष्य में हिन्दुत्व की बात नहीं कर पाएगी और न ही वह NCP और कांग्रेस की खुले तौर पर आलोचना कर पाएगी क्योंकि इन्हीं पार्टियों के साथ जाकर वह सरकार बनाने वाली थी। कुल मिलाकर शिव सेना ने एक ही झटके में अपनी विचारधारा का गला भी घोंट दिया और उसे इसके बदले सत्ता का सुख भी नहीं मिल पाया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में महाराष्ट्र की राजनीति में शिव सेना किस एजेंडे के साथ आगे बढ़ती है और उसे लोग अपना समर्थन देते हैं या नहीं।

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