शिवसेना की बड़ी गलती: पहली बार बलि प्रथा के इतिहास में मेमना अपने आप को कसाई को सौंप रहा है

सत्ता का मोह, कुर्सी का लालच, पुत्र लोलुपता और कपटी सलाहकार। यह सभी द्वापर युग में हुए अभी तक के सबसे भीषण युद्ध महाभारत के कारण थे। कलियुग में यही रोज देखने को मिलता है। महाराष्ट्र के चुनाव के बाद इसी सत्ता के मोह, कुर्सी का लालच, पुत्र लोलुपता और कपटी सलाहकार ने शिवसेना को अब उसके निचले स्तर के राजनीति पर ला खड़ा किया है और वह अपने रोज़ नए-नए ड्रामे से अपने लिए खुदे गड्ढे की गहराई को बढ़ाते ही जा रही हैं। चुनाव के बाद जो सत्ता शिवसेना का बाहें फैलाये इंतज़ार कर रही थी उसे मुख्यमंत्री पद की खातिर ठोकर मार उद्धव ठाकरे कांग्रेस-एनसीपी के चारे के लालच में फँसते चले गए।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते।

ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि।।

इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की ओर भागता है उसके हाथों से दोनों ही वस्तुएं निकल जाती है।

शिवसेना के साथ भी यही हो रहा है। भाजपा के साथ चुनाव के पहले गठबंधन में यह स्पष्ट था कि शिवसेना को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी लेकिन उद्धव ठाकरे अपने पुत्र अदित्य ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री पद चाहते थे जो किसी भी तरफ से अनिश्चित ही था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद सब कुछ बदल गया और उद्धव ठाकरे अनिश्चित सीएम कुर्सी की तरफ कदम बढ़ा, वैचारिक रूप से धूर-विरोधी एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर सीएम कुर्सी के सपने देखने लगे। शरद पवार और सोनिया गांधी ने राजनीतिक परिदृश्य को समझते हुए शिवसेना के इस स्थिति का फायदा उठाकर उसे ही गड्ढे में धकेल दिया है।

शिवसेना और बीजेपी की सरकार बनती तो ये निश्चित था कि इस पार्टी के एक बड़े नेता को उप मुख्यमंत्री का पद मिलता और बीएमसी भी इसके हाथ में बनी रहती। परन्तु कहते है न जब विनाश आता है तो पहले विवेक नष्ट हो जाता है, और जब सलाहकार संजय राऊत जैसा शकुनी हो तो विनाश दरवाजे पर आ धमकती है। शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इस पार्टी को ऐसा सपना दिखाया कि इस पार्टी ने दशकों पुराने गठबंधन को तोड़ दिया। जबकी टाइम्स को दिये एक इंटरव्यू में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह स्पष्ट किया था कि सीटों पर शेयरिंग की बात हुई थी, सीएम पद के लिए नहीं। लेकिन शिवसेना ने सीट शेयरिंग को CM शेयरिंग का नाम दे दिया।

यहीं नहीं शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने सोमवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार से इस्तीफा दे दिया और भाजपा पर सत्ता में हिस्सेदारी के तय फार्मूले से मुकरने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा था कि इसमें मुख्यमंत्री पद सहित सीटों के 50-50 के अनुपात में बंटवारे का फार्मूला तय हुआ था, लेकिन बीजेपी अब इससे इनकार कर रही है।

अपने इस कदम पर हुंकार भरते हुए बड़े ताव से शिवसेना के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता संजय राउत ने कहा था कि, ‘अगर रास्ते की परवाह की तो मंजिल बुरा मान जाएगी’, लेकिन यहाँ ऐसा लग रहा कि शिवसेना और चाह के लालच ने सबकुछ बिगाड़ दिया है। इंटरनेट की जनता और देश भर से शिवसेना के इस रुख के कारण माहौल उनके खिलाफ ही बनता जा रहा है।

शिवसेना की कुर्सी की लालसा ने उसे ऐसे जाल में फंसाया कि वो अब न घर की रही न घाट की। अब मुख्यमंत्री पद तो गया ही साथ में रही सही इज्ज़त और जनता के बीच एक प्रखर और अपनी विचारधारा से कभी समझौता न करने वाली पार्टी के रूप से अब शिवसेना बाकी पार्टियों जैसी हो कर रह गयी है। शिवसेना ने इस आत्मघाती कदम के जरिये न केवल भाजपा का विश्वास तोड़ा बल्कि राज्य की जनता का भी विश्वास हार गयी है। क्योंकि शिवसेना जिन दोनों पार्टियों को रावण का दर्जा देती थी आज वो उन्हीं के साथ हो गयी है।

जनता और अपनी सहयोगी पार्टी को इस तरह से धोखा देने का नकारात्मक असर शिवसेना को आने वाले चुनावों में तो देखने को मिलेगा ही लेकिन सबसे बड़ा घाटा बीएमसी के चुनावों में होगा जहां से शिवसेना की आधारशिला है। अगर वह BMC चुनावों में कमजोर हुई तो वह राजनीतिक पार्टी कहलाने लायक भी नहीं बचेगी। जनता सब कुछ देख रही है और अपना फैसला वह चुनाव में ही सुनाती है।

महाराष्ट्र और मराठी अस्मिता को लेकर चलने वाली शिवसेना अब वंशवाद और कुर्सी लोभ में इस तरह से फंस गयी है कि इसका अंत निकट दिखाई दे रहा है। आग कहीं जले न जले लेकिन पार्टी में ऐसी आग लगती हुई दिखाई दे रही है जो अब इसके अस्तित्व पर ही खतरे की तरह मंडरा रही है।

 

सत्ता के मोह, कुर्सी का लालच, उद्धव ठाकरे का पुत्र लोलुपता और संजय राऊत जैसे कपटी सलाहकार ने शिवसेना का बेड़ा गर्क कर दिया। चुनाव के बाद जिस पार्टी को लोकप्रियता कम होने के बावजूद उपमुख्यमंत्री का पद मिल रहा था उसने मुख्यमंत्री पद के लालच में आकर विरोधी पार्टियों से हाथ मिलाया लेकिन वहाँ भी NCP और कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाकर शिवसेना के सामने शर्त रख दिया तथा शिवसेना को यहाँ भी कुछ हाथ नहीं लगा। अब भविष्य में अगर शिवसेना भाजपा के साथ जाती है या नहीं ये तो बाद की बात है परन्तु पिछले कुछ दिनों जो नुकसान इस पार्टी को हुआ है उसकी भरपाई आने वाले समय में काफी महंगी साबित होने वाली है। उद्धव ठाकरे ने पुत्र मोह में निश्चित उपमुख्यमंत्री पद को ठोकर मार अनिश्चित मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना जैसी हिन्दूवादी पार्टी को ही दांव पर लगा दिया है। कुल मिलाकर शिवसेना ऐसे गड्ढे में गिरी है जहाँ से निकलना बहुत मुश्किल साबित होने वाला है।

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