चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने के बाद आज बुधवार को एक और बड़ा फैसला सुनाया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि अब भारतीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच में जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एनवी रामन्ना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना थे। इसी वर्ष चार अप्रैल को संवैधानिक पीठ ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
Supreme Court holds that office of Chief Justice of India is public authority under the purview of the transparency law, Right to Information Act (RTI). pic.twitter.com/97pyExixuQ
— ANI (@ANI) November 13, 2019
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पहले कहा था कि पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं करता। बता दें कि इस पूरे मामले की सुनवाई तब हुई थी जब नवंबर 2007 में आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी मांगी थी, जो उन्हें देने से मना कर दिया गया था। आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल इसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के पास पहुंचे थे जिसके बाद सीआईसी ने सुप्रीम कोर्ट से इस आधार पर सूचना देने को कहा कि सीजेआई का दफ्तर भी कानून के अंतर्गत आता है। परन्तु जनवरी 2009 में सीआईसी के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने सीजेआई के आदेश को कायम रखा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने तब अपने फैसले में सीजेआई के पद को आरटीआई कानून की धारा 2(एच) के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ करार दिया था और इसे सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत लाने की बात कही थी।’
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 में आए फैसले को चुनौती दी थी। इसी वर्ष अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस मामल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब जाकर रिटायर होने से पहले उन्होंने एक और अहम फैसला सुनाया है।