जेेएनयू में वामपंथियों ने स्वामी विवेकानंद की मूर्ति तोड़ी, BJP के लिए अपशब्द भी लिखे

शर्मनाक! ये कैसा विरोध है?

जेएनयू

हमेशा विवादों में रहने वाली देश की चर्चित यूनिवर्सिटी JNU में वामपंथी उपद्रवियों ने उद्घाटन से पहले ही स्वामी विवेकानंद की मूर्ति तोड़ दी है। इतना ही नहीं, वामपंथी उपद्रियों ने मूर्ति के नीचे सत्ताधारी पार्टी भाजपा के लिए अपशब्द भी लिखा है। गौरतलब है कि जेएनयू में फीस की बढ़ोतरी समेत कई मांगों को लेकर छात्र-छात्राएं पिछले दिनों से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

मूर्ति तोड़ने को लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने आरोपियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। सिन्हा ने कहा है कि ‘जेएनयू में देशविरोधी विचारधारा को बढ़ावा मिल रहा है। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों की पहचान कर इन्हें तुरंत परिसर से बाहर किया जाना चाहिए।‘

इससे पहले जेएनयू प्रशासन द्वारा हॉस्टल फीस एवं विश्वविद्यालय की अन्य सुविधाओं के मूल्य में बढ़ोतरी के विरोध में जेएनयू के वामपंथी छात्रों ने कैम्पस में हुड़दंग मचाया था। इन छात्रों के उग्र प्रदर्शन के कारण हाल ही में सम्पन्न विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में काफी अड़चनें आई थीं।

छात्रों के प्रदर्शन के बाद कॉलेज प्रशासन ने फीस बढ़ोतरी के फैसले को कुछ शर्तों के अनुसार वापस ले लिया है। HRD मिनिस्ट्री ने इस पर निर्णय लेते हुए हॉस्टल फीस की बढ़ोत्तरी वाले फैसले में व्यापक बदलाव किया है। मंत्रालय के एक अधिकारी आर सुब्रमण्यम ने अपने ट्विटर हैंडल से फीस कम करने की जानकारी दे दी है। उन्होंने लिखा कि कार्यपालिका कमेटी ने हॉस्टल फीस बढ़ाने के फैसले को वापस ले लिया है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए एक नई स्कीम शुरू करने की योजना बना रही है।

वैसे ये पहली बार नहीं है जब जेएनयू के छात्रों ने इस तरह की हरकत को अंजाम दिया है। अभी हाल ही में जब केंद्र सरकार ने अगस्त महीने अनुच्छेद 370 को हटाया था तब भी जेएनयू के छात्रों ने उत्पात मचाया था। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का व्याख्यान कार्यक्रम के दौरान ये हंगामा देखने को मिला था।

यही नहीं बीते वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्रों की भीड़ ने वाइस चांसलर जगदीश कुमार के आवास का घेराव किया था। यही नहीं उनके घर में तोड़-फोड़ करने के साथ ही उनकी पत्नी को भी बंधक बना लिया था।

इस तरह का हंगामा खड़ा करना अब जेएनयू में आम बात बन चुकी हैं। राष्ट्र विरोधी नारों से लेकर ड्रग्स, ट्रैफ़िकिंग इत्यादि, घंटों तक उप कुलपति एवं शिक्षकों को बंधक बनाना, ये अब जेएनयू की वर्तमान दिनचर्या बन गयी है। अब सवाल ये उठता है कि जेएनयू के वामपंथी छात्र आखिर किस कारण एक शीर्ष केंद्रीय विश्वविद्यालय से भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं और उसे अपने भारत विरोधी राजनीति का जरिया बनाते हैं? कहां से इन वामपंथी छात्रों को बल मिलता है? आखिर क्यों ये वामपंथी छात्र 8-10 सालों तक रूककर अपना समय बर्बाद करते हैं, पढ़ाई से इतर ये लोग वामपंथ की राजनीति और देश विरोध में क्यों अंधे हो जाते हैं?

वास्तव में जब शिक्षा का मूल्य ही छात्र न समझ पाए तो वह दिशा से भटक जाता है। ठीक ऐसा ही आज जेएनयू के वामपंथी विद्यार्थियों के साथ हो रहा है। वे कम फीस देते हैं और इसका उन्हें कोई मोह नहीं होता। इसी वजह से वे अपने मुख्य ध्येय से भटककर भारत विरोधी अभियानों में लग जाते हैं। अगर उनसे सरकार ज्यादा फीस वसूलती तो यही छात्र उसका मूल्य समझते और अपना कीमती समय अपने पढ़ाई पर, अपने मां-बाप के सपनों पर खर्च करते न की 10 सालों तक रूककर भारत विरोधी अभियान चलाते।

इन सभी बातों पर गौर करें तो यही सिद्ध होता है कि यहां कई सालों तक रूकने और भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने की ताकत इन्हें कम फीस की वजह से ही मिलती है। ऐसे में सरकार को अपने फीस बढ़ाने के फैसले में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए था। इसके साथ ही किसी भी तरह का उपद्रव मचाये जाने पर इनके खिलाफ सख्त एक्शन लेना चाहिए और अर्धसैनिक बलों को कैंपस में तैनात करना चाहिए।

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