ममता दीदी को खुश करने के लिए डेरेक ओ ब्रायन ने कॉमन सेन्स की धज्जियां उड़ा दी!

डेरेक ओ ब्रायन

PC: Hindustan Times

लिबरल ब्रिगेड की आँखों के तारे और ममता के चहेते माने जाने वाले पूर्व क्विज़मास्टर डेरेक ओ ब्रायन पिछले कुछ महीनों से पब्लिक एक्शन से दूर चल रहे थे। परंतु उन्होंने अभी हाल ही में ट्विटर पर वापसी की, वो भी एक ऐसी पोस्ट के साथ, जिसमें इकोनॉमिक्स तो छोड़िए, कॉमन सेन्स को भी नहीं बख्शा।

अपने ट्वीट में उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार के स्वास्थ्य पर खर्चे की तुलना की, जिसमें उन्होंने जताने की कोशिश कि बंगाल सरकार के मुक़ाबले केंद्र सरकार स्वास्थ्य पर काफी कम खर्चा करती थी। परंतु यदि किन्हीं दो पक्षों की तुलना डेटा के आधार पर की जाती है, तो आंकलन सही मायनों में होना चाहिए। परंतु यहाँ तो ‘बजट के व्यय’ की तुलना डेरेक ओ ब्रायन ने भारत के कुल जीडीपी से ही कर दी है।

डेरेक के मूल ट्वीट का संदेश यह है कि केंद्र सरकार अपने जीडीपी का केवल 1.28 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करती है, जबकि बंगाल सरकार अपने बजट का 4.01 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करती है। अब कोई डेरेक ओ ब्रायन को यह समझाएगा कि राज्य या केंद्र सरकार का बजट आधारित खर्चा जीडीपी का 10 से 20 प्रतिशत होता है। उदाहरण के लिए अगर भारत का बजट आधारित खर्चा देखें, तो भारत के 190 लाख करोड़ के जीडीपी के मुक़ाबले उसका बजट का खर्चा केवल 24 लाख 42 हज़ार 213 करोड़ रुपये हैं।

तो वास्तविकता क्या है? 2018-19 के वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर 54600 करोड़ रुपये खर्च किए थे। ये मोदी सरकार के बजट के खर्चे का 2.31 प्रतिशत है, और भारत के जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम है। जबकि पश्चिम बंगाल की सरकार ने 8770 करोड़ रुपये ही स्वास्थ्य पर खर्च किए थे। ये राज्य के कुल बजट आधारित खर्चे [214959 करोड़ रुपये] का मात्र 4 प्रतिशत है और राज्य के कुल जीडीपी का मात्र 0.85 प्रतिशत है।

वैसे भी स्वास्थ्य संविधान के राजकीय लिस्ट में है और केंद्र के स्वास्थ्य संबंधी स्कीम भी राज्य की सहमति से ही लागू होते हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के एक लेख के अनुसार इस वर्ष 15वें वित्तीय कमिशन द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय कमेटी ने सुझाव दिया था कि स्वास्थ्य को भी मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाये, और स्वास्थ्य के विषय को राजकीय लिस्ट से हटकर समान यानि कॉन्करेंट लिस्ट में रखा जाये।

अब लोगों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना केंद्र से ज़्यादा राज्य सरकार की भी ज़िम्मेदारी होती है। यदि राज्य सरकार मना करे, तो केंद्र सरकार चाहकर भी अपने स्कीम लागू नहीं कर पाती है, जिसका एक ज्वलंत उदाहरण दिल्ली में भी देखने को मिल रहा है, जहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अड़ियल स्वभाव के कारण पूरे शहर और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के साथ साथ यूपी, हरियाणा एवं पंजाब के कई क्षेत्रों को वायु प्रदूषण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं, दिल्ली ने तेलंगाना की तरह मोदी सरकार के आयुष्मान भारत योजना को भी लागू करने से मना कर दिया।

इसके बाद भी मोदी सरकार के अंतर्गत स्वास्थ्य पर केंद्र का ध्यान पहले से अधिक केन्द्रित है। पिछले ही वर्ष स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार ने खर्चा 15.2 प्रतिशत तक बढ़ाते हुए 64559 करोड़ रुपये रखे हैं। आयुष्मान भारत योजना विश्व की सबसे बड़ी परिवार स्वास्थ्य कल्याण योजना है, जिसके अंतर्गत देश के 50 करोड़ लोगों को लाभ मिल रहा है।

PRS

वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल का स्वास्थ्य पर खर्चा बाकी राज्यों के कुल खर्चे के औसत से भी कम है। पर ममता बनर्जी की जी हुज़ूरी करना ही डेरेक ओ ब्रायन के लिए सर्वोपरि है, व्यावहारिक ज्ञान जाए तेल लेने। इससे पहले भी उन्होंने कई अवसरों पर ममता सरकार की जी हुज़ूरी करते हुए फेक न्यूज़ पर फेक न्यूज़ अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से शेयर किया है। जिस प्रकार की चाटुकारिता डेरेक ममता सरकार के लिए दिखाते हैं, उसका मुक़ाबला तो एक स्तर के बाद स्वयं राहुल गांधी के अनुयायी भी न कर पायें।

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