24 नवंबर को अयोध्या नहीं जाएंगे उद्धव ठाकरे, क्योंकि सोनिया मैडम के साथ दिल्ली में मीटिंग है

अगर अयोध्या जाएंगे तो मैडम नाराज हो सकती हैं!

उद्धव ठाकरे, शिवसेना

हिंदुत्व और मराठा गौरव के बल पर राजनीति में पहचान बनाने वाली शिवसेना अब अपने विचारों के विमुख होती दिख रही है। दरअसल, उद्धव ने फैसला किया है कि वे 24 नवंबर को अयोध्या का दौरा नहीं करेंगे। यह जानकारी शिवसेना के एक नेता के हवाले से आ रही है। एक नेता का कहना है कि ये यात्रा सुरक्षा कारणों से रद्द की गई है। वहीं एक और शिवसेना के नेता ने कहा है कि सरकार बनाने को लेकर हमारी पार्टी, कांग्रेस और एनसीपी के साथ बैठक करने वाली है इसीलिए उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया है। नेताओं के बयान कुछ भी हों लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसकी वजह कुछ और ही बताई जा रही है।

बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बीच दिल्ली में गठबंधन सरकार बनाने को लेकर बैठक होने वाली है और उद्धव नहीं चाहते कि कांग्रेस और एनसीपी में इस दौरे को लेकर कोई गतिरोध पैदा हो। कांग्रेस पार्टी पहले से ही असमंजस की स्थिति में है।

बता दें कि रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीते 9 नवंबर उद्धव ठाकरे ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की तारीफ करते हुए कहा था कि वो 24 नवंबर को अयोध्या जाएंगे। लेकिन उन्होंने अपना दौरा टालकर सियासी गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है। कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे अब वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने पर भी नरम पड़ गए हैं।

गौरतलब है कि बीजेपी बगावत करने के बाद शिवसेना ने अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस की तरफ हाथ बढ़ाया। जिस पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने तो सहमति जता दी है लेकिन कांग्रेस अभी भी असमंजस की स्थिति से नहीं निकल पा रही है। बताया जा रहा है कि इसका एकमात्र कारण शिवसेना की हिंदुत्ववादी छवि है। कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने पहले ही पार्टी को सतर्क कर दिया था कि शिवसेना से गठबंधन करना खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। इसके साथ ही केरल कांग्रेस ने भी शिवसेना के साथ गठबंधन पर असहमति जताई है।

हमेशा से अयोध्या में जन्मभूमि स्थल पर जल्द से जल्द एक भव्य राम मंदिर बनाने के प्रबल समर्थकों में से एक रही शिवसेना आज सत्ता लोभ के लिए एक ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन करने जा रही है जिसके नेता न केवल बाबरी मस्जिद पक्ष वालों का प्रतिनिधित्व किया था, बल्कि कोशिश भी की थी अयोध्या विवाद में ज़्यादा से ज़्यादा विलंब हो। पिछले साल नवंबर के महीने में ही, शिवसेना सुप्रीमो, उद्धव ठाकरे ने राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा पर कटाक्ष किया था, और उन्होंने कहा था, “हर हिंदू भगवान राम की जन्मभूमि पर राम मंदिर चाहता है। मैं कुंभकर्ण को जगाने के लिए आया हूं, जो छह महीने तक सोता था। हिंदुत्व का अर्थ है अपने शब्दों को रखना।” उन्होंने यह भी कहा था, “वे केवल ‘मंदिर वही बनाएँगे’ कहते हैं, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे“ और कहा, “राम मंदिर के लिए एक अध्यादेश लाएं हम इसका समर्थन करेंगे। मुझे कोई क्रेडिट नहीं चाहिए, आप श्रेय लें लेकिन मंदिर का निर्माण करें।”

हालांकि इसके साथ शिवसेना के पाखंड का पर्दाफाश भी हुआ है क्योंकि शिवसेना ने कांग्रेस जैसी पार्टी के साथ बैठक करने के लिए अयोध्याश्री का दौरा टाल दिया है। ऐसे में साफ स्पष्ट होता है कि उन्हें सिर्फ कुर्सी की लालच है, रामलला की नहीं, रामलला तो बस उनके लिए सत्ता हथियाने का एकमात्र जरिया थे। अब वो दिन दूर नहीं जब शिवसेना बालासाहेब के सभी विचारों को मारते हुए सेक्युलरिज्म की राजनीति करेगी। कुर्सी के लिए शिवसेना कितना गिर सकती है ये आप अयोध्या दौरे से जोड़कर देख सकते हैं।

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