इस वर्ष 21 अक्टूबर को कनाडा में चुनाव हुए थे और प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी 157 सीटों पर जीत दर्ज़ कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालांकि, जब भारतीय मूल के खालिस्तानी समर्थक कनाडाई नेता जगमीत सिंह ने उन्हें अपना समर्थन देने का ऐलान किया, तभी यह स्पष्ट हो गया कि आने वाले 5 सालों के लिए वे ही प्रधानमंत्री पद पर बने रहने वाले हैं।
हालांकि, विपक्ष के अलावा कनाडा का एक और धड़ा ऐसा है और जस्टिन ट्रूडो के दोबारा प्रधानमंत्री बनने से बिलकुल भी खुश नहीं है और इसी कड़ी में कनाडा के दो राज्यों में कनाडा से अलग होने की मांग ने तूल पकड़ लिया है। इन लोगों का कहना है कि ट्रूडो के राज में उन्हें कभी महत्वपूर्ण नहीं समझा गया और उनके साथ पक्षपात हुआ, जिसके कारण कनाडा से अलग होना ही उनकी बेहतरी का एकमात्र रास्ता है।
दरअसल, कनाडा के एल्बर्टा और सस्कैचवन प्रान्तों में कनाडा से अलग होने की आवाज़ें बड़ी तेज़ी से उठाई जा रही हैं।
बता दें कि ये दोनों राज्य प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न हैं, हालांकि यहां के कुछ लोगों का कहना है कि ओट्टावा सरकार ने कभी इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है। इन प्रान्तों के लोगों ने कनाडा से अलग होनी की मुहिम को ब्रेग्जिट की तर्ज़ पर wexit का नाम दिया है जिसका अर्थ है ‘Western exit’। यहां तक कि कुछ लोग हस्ताक्षर अभियान के जरिये wexit पार्टी के गठन के लिए भी तैयारी में जुटे हैं।
Wexit का समर्थन कर रहे लोगों के एक नेता पीटर डाउनिंग ने इसपर कहा ‘कई कारणों की वजह से हमें लगता है कि पश्चिमी कनाडावासियों को और खासतौर पर अलबर्टावासियों को कनाडा से अलग हो जाना चाहिए, और इसी में हम सबकी भलाई है’। खुद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी कनाडा में पनपते इस अलगाववाद को पहचानते हैं और 21 अक्टूबर को दिये अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि अलबर्टा और सस्कैचवन के लोगों का कनाडा में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तक कि अलबर्टा के एक पूर्व सांसद को उन्होंने अपने सलाहकार के रूप में भी रखा है।
हालांकि, विडम्बना यह है कि एक तरफ अलगाववाद ने ट्रूडो के सरदर्द को बढ़ा दिया है, तो वहीं भारत में खालिस्तान नामक अलगाववाद को वे खुद बढ़ावा दे रहे हैं। बता दें कि जिस जगमीत सिंह के साथ मिलकर जस्टिन सरकार बनाने वाले हैं, वह खुद कई बार कनाडा में प्रो-खालिस्तानी रैलियों में शामिल हो चुके हैं, जिसकी वजह से भारत में उनका काफी विरोध हो चुका है। 2015 के चुनाव में उनकी पार्टी को कुल 44 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार उनकी सीटों में काफी कमी आई है।
इसके अलावा खुद जस्टिन ट्रूडो को भी खालिस्तान समर्थकों का हितैषी माना जाता है। उनकी पिछली सरकार में 4 सिख मंत्री थे जिनमें से एक इंफ्रास्ट्रक्चर मिनिस्टर अमरजीत सोही थे जिन्हें 1988 में बिहार में खालिस्तान समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, यह आरोप साबित नहीं हो पाया।
इसके अलावा इनोवेशन मिनिस्टर नवदीप बैंस के बारे में मीडिया की एक रिपोर्ट आई थी कि उनके रिश्तेदार से 1985 में एयर इंडिया के विमान को उड़ाए जाने के मामले में पुलिस पूछताछ हुई थी। इन सब के अलावा कनाडा के रक्षा मंत्री रहे सज्जन सिंह पर तो कैप्टन अमरिंदर सिंह भी ‘खालिस्तान के कट्टर समर्थक’ होने का आरोप लगा चुके हैं।
कनाडा में अलगाववाद कोई नयी समस्या नहीं है और इससे पहले क्यूबेक प्रांत में भी दो बार अलगाववाद के चलते जनमतसंग्रह हो चुका है, हालांकि दोनों बार यह जनमत संग्रह फेल हो गया। जिस तरह ट्रूडो नहीं चाहते कि उनका देश डो हिस्सों में बंटे, ठीक उसी तरह ट्रूडो को भारत की एकता और संप्रभुता का भी सम्मान करना चाहिए और कनाडा में खालिस्तान समर्थक लोगों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।