4 नवंबर को थाईलैंड के दौरे पर गए पीएम मोदी ने देश के हितों को देखते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि भारत Regional Comprehensive Economic Partnership यानि RCEP का सदस्य नहीं बनेगा। पीएम मोदी ने बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि उनकी अंतरात्मा उन्हें इसकी इजाजत नहीं दे रही है कि वे RCEP के इस मौजूदा स्वरूप को स्वीकार करें। पीएम मोदी के इस फैसले का जहां भारत के व्यापारियों ने स्वागत किया है, तो वहीं बॉर्डर पार चीन को इससे तगड़ा झटका लगा है। अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वॉर के बीच चीन को उम्मीद थी कि भारत इस ग्रुप का सदस्य बन जाएगा और उसे भारत और अन्य साउथ ईस्ट देशों में अपना सामान डंप करने का तरीका मिल जाएगा। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और यही कारण है कि चीन अब बार-बार भारत के सामने इस ग्रुप में शामिल होने के लिए गुहार लगा रहा है।
दरअसल, RCEP को लेकर भारत के बड़े फैसले के बाद चीन की ओर से दो बयान आए हैं। 4 नवंबर को चीन की ओर से कहा गया कि अगर भारत भविष्य में RCEP का सदस्य बनना चाहेगा, तो उसका हम स्वागत करेंगे। इसके अलावा चीन की ओर से कल भी एक बयान जारी किया गया। चीन ने मंगलवार को कहा कि वह बीजिंग समर्थित RCEP में शामिल नहीं होने के लिए भारत द्वारा उठाए गए बकाया मुद्दों को हल करने के लिए आपसी समझ और गुंजाइश के सिद्धांत का पालन करेगा। चीन ने यह भी कहा कि वह भारत का स्वागत करेगा कि वह जल्द से जल्द इस सौदे में शामिल हो।
पिछले दो दिनों में चीन की ओर से दो बड़े बयान आना यह दिखाता है कि वह भारत के इस कदम से बड़ा आहत है और भारत ने एक झटके में ही उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि आसियान के भी कई देश चाहते थे कि भारत RCEP का सदस्य देश बने ताकि वे चीन और भारत के प्रभाव में संतुलन बना सके। अगर भारत इस डील पर साइन करने को राज़ी हो जाता और RCEP पर आखिरी मुहर लग जाती, तो चीन को एक साथ 15 देशों में अपना सामान डंप करने का तरीका मिल जाता और वह भारत में भी अपने एक्सपोर्ट को बढ़ा सकता था।
पिछले 2 वर्षों से अमेरिका और चीन में ट्रेड वॉर जारी है जिसके कारण चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। ट्रम्प प्रशासन की कड़ी व्यापार नीतियों का ही नतीजा है कि पिछले तीन दशकों में चीन की अर्थव्यवस्था सबसे सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही है, और इसके आगे भी ऐसे सुस्त रहने के अनुमान है। अब भारत ने भी अपने एक फैसले से चीन के लिए बुरी खबर भेजी है जिसके बाद चीन भारत से गुजारिश करने पर मजबूर हो गया है।
यह दिखाता है कि मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत अपनी शर्तों पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने फैसले लेता है ना कि दूसरे देशों के दबाव में आकर। हमने यह देखा है कि कैसे यूपीए काल में देश ने अपने हितों के साथ समझौता करते हुए आसियान देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर लिया था। हालांकि, आज भारत सरकार को इस समझौते का रिव्यू करना पड़ रहा है। पीएम मोदी के नेतृत्व वाले नए भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसकी विदेश और आर्थिक नीति अब विदेश से नहीं, बल्कि देशहित के संकल्प से निर्धारित होगी और देश की सरकार के लिए देश के नागरिकों का हित सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होगा।