दिल्ली पॉल्यूशन कवर करते-करते मेनस्ट्रीम मीडिया ये भूल गई कि छोटे शहरों में भी हालत बदतर है

दिल्ली

PC: CNN

दिल्ली में व्याप्त वायु प्रदूषण के ऊपर काफी चर्चा एवं धरना प्रदर्शन हुए हैं। दिल्ली के हर नुक्कड़ पर केजरीवाल का विवादित ऑड ईवन स्कीम, स्कूलों में छुट्टी पर बहस अब आम बात हो चुकी है। पर मज़े की बात तो यह है कि दिल्ली पॉल्यूशन पर हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के निवासी भी चिंतित रहते हैं, जबकि सत्य तो यह है कि इन दोनों राज्यों के कई शहर स्वयं वायु प्रदूषण से ग्रसित हैं।

इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट के अनुसार, सीपीसीबी द्वारा जारी एक्यूआई बुलेटिन बताता है कि भारत के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में दिल्ली का कहीं कोई नाम नहीं है। दिल्ली एनसीआर क्षेत्र इस सूची में 14वें स्थान पर है।

इंडिया टुडे के इस लेख के अनुसार देश के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 8 हरियाणा राज्य के हैं, जबकि 2 उत्तर प्रदेश से आते हैं। इंडिया टुडे के अनुसार, “24 घंटे के औसत AQI के अनुसार आंके गए 97 शहरों में जींद जिले की सबसे विषैली हवा है, जिसका औसत एक्यूआई 448 है। दिल्ली का औसत एक्यूआई 407 है”।

यूपी, हरियाणा, बिहार एवं पंजाब के कई शहर इस सूची में पाये गए। पर इनके लिए हमारे मीडिया में कोई अफरा तफरी नहीं मची हुई है। यहाँ तक कि दैनिक जागरण, हिंदुस्तान समाचार एवं अमर उजाला तक इन राज्यों के बजाए दिल्ली के वायु प्रदूषण को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। टीवी मीडिया भी केवल दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण पर अपना ध्यान केंन्द्रित कर रही है। ये ठीक है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली को ज्यादा कवरेज मिलेगी। परंतु दिल्ली के लिए अन्य प्रदूषित शहरों की अनदेखी करना कहाँ तक उचित हैं?

अगर इस कवरेज की सकारात्मक्ता पर ध्यान दें, तो दिल्ली के प्रदूषण के बारे में मीडिया की असीमित कवरेज ने राज्य सरकार के नगरपालिका अधिकारियों को प्रदूषण रोकने के उपाय निकालने के लिए विवश किया है। नगर निगम के अधिकारियों ने जल विभाग को निर्देश दिया है कि वह स्मॉग को कम करने के लिए पेड़ों पर पानी का छिड़काव करें। दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन योजना लागू की है,  और बच्चों को कुछ दिनों के लिए बाहर नहीं खेलने की सलाह जारी की है, स्कूलों को बंद कर दिया है इत्यादि। कोई इन उपायों के संभावित प्रभाव के बारे में अवश्य बहस कर सकता है, लेकिन, कम से कम सरकार सक्रिय रूप से संकट का जवाब तो दे रही है।

मीडिया खुद को लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में दिखाती है और खुद को स्थायी विपक्षी भी कहती है। जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए मीडिया की कवरेज आदर्श स्थिति में सरकार में ‘जवाबदेही और पारदर्शिता’ लाता है। मतदाता सरकार को पांच साल के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है, लेकिन दो चुनावों के बीच की अवधि के लिए मीडिया उन्हें जवाबदेह रखता है। उधर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में गंभीर प्रदूषण के लिए मीडिया कवरेज की कमी के कारण वहाँ कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है, और दोनों ही सरकारों ने अब तक किसी भी गंभीर उपाय की घोषणा नहीं की है।

यह न केवल हरियाणा, यूपी और पंजाब के लोगों को संकट में डालता है, अपितु दिल्ली को भी प्रभावित करता है। इन राज्यों में किसान बिना किसी डर के पराली जला रहे हैं और सोशल मीडिया पर तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। इन किसानों को लगता है कि केवल दिल्ली में रहने वाले लोग ही पराली के जलने से आहत होंगे और इसका उनके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हरियाणा के शहरों में प्रदूषण के बारे में मीडिया कवरेज की कमी ने किसानों को दोषी बनने से बचाया है और वे लगातार पराली जला रहे हैं। जब तक मीडिया पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण संकट पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी, तब तक किसान जिम्मेदारी से काम नहीं करेंगे।

तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली एनसीआर में केंद्रित है। इसलिए, इस क्षेत्र में किसी भी मुद्दे पर मीडिया अनावश्यक कवरेज देती है। दिल्ली को अक्सर देश के बलात्कार की राजधानी के रूप में करार दिया गया है, जबकि यह सच है कि महिला सुरक्षा के मामले में अकेले दिल्ली की स्थिति चिंताजनक नहीं है।

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2014 में कहा था, “हमारे पर्यटकों के लिए रेड कार्पेट गिफ्ट के तौर पर हमारे कानून व्यवस्था को दिखाया जाता है। दिल्ली में एक घटना को पूरी दुनिया में ऐसे दिखाया जाता है कि हमारे पर्यटन को अरबों डॉलर का नुकसान होता है”।

इसी प्रकार का एक उदाहरण दिवाली पर पटाखा प्रतिबंध था। मशहूर हस्तियों ने लोगों से पटाखों के बिना दिवाली मनाने के लिए कहा और पटाखे की बिक्री में 40 प्रतिशत की गिरावट आई। लेकिन इस मुद्दे की वास्तविकता यह है कि दिवाली के बाद के सप्ताह में तटीय भारत के शहरों में हवा की गुणवत्ता पूर्व दिवाली के सप्ताह के रूप में अच्छी थी क्योंकि सागर इन शहरों को वायु प्रदूषण से बचाता है।

इसलिए, मुंबई या चेन्नई में रहने वाले लोग पटाखे जलाने का जोखिम उठा सकते हैं, लेकिन दिल्ली के लोग ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन मीडिया के पक्षपाती कवरेज के कारण पटाखा उद्योग के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण भारतीय परंपरा को काफी नुकसान हुआ है।

यूपी और हरियाणा में वायु गुणवत्ता की स्थिति के बारे में मीडिया कवरेज की कमी इन सरकारों को उत्तरदायी नहीं बनाती है। यह न केवल ऐसे राज्यों के लोगों के लिए हानिकारक है, बल्कि, राज्यों के प्रति इस उदासीनता के कारण हरियाणा के नागरिक भी प्रभावित हो रहे हैं। जब तक राष्ट्रीय मीडिया की मानसिकता दिल्ली और मुंबई के आसपास केंद्रित रहती है, तब तक हम इन समस्याओं का सामना करते रहते हैं।

 

Exit mobile version