3 बड़े कारण जो दर्शातें हैं कि एन्टी CAA प्रोटेस्ट न ही स्वाभाविक है और न छात्र आंदोलन

स्वाभाविक शब्द से आप क्या समझते हैं? आसान भाषा में आप स्वाभाविक उस क्रिया को कह सकते हैं, जिसके घटित होने में किसी बाहरी ताकत की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती है, यानि कुल मिलाकर स्वाभाविक प्रक्रिया या आंदोलन अपने आप शुरू होता है, और अपने आप ही यह बढ़ता है। निर्भया केस का तो आपको पता ही होगा। निर्भया रेप केस के बाद पूरे देश में गुस्से की एक लहर छा गयी थी और तब लोग स्वयं सड़कों पर उतरे थे। लोगों में गुस्सा था, कि क्या देश की बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं? सरकार से सवाल पूछे जा रहे थे, और देश में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म मिल गया था। ये सही मायनों में एक स्वाभाविक और लोगों के नेतृत्व वाला जन आंदोलन था, जिसने बाद में वर्ष 2014 में मोदी सरकार के लिए रास्ता साफ किया। 

अब विद्यार्थियों के विरोध प्रदर्शन को आप क्या कहेंग? आसान है। छात्रों का और छात्रों के द्वारा किसी भी आंदोलन को आप छात्र आंदोलन कह सकते हैं। वर्ष 1990 का मण्डल कमीशन प्रोटेस्ट इसका बढ़िया उदाहरण है जब छात्रों ने सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में बड़े पैमाने पर आरक्षण दिये जाने का विरोध किया था। सरकार के उस फैसले ने सीधे तौर पर छात्रों को प्रभावित किया था। हाँ, तब विपक्षी पार्टियों ने छात्रों के उस आंदोलन का समर्थन किया था, लेकिन आंदोलन छात्रों पर ही केन्द्रित रहा था। अब भारत में CAA को लेकर किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए कुछ मीडिया के साथी इन्हें भी स्वाभाविक छात्र आंदोलन का नाम देने में लगे हुए हैं। हालांकि, ऐसा बिलकुल नहीं है, और इसके तीन बड़े महत्वपूर्ण कारण हैं। 

  1. आप, कांग्रेस और भारत-विरोधिया का इस प्रोटेस्ट में शामिल होना

वर्ष 2016 में जब CAB सार्वजनिक किया गया था, तब कहीं इसके खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन देखने को नहीं मिला था, हिंसा या तोडफोड की तो बात ही छोड़िए। तब वह तर्कसंगत भी था क्योंकि इस बिल में ऐसा है ही नहीं जिससे किसी को कोई परेशानी हो। ऐसे ही NRC की प्रक्रिया भी असम में कई महीनो से चल रही थी। यहां तक कि 19 लाख लोगों को NRC की सूची से बाहर भी कर दिया गया था, लेकिन क्या उस समय हमें कोई विरोध प्रदर्शन देखने को मिले? नहीं। हालांकि, अब ऐसा क्या हो गया है। इसका कारण है कि अब देश के विपक्षी राजनीतिक वर्ग और कुछ भारत विरोधी तत्वों ने इस मामले को बेवजह तूल दे दी है, जिसके कारण लोगों को भड़काकर अपना स्वार्थ पूरा किया जा रहा है।  

दरअसल, दिल्ली पुलिस ने जामिया हिंसा मामले में जामिया पुलिस स्टेशन और न्यू फ्रेंड्रस कॉलोनी पुलिस स्टेशन में नामजद मामले में कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ खान और आम आदमी पार्टी की जामिया युनिवर्सिटी छात्र विंग के नेता कासिम उस्मानी समेत 7 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। केस दर्ज़ करने के साथ ही पुलिस ने 10 अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया है। जिन लोगों पर मामला दर्ज़ किया गया है, उनमें लेफ्ट की छात्र विंग आईसा के नेता चंदन कुमार का भी नाम शामिल है। इसके अलावा बीते मंगलवार को सीलमपुर में हुए दंगों में भी हम आप-कांग्रेस के कनैक्शन से इंकार नहीं कर सकते। पुलिस ने सीलमपुर दंगे के बाद दो मामले दर्ज कर 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने सीलमपुर-जाफराबाद हिंसा की जो जांच की है, उसमें भी शुरुआती जांच में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं के नाम सामने आए हैं।

वहीं, असम में हुई हिंसा में कथित भूमिका को लेकर इस्लामी संगठन ‘पीएफआई’ की असम इकाई के प्रमुख अमीनुल हक और एक अन्य पदाधिकारी को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया गया। राज्य के वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मंगलवार को आरोप लगाया था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक हिस्से, शहरी नक्सलियों और पीएफआई के बीच एक घातक सांठगांठ रही होगी, जिन्होंने 11 दिसंबर के प्रदर्शन के दौरान राज्य सचिवालय जलाने की कोशिश की थी। यानि आतंकियों के इस हिंसा में शामिल होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ, वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी भी अपने बयानों से CAA के विरोध प्रदर्शनों में आग में घी डालने का काम कर रही हैं। 

  1. वामपंथियों का शामिल होना

कल पूरा वामपंथी तंत्र CAA के विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में आ खड़ा हुआ। रामचन्द्र गुहा से लेकर, योगेन्द्र यादव तक, सब इन विरोध प्रदर्शनों के लिए सड़क पर आए। बेशक इन सब ने शांतपूर्वक ढंग से प्रदर्शन किया हो, लेकिन इस तंत्र का झूठी खबर फैलाने में सबसे बड़ा हाथ रहा है, जिसके कारण हिंसा को बढ़ावा मिला है। मुस्लिम बहुल इलाकों में तो बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं। इस वामपंथी तंत्र ने ही यह झूठे तथ्य समाज में फैलाये हैं कि भारतीय मुसलमानों को CAA से बड़ा नुकसान होगा, जिसके बाद भारतीय मुसलमानों में भय उत्पन्न करने की कोशिश की जा रही है। स्पष्ट है कि कहीं, ना कहीं CAA विरोध प्रदर्शनों को हवा देने में इस वामपंथी तंत्र का बड़ा योगदान रहा है और इस विरोध को स्वाभाविक विरोध या जनांदोलन का नाम नहीं दिया जा सकता। 

  1. ये प्रदर्शन देशव्यापी नहीं हैं। 

CAA के विरोध प्रदर्शन देशव्यापी नहीं हैं, अपितु चुनिन्दा शहरों की चुनिन्दा जगहों पर फैले हुए हैं। आज और कल भी हमें प्रदर्शन सिर्फ दिल्ली और लखनऊ के मुस्लिम बहुल इलाकों में देखने  को मिले। किसी भी शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा देखने को नहीं मिली है। देशभर में 49 केंद्रीय विश्वीद्यालयों में से सिर्फ 4 विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन देखने को मिले हैं। 

इन सब कारणों से स्पष्ट है कि CAA का विरोध प्रदर्शन ना तो छात्र आंदोलन है और ना ही यह जनांदोलन है। 

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