दिल्ली में अवैध फैक्ट्रियों से आग का कहर कब तक? क्या केजरीवाल सरकार नींद से जागेगी?

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दिल्ली के सदर बाजार के रिहायशी इलाके में रविवार तड़के करीब 5 बजे लेडीज पर्स, बैग और प्लास्टिक आइटम बनाने की चार मंजिला फैक्टरी में भीषण आग लग गई। हादसे में 43 लोगों की मौत हो गई है। हादसे के समय बिल्डिंग में 100 से अधिक लोग फंसे थे। 40 लोगों को किसी तरह सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया जबकि 60 लोगों को धीरे-धीरे अचेत अवस्था में निकालकर नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाया गया। वहां 43 को मृत घोषित कर दिया गया जबकि 17 का इलाज जारी है। बताया जा रहा है कि मरने वालों में कई नाबालिग भी शामिल हैं।

प्राथमिक जांच में यह बात सामने आई है कि इस फैक्ट्री मालिक के पास फायर डिपार्टमेंट की एनओसी नहीं थी। इस बड़े हादसे की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने फैक्ट्री मालिक रेहान और मैनेजर फुरकान को गिरफ्तार कर लिया है। इनके खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। यहां मौजूद लोगों ने कहा कि इन हालात के लिए अधिकारी जिम्मेदार हैं। ऐसी करीब एक हजार फैक्ट्रियां और 40 हजार दुकानें हैं। ज्यादातर फैक्ट्रियां अवैध हैं। इस इलाके में संकरी गलियां हैं, जिनमें बिजली के तारों का जाल फैला है। इनके चलते यह इलाका जिंदा टाइम बम जैसा हो गया है। जिस इमारत में आग लगी, उसके हर कमरे में कुछ न कुछ बनाया जाता था। कोई स्कूल बैग बनाता था तो कोई खिलौने। कुछ प्रिंटिंग प्रेस भी हैं।

आखिर इस हादसे की कौर ज़िम्मेदारी लेगा? क्या यह हादसा था या फिर जान बूझकर ऐसे आग लगने का इंतज़ार लिया गया? रिहायशी इलाकों में इस तरह के फैक्ट्री के चलने पर भी कारवाई क्यों नहीं की गयी? बिजली के लटकते तार और जर्जर हुए बिजली खंभो को बदलने के लिए दिल्ली सरकार अभी तक कोई ठोश कदम क्यों नहीं उठाया?

ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हुई हो। 16 नवंबर, 2019 की रात बाहरी दिल्ली के नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में एक फैक्ट्री में भयंकर आग लग गई। इस हादसे में एक शख्स की मौत हो गई जबकि लाखों रुपये का सामान जलकर खाक हो गया। फैक्ट्री में जूते-चप्पल बनाए जाते थे। इसलिए यहां बड़ी मात्रा में रबर और जूते-चप्पल बनाने के काम आने वाले केमिकल्स भी रखे हुए थे जिनकी वजह से आग तेजी से भड़क गई थी।

इसी वर्ष करोलबाग में गुरुद्वारा रोड स्थित होटल अर्पित पैलेस में 12 फरवरी 2019 को आग लग गई थी। इस आग लगने की इस घटना में करीब 17 लोगों की मौत हो गई थी।

​इससे पहले बाहरी दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र में 21 जनवरी 2018 को सेक्‍टर-5 स्थित एक पटाखा स्टोरेज यूनिट में भीषण आग लग गई थी। आग लगने की इस घटना में 17 लोगों की मौत हो गई थी और दो लोग घायल हो गए थे। इसी तरह 30 मई, 2018 को दिल्ली के मालवीय नगर में एक केमिकल फैक्ट्री में आग लग गई थी। आग पहले केमिकल फैक्ट्री में आए ट्रक में लगी, फिर धीरे-धीरे इसकी चपेट में फ़ैक्ट्री आ गई, जहां रबर, ज्वलनशील केमिकल और कार्टन थे।

सबसे खतरनाक हादसा तो दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में ‘बॉर्डर’ फिल्म देखने के दौरान हुआ था। उस दौरान लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी। यह घटना 13 जून, 1997 को हुई थी। इतना ही नहीं आग लगने की इस घटना में 100 से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। इस घटना में महिलाएं और बच्चे भी मारे गए थे।

दिल्ली इस घटना पर केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि यह दुर्घटना दिखाती है कि “सजा के बिना” खामियां होते रहने दी गईं। पुरी ने एक बयान में कहा कि सड़कें बहुत संकीर्ण थीं और तार और केबल खतरनाक ढंग से लटकी हुई थीं। उन्होंने कहा कि साथ ही इमारत में सुरक्षा एवं आग से बचाव संबंधी नियमों का उल्लंघन किया गया था। आवास और शहरी कार्य मंत्रालय ने बयान में कहा, ‘दिल्ली अग्निशमन सेवाओं ने स्पष्ट तौर पर डीएफएस कानून 2010 की धारा 25, 27 और 44 को नजरअंदाज किया जिसके मुताबिक इस ऊंचाई एवं रिहायश के स्तर वाली इमारत को अग्नि सुरक्षा और आग से बचाव के उपाय करने होते हैं। लेकिन दिल्ली अग्निशमन सेवा विभाग ने इस तरह का कोई कदम नहीं उठाया।’

पुरी ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग को अप्रैल 2017 में आधिकारिक गजट में अधिसूचना जारी करने के लिए इसे भेजा गया था। लेकिन समय समय पर सभी स्पष्टीकरण देने के बावजूद इसकी अधिसूचना लंबित है। ये विभाग किस चीज का इंतजार कर रहे थे? आज दिल्ली को जवाब चाहिए।’

उन्होंने ट्वीट किया, ‘अर्पित पैलेस होटल, बवाना औद्योगिक क्षेत्र, कालिंदी कुंज, चांदनी चौक, नेताजी सुभाष प्लेस जैसे कई नाम हैं जहां विनाशकारी आग लगी है। हर बार बस जांच के आदेश दे दिए जाते हैं। यहां तक कि आज भी जांच के आदेश दिए गए हैं।’

केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के निवासियों की सुरक्षा के लिए जिस तरह से आंखें मूंद ली हैं, वह दिल्लीवासियों के लिए खतरे की घंटी है। देश की राजधानी दिल्ली ऐसे ही न जाने कितनी फैक्ट्रीयां अवैध रूप से चल रही है और यह सभी एक टिककिंग टाइम बम की तरह हैं। अगर एक भी हादसा हुआ तो 50 से ऊपर मौतें निश्चित है। बिना किसी कारवाई के इस तरह के अवैध फैक्ट्रियों का फैलना दिखाता है कि इस क्षेत्र में कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है और दिल्ली वासियों की जान से खेला जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में जान सस्ती हो गई है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। अगर अब भी केजरीवाल सरकार नहीं जागी और जनता भी इसी तरह से बैठी रही तो वह दिन दूर नहीं जब इस तरह के भयावह घटनाएँ रोज ही होंगी।

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