वो 6 कारण जिस वजह से झारखंड के चुनावी खेल में हार गयी भाजपा

झारखंड

PC: tv9bharatvarsh

झारखंड में पहली बार अपने पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने के बाद भाजपा इस बार चुनाव हार गयी। रघुवर दास झारखंड के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होंने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था। हालांकि, इस बार विधानसभा चुनाव में वे अपनी जमशेदपुर पश्चिम की सीट भी निरदलिए सरयू राय से हाथों हार गए।

बीजेपी को कुक 25 सीट मिला जबकि JMM कांग्रेस और RJD की गठबंधन को कुल 47 सीटें हासिल हुई जिसे हेमंत सोरेन नेतृत्व कर रहे थे। खुद हेमंत सोरेन की पार्टी JMM ने अपने प्रदर्शन को सुधारते हुए अपनी सीटों की संख्या 19 से 30 किया वहीं कांग्रेस ने भी 10 से आगे बढ़ते हुए 16 सीटों पर जीत दर्ज की।

भाजपा का वोट शेयर पिछले चुनाव में 31.3 प्रतिशत से बढ़कर 33.37 प्रतिशत हो गया। बीजेपी की हार के पीछे कई कारण थे, हमारे विश्लेषण के अनुसार उनमें से पांच सबसे महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं:

1. Tribal Vs Non-Tribal

कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस चुनाव को पूरी तरह से आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी में बदल दिया था और भाजपा पूरी तरह से इसे विकास के मुद्दे पर ही आश्रित रही थी। आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए हेमंत सोरेन जैसे झामुमो नेता ने चुनाव जीतने के लिए स्पष्ट रूप से इस मुद्दे सहारा लिया था। चुनाव के दौरान विभिन्न रैलियों में झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने भाजपा पर हमले करते समय कहा था कि केंद्र की भाजपा सरकार और राज्य की रघुबर दास सरकार ने आदिवासी आबादी को धोखा दिया है।  भौगोलिक रूप से देखें तो राज्य में आदिवासी कुल आबादी का केवल 26.3 प्रतिशत हिस्सा है, और लगभग एक तिहाई (81 में से 29) सीटें आदिवासी लोगों के लिए आरक्षित हैं।

2.lack Of Charismatic leader

भाजपा ने इस बार अपने CM पद के लिए रघुवर दास पर ही भरोसा किया जो उसके लिए घातक साबित हुआ। रघुवर दास अपनी ही विधान सभा सीट नहीं बचा पाये। झारखंड में कोई ऐसा करिश्माई नेता नहीं है जो अपने दम पर चुनाव को जीता सके। इस राज्य में भाजपा ने किसी ऐसे नेता को तैयार भी नहीं किया जो उस तरह से पार्टी के लिए चुनाव जीता सके। पीएम मोदी और अमित शाह पर अत्यधिक आश्रित रहना भी भाजपा के लिए महंगा पड़ा।

3.Infighting

पार्टी के भीतर की अनबन ने सरयू राय को रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया। बता दें कि वह राज्य के सबसे सम्मानित भाजपा नेताओं में से एक हैं; और उन्होंने लालू यादव और मधु कोड़ा जो झारखंड के 4 वें मुख्यमंत्री थे, उनके भ्रष्टाचार के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। giant killer के नाम से मशहूर सरयू राय ने न केवल रघुवर दास को हराया है, बल्कि रघुबर दास की छवि को भी धूमिल किया।

4.State vs National issue:

2009, 2014 और 2019 के आम चुनावों में पार्टी ने क्रमशः 8, 12, 12 सीटें जीतीं। इस बार लोक सभा में 14 में से 12 सीटें जीतने के बावजूद इसी वर्ष विधानसभा चुनाव हार जाना यह दिखाता है कि जनता आम चुनाव और विधान सभा चुनाव के अंतर को समझती है। जनता को यह पता है कि राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे अलग है और क्षेत्रीय स्तर के अलग। भाजपा राष्ट्रीय नेताओं के चुनावी दौरों पर अधिक ध्यान दिया बजाए क्षेत्रीय नेताओं का।

5.Opposition’s smartness:

इस चुनाव में यह एखने को मिला कि एक तरफ जहां भाजपा अकेले चुनाव लड़ने के मूड में दिखी तो वहीं विपक्ष ने एक गठबंधन बना का BJP के खिलाफ चुनाव में उतरे। एक तरफ हेमंत सोरेन ने राजद और कांग्रेस को एक साथ लाया तो वही भाजपा ने आजसु का साथ भी छोड़ दिया। विपक्ष ने बहुत चालाकी से चुनाव प्रचार भी किया और पीएम मोदी पर सीधे हमलों से परहेज किया, तथा चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर केन्द्रित बनाए रखा। विपक्षी पार्टियों ने रघुबर दास और भ्रष्टाचार पर अधिक हमला किया। साथ ही सरकार को आदिवासी विरोधी बताकर आदिवासी को भावनात्मक रूप से आकर्षित करने की कोशिश की।

6.Relation with AJSU

झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ नाता तोड़कर अलग चुनाव नहीं लड़ना मंहगा पड़ा। झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 79 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। जबकि, आजसू ने 58 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में साफ है झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 58 सीट पर बीजेपी-आजसू प्रत्याशी आमने-सामने थे और दोनों दलों के बीच वोट बंटवारा हुए है। आजसू ने पांच ऐसी सीटों पर भी उम्मीदवार उतारकर बीजेपी को सीधे चुनौती दे दी है, जो फिलहाल बीजेपी के कब्जे में हैं। AJSU भाजपा की सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी थी जिसने गठबंधन छोड़ दिया, और उसे लगभग 8.10 प्रतिशत वोट मिले। यह कई निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की जीती हुई सीटों पर भाजपा के वोट काटे और यही अंतर भाजपा की हार का कारण बना।

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